अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 2/ मन्त्र 3
सूक्त - अथर्वा
देवता - रुद्रः
छन्दः - चतुष्पदा स्वराडुष्णिक्
सूक्तम् - रुद्र सूक्त
क्रन्दा॑य ते प्रा॒णाय॒ याश्च॑ ते भव॒ रोप॑यः। नम॑स्ते रुद्र कृण्मः सहस्रा॒क्षाया॑मर्त्य ॥
स्वर सहित पद पाठक्रन्दा॑य । ते॒ । प्रा॒णय॑ । या: । च॒ । ते॒ । भ॒व॒ । रोप॑य: । नम॑: । ते॒ । रु॒द्र॒ । कृ॒ण्म॒: । स॒ह॒स्र॒ऽअ॒क्षाय॑ । अ॒म॒र्त्य॒ ॥२.३॥
स्वर रहित मन्त्र
क्रन्दाय ते प्राणाय याश्च ते भव रोपयः। नमस्ते रुद्र कृण्मः सहस्राक्षायामर्त्य ॥
स्वर रहित पद पाठक्रन्दाय । ते । प्राणय । या: । च । ते । भव । रोपय: । नम: । ते । रुद्र । कृण्म: । सहस्रऽअक्षाय । अमर्त्य ॥२.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
विषय - रुद्र के लिए प्रणाम
पदार्थ -
१.हे प्रभो! (ते) = आपके (क्रन्दाय) = क्रन्दन व शब्द के लिए-सृष्टि के प्रारम्भ में दिये जानेवाले वेदज्ञान के लिए [हरिरेति कनिक्रदत्], (प्राणाय) = आपसे दी जानेवाली इस प्राणवायु के लिए (नमः) हम नमस्कार करते हैं। (च) = और हे (भव) = सृष्टि को जन्म देनेवाले प्रभो! (या) = जो (ते) = आपकी (रोपयः) = विमोहनशक्तियाँ हैं, प्रलयकाल में मूढ़ अवस्था में प्राप्त करानेवाली शक्तियाँ हैं, उन सबके लिए हम नमस्कार करते हैं। २.हे (रुद्र) = अन्तकाल में सबको रुलानेवाले [रोदयति], सब [रुत् द्र] दु:खों के दूर करनेवाले [द्रावक] प्रभो! (अमर्त्य) = अमरणधर्मा (सहस्त्राक्षाय) = सहस्रों दर्शन शक्तियोंवाले, सर्वजगत् साक्षी (ते) = आपके लिए (नम: कृण्म:) = हम नमस्कार करते हैं।
भावार्थ -
प्रभु सष्टि के प्रारम्भ में वेदज्ञान देते हैं, प्राणशक्ति प्राप्त कराते हैं, निद्रा व प्रलय में मूढ अवस्था में प्राप्त कराते हैं। सब दुःखों के द्रावक, अमरणधर्मा व सर्वसाक्षी हैं। उन आपके लिए हम नमस्कार करते हैं।
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