Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 8/ मन्त्र 20
    ऋषिः - अत्रिर्ऋषिः देवता - गृहपतयो देवताः छन्दः - स्वराट आर्षी त्रिष्टुप्, स्वरः - धैवतः
    4

    व॒यꣳ हि त्वा॑ प्रय॒ति य॒ज्ञेऽअ॒स्मिन्नग्ने॒ होता॑र॒मवृ॑णीमही॒ह। ऋध॑गया॒ऽऋध॑गु॒ताश॑मिष्ठाः प्रजा॒नन् य॒ज्ञमुप॑याहि वि॒द्वान्त्स्वाहा॑॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒यम्। हि। त्वा॒। प्र॒य॒तीति॑ प्रऽय॒ति। य॒ज्ञे। अ॒स्मिन्। अग्ने॑। होता॑रम्। अवृ॑णीमहि। इ॒ह। ऋध॑क्। अ॒याः॒। ऋध॑क्। उ॒त। अ॒श॒मि॒ष्ठाः॒। प्र॒जा॒नन्निति॑ प्रऽजा॒नन्। य॒ज्ञम्। उप॑। या॒हि॒। वि॒द्वान्। स्वाहा॑ ॥२०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वयँ हि त्वा प्रयति यज्ञे अस्मिन्नग्ने होतारमवृणीमहीह ऋधगया ऋधगुताशमिष्ठाः प्रजानन्यज्ञमुप याहि विद्वान्त्स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वयम्। हि। त्वा। प्रयतीति प्रऽयति। यज्ञे। अस्मिन्। अग्ने। होतारम्। अवृणीमहि। इह। ऋधक्। अयाः। ऋधक्। उत। अशमिष्ठाः। प्रजानन्निति प्रऽजानन्। यज्ञम्। उप। याहि। विद्वान्। स्वाहा॥२०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 8; मन्त्र » 20
    Acknowledgment

    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - (गृहस्थजन विद्वानांस म्हणत आहोत) हे (अग्ने) ज्ञानदाता विद्वन्, (वयम्) आम्ही गृहस्थाश्रमी लोक (इह) (प्रयति) या प्रयत्न साध्य अशा (यज्ञे) गृहाश्रमरुप यज्ञात (त्वा) आपणांस (होतारम्) कार्य सिद्ध करणारे या रुपात (अवृणीमहे) ग्रहण करतो (गृहस्थाश्रम सफल होण्यासाठी आपले मार्गदर्शन आम्हास मिळावे) हे (विद्वन्) विद्वान महोदय, (प्रजानन्) आपण कार्यसिद्धीची रीती जाणता म्हणून आपण आमच्या या (ऋधक्) समृद्धिकारक (यज्ञम्) गृहाश्रमरुप यज्ञास (स्वाहा) शास्त्रोक्त रीतीने पूर्ण करण्यासाठी (उप) (याहि) आमच्याजवळ या. (उत) एवढेच नाही तर (अया:) त्या (मार्गदर्शनरुप) दानाने, आपल्या सत्संगाने श्रेष्ठ गुणांची प्राप्ती (हि) निश्चयाने होऊ द्या. (अस्मिन्) या (ऋधक्) ऋद्धि-सिद्धीची वृद्धी करणार्‍या गृहाश्रमामध्ये (अशनिष्ठा:) शांती आदि गुणांचे ग्रहण करून. (आणि आम्हास शांति-समाधान देऊन) सुखी व्हा व (आम्हास सुखी करा) ॥20॥

    भावार्थ - भावार्थ - सर्व सांसारिक कर्त्तव्य-कर्म करणार्‍या गृहस्थांना आवश्यक आहे की त्यांनी जो मनुष्य ज्या कार्यात कुशल असेल, त्यास त्याच कार्यात प्रवृत्त करावे (योग्य माणसास योग्य काम द्यावे) ॥20॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top