ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 117/ मन्त्र 20
अधे॑नुं दस्रा स्त॒र्यं१॒॑ विष॑क्ता॒मपि॑न्वतं श॒यवे॑ अश्विना॒ गाम्। यु॒वं शची॑भिर्विम॒दाय॑ जा॒यां न्यू॑हथुः पुरुमि॒त्रस्य॒ योषा॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअधे॑नुम् । द॒स्रा । स्त॒र्य॑म् । विऽस॑क्ताम् । अपि॑न्वतम् । श॒यवे॑ । अ॒श्वि॒ना॒ । गाम् । यु॒वम् । शची॑भिः । वि॒ऽम॒दाय॑ । जा॒याम् । नि । ऊ॒ह॒थुः॒ । पु॒रु॒ऽमि॒त्रस्य॑ । योषा॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अधेनुं दस्रा स्तर्यं१ विषक्तामपिन्वतं शयवे अश्विना गाम्। युवं शचीभिर्विमदाय जायां न्यूहथुः पुरुमित्रस्य योषाम् ॥
स्वर रहित पद पाठअधेनुम्। दस्रा। स्तर्यम्। विऽसक्ताम्। अपिन्वतम्। शयवे। अश्विना। गाम्। युवम्। शचीभिः। विऽमदाय। जायाम्। नि। ऊहथुः। पुरुऽमित्रस्य। योषाम् ॥ १.११७.२०
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 117; मन्त्र » 20
अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
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अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ स्त्रीपुरुषविषयमाह ।
अन्वयः
हे दस्राऽश्विना युवं युवां शचीभिर्विषक्तां स्तर्य्यं स्तरीमधेनुं गामपिन्वतं विमदाय शयवे पुरुमित्रस्य योषां जायां न्यूहथुर्नितरां प्राप्नुतम् ॥ २० ॥
पदार्थः
(अधेनुम्) अदोहयित्रीम् (दस्रा) (स्तर्य्यम्) सुखैराच्छादिकाम् (विषक्ताम्) विविधैः पदार्थैर्युक्ताम् (अपिन्वतम्) जलादिभिः सिञ्चतम् (शयवे) (शयानाय) (अश्विना) भूगर्भविद्याविदौ स्त्रीपुरुषौ (गाम्) पृथिवीम् (युवम्) युवाम् (शचीभिः) कर्मभिः (विमदाय) विशेषमदयुक्ताय (जायाम्) (नि) (ऊहथुः) प्राप्नुतम् (पुरुमित्रस्य) बहुसुहृदः (योषाम्) युवतिं कन्याम् ॥ २० ॥
भावार्थः
अत्र लुप्तोपमालङ्कारः। हे राजपुरुषा यूयं यथा सर्वमित्रस्य सुलक्षणां हृद्यां ब्रह्मचारिणीं विदुषीं सुशीलां सततं सुखप्रदां धार्मिकीं कुमारीं भार्यत्वायोदूढ्वा संरक्षथ तथैव सामादिभी राजकर्मभिर्भूमिराज्यं प्राप्य धर्मेण सदा पालयत ॥ २० ॥
हिन्दी (3)
विषय
अब स्त्रीपुरुष विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (दस्रा) दुःख दूर करनेहारे (अश्विना) भूगर्भ विद्या को जानते हुए स्त्री-पुरुषो ! (युवम्) तुम दोनों (शचीभिः) कर्मों के साथ (विषक्ताम्) विविध प्रकार के पदार्थों से युक्त (स्तर्य्यम्) सुखों से ढाँपनेवाली नाव वा (अधेनुम्) नहीं दुहानेहारी (गाम्) गौ को (अपिन्वतम्) जलों से सींचो (विमदाय) विशेष मदयुक्त अर्थात् पूर्ण युवावस्थावाले (शयवे) सोते हुए पुरुष के लिये (पुरुमित्रस्य) बहुत मित्रवाले की (योषाम्) युवति कन्या को (जायाम्) पत्नीपन को (न्यूहथुः) निरन्तर प्राप्त कराओ ॥ २० ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में लुप्तोपमालङ्कार है। हे राजपुरुषो ! तुम जैसे सबके मित्र की सुलक्षणा मन लगती, ब्रह्मचारिणी, पण्डिता, अच्छे शीलस्वभाव की, निरन्तर सुख देनेवाली, धर्मशील, कुमारी को भार्य्या करने के लिये स्वीकार कर उसकी रक्षा करते हो, वैसे ही साम, दाम, दण्ड, भेद अर्थात् शान्ति, किसी प्रकार का दबाव, दण्ड देना ओर एक से दूसरे को तोड़-फोड़ उसको बेमन करना आदि राज कामों से भूमि के राज्य को पाकर धर्म से सदैव उसकी रक्षा करो ॥ २० ॥
विषय
‘वेदवाणीरूप’ गौ व जाया
पदार्थ
१. जिस समय हमारी बुद्धि मन्द होती है , उस समय हम वेदवाणी को समझ नहीं पाते । यह वेदवाणी हमारे लिए एक वन्ध्या गौ के समान हो जाती है । प्राणसाधना से बुद्धि तीव्र होती है । हे (दस्रा) = दोषों का उपक्षय करनेवाले (अश्विना) = प्राणापानो ! आप (शयवे) = शयु के लिए हृदय में निवास करनेवाले के लिए आत्मनिरीक्षण करनेवाले के लिए (अधेनुम्) = [धेनुः स्यात् नवसूतिका] उस वेदवाणीरूप गौ को जो अब अ - धेनु - सी हो गई है , (स्तर्यम्) = जो बाँझ [sterile] है तथा (विषक्ताम्) = अत्यन्त कृश अवयवोंवाली है , उस (गाम्) = वेदवाणीरूप गौ को (अपिन्वतम्) = पुनः आप्यायित कर देते हो । यह वेदवाणीरूप गौ प्राणसाधक के लिए पुनः ज्ञानदुग्ध देने लगती है । २. हे प्राणापानो ! (युवम्) = आप (शचीभिः) = ज्ञानों से (विमदाय) = मदशून्य - विनीत पुरुष के लिए (जायां न्यूहथुः) = पत्नी को प्राप्त कराते हो जोकि (पुरुमित्रस्य योषाम्) = पुरुमित्र की कुमारी है । प्रभु पुरुमित्र हैं , सबका पालन करनेवाले मित्र हैं , प्रभु को किसी से द्वेष नहीं । वेदवाणी प्रभु की पुत्री के समान है । यह विमद पुरुष को जीवन - यात्रा की पूर्ति के लिए पत्नी के रूप में प्राप्त होती है । पत्नी पति की पूरिका है । इसी प्रकार यह वेदवाणी विनीत पुरुष के जीवन का पूरण करती है । यह कार्य प्राणसाधना द्वारा होता है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्राणसाधना से वेदवाणीरूप गौ हमारे लिए बाँझ न रहकर प्रभूत ज्ञान - दुग्ध देनेवाली हो जाती है । प्रभु की पुत्रीरूप यह वेदवाणी प्राणसाधना द्वारा हमें पत्नी के रूप में प्राप्त होती है ।
विषय
सौ मेषों का रहस्य ऋज्राश्व की कथा का रहस्य।
भावार्थ
हे ( अश्विना ) विद्वान् और प्रमुख स्त्री पुरुषो एवं अधिकारी जनो ! हे ( दस्रा ) दुष्ट पुरुषों के नाश करने हारो ! आप दोनों ( शयवे ) सोने वाले, अर्थात् राज्य-कार्य में प्रमाद करने वाले राजा के लिये (अधेनुं) दूध न देने वाली (स्तर्यं) बन्ध्या गौ के समान ऐश्वर्य या भोग्य पदार्थों के न देने वाली (स्तर्यं) विस्तृत, या बन्ध्या, या प्रसवधातिनी, या हिंसाशील राजद्रोहिणी ( विषक्ताम् ) विरुद्ध मार्ग में या विद्रोह में लगी, विपरीत हुई ( गाम् ) पृथिवी या राष्ट्रभूमि को ( अपिन्वतम् ) नाना ऐश्वर्यो से सम्पन्न करो । अर्थात् द्रोहियों को नाश करके जैसे अन्नोत्पादक सूखी भूमि को जल से सींच कर हरा भरा किया जाता है वैसे ही उसको सुख समृद्ध करो । ( विमदाय जाग्राम इव ) विशेष हर्ष से युक्त पुमान् पुरुष के गृहस्थ धर्म के लिये जिस प्रकार जाया अर्थात् सन्तान उत्पन्न करने में समर्थ स्त्री को उससे विवाहित कर दिया जाता है उसी प्रकार ( योषाम् ) सेवन करने योग्य भूमि को भी ( शचीभिः ) नाना शक्तियों से वश करके (पुरुमित्रस्य) बहुत से मित्र राजाओं से सहायवान् राजा के अधीन ( नि उहथुः ) नियम बहुत पूर्वक प्राप्त कराओ । प्रमादी राजा की प्रजाएं विद्रोह करती हैं । उनको बलवान् सेनापति और सभापति शान्त करें और ऐश्वर्य सम्पन्न करें । बहुमित्र राजा के अधीन उसको सुशासन में रक्खें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कक्षीवानृषिः॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः–१ निचृत् पंक्तिः । ६, २२ विराट् पंक्तिः। २१, २५, ३१ भुरिक पंक्तिः। २, ४, ७, १२, १६, १७, १८, १९ निचृत् त्रिष्टुप्। ८, ९, १०, १३-१५, २०, २३ विराट् त्रिष्टुप् । ३, ५, २४ त्रिष्टुप् ॥ धैवतः ॥ पञ्चविंशत्यृचं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात लुप्तोपमालंकार आहे. हे राजपुरुषांनो! तुम्ही जसे सर्वांशी मैत्री करणारी सुलक्षणा, हृद्य, ब्रह्मचारिणी, पंडिता, उत्तम शीलवती, सुख देणारी, धर्मशील कुमारीचा भार्या म्हणून स्वीकार करता व रक्षण करता तसेच साम, दाम, दंड, भेद इत्यादीद्वारे राज्य कार्य करून भूमीचे राज्य प्राप्त करावे व धर्माने सदैव त्याचे रक्षण करावे. ॥ २० ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, generous and brave fighters against suffering, destroyers of want and pain, nourish and revitalize the dry and barren cow, give nourishment to the weak and sleeping man, and, with your noble and generous actions, a wife for the happy and youthful man, the young and beautiful daughter of the friend of many.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of the husband and wife are told in the Twentieth Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O destroyers of distress, O men and women well-versed in Geology, you sprinkle the land, having various substances in her womb and able to cover men with happiness, but remaining un-utilized or uncultivated like a barren land; you arrange for a cheerful Youngman properly sleeping at night as a result of exertion in day time, the young girl of a man having many friends.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(स्तर्यम् ) सुखैराच्छादिकाम् = Covering with happiness. (विषक्ताम्) विविधै: पदार्थैर्युक्ताम् = Possessed of various articles. (विमदाय) विशेषमदयुक्ताय = Full of great joy or cheerful. (योषाम् ) युवंति कन्याम् = Youthful daughter.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O officers of the State, as you protect a beautiful, Brahmacharini learned, righteous, good natured girl by arranging her marriage with a suitable cheerful young man of jovial nature, in the same manner, having attained the kingdom, you should preserve and protect it by all legitimate means.
Translator's Notes
स्तर्यम् is derived from स्तृ ञ् आच्छादने क्या० अवि तस्ततन्त्रिभ्यई: (उणा० ३.१५८) इति ई प्रत्ययः । विषक्ताम् विपूर्वात् षंजसंगे इति धातोः (क्तः ततः स्त्रियां टाप् | मद-तृप्तियोगे चुरा० अथवा मदी-हर्षे योषाम् कुमारीम् सायणाचार्योऽपि It is wrong on the part of Sayanacharya, Prof. Wilson and others to take the words like विमद and पुरुमित्र as the names of particular persons instead of taking them as denoting certain attributes as the Vedic exegesis requires.
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