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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 32/ मन्त्र 15
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    म॒घोनः॑ स्म वृत्र॒हत्ये॑षु चोदय॒ ये दद॑ति प्रि॒या वसु॑। तव॒ प्रणी॑ती हर्यश्व सू॒रिभि॒र्विश्वा॑ तरेम दुरि॒ता ॥१५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒घोनः॑ । स्म॒ । वृ॒त्र॒ऽहत्ये॑षु । चो॒द॒य॒ । ये । दद॑ति । प्रि॒या । वसु॑ । तव॑ । प्रऽनी॑ती । ह॒रि॒ऽअ॒श्व॒ । सू॒रिऽभिः॑ । विश्वा॑ । त॒रे॒म॒ । दुः॒ऽइ॒ता ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मघोनः स्म वृत्रहत्येषु चोदय ये ददति प्रिया वसु। तव प्रणीती हर्यश्व सूरिभिर्विश्वा तरेम दुरिता ॥१५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मघोनः। स्म। वृत्रऽहत्येषु। चोदय। ये। ददति। प्रिया। वसु। तव। प्रऽनीती। हरिऽअश्व। सूरिऽभिः। विश्वा। तरेम। दुःऽइता ॥१५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 32; मन्त्र » 15
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स राजा किं कुर्य्यादित्याह ॥

    अन्वयः

    हे हर्यश्व ! सूरिभिस्सह ये तव प्रणीती प्रिया वसु ददति तान् ये च तव प्रणीती सूरिभिः सह वयं विश्वा दुरिता तरेम ताँश्च त्वं वृत्रहत्येषु मघोनः स्म चोदय ॥१५॥

    पदार्थः

    (मघोनः) धनाढ्यान् (स्म) एव (वृत्रहत्येषु) वृत्राणां शत्रूणां हत्या येषु सङ्ग्रामेषु तेषु (चोदय) प्रेरय (ये) (ददति) (प्रिया) प्रियाणि कमनीयानि (वसु) धनानि (तव) (प्रणीति) प्रकृष्टया नीत्या रक्षिताः सन्तः (हर्यश्व) हरयोऽश्वा महान्तो मनुष्या यस्य तत्सम्बुद्धौ (सूरिभिः) विद्वद्भिः सह (विश्वा) सर्वाणि (तरेम) (दुरिता) दुःखानि ॥१५॥

    भावार्थः

    हे राजन् ! भवान् यदि पक्षपातं विहाय सर्वान् रक्षेदुदारान् धनाढ्यान् सङ्ग्रामेषु प्रेरयेत्तर्हि सर्वे वयं सर्वाणि दुःखानि तरेम ॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह राजा क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (हर्यश्व) हरणशील महान् घोड़ोंवाले मनुष्य ! (सूरिभिः) विद्वानों के साथ (ये) जो (तव) आपकी (प्रणीती) उत्तम नीति से (प्रिया) प्रिय मनोहर (वसु) धनों को (ददति) देते हैं उनको और जो आपकी उत्तम नीति और विद्वानों के साथ हम लोग (विश्वा) सब (दुरिता) दुःखों को (तरेम) तरें उन्हें भी आप (वृत्रहत्येषु) शत्रुओं की हिंसा जिनमें होती है उनमें (मघोनः) धनाढ्य करने (स्म) ही को (चोदय) प्रेरणा देओ ॥१५॥

    भावार्थ

    हे राजा ! आप यदि पक्षपात को छोड़ के सबकी रक्षा करें और उदार धनाढ्यों को संग्राम में प्रेरणा दें तो सब हम लोग सब दुःखों को तरें ॥१५॥

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    विषय

    प्रभु राजा का वैभव ।

    भावार्थ

    ( ये ) जो लोग ( प्रिया वसु ) प्रिय धन ( ददति ) प्रदान करते हैं उन (मघोनः) ऐश्वर्यवान् पुरुषों को ही (वृत्र-हत्येषु ) शत्रुओं का नाश करने के संग्राम आदि कार्यों वा धनों को प्राप्त करने के उद्योगों में ( चोदय स्म) नित्य प्रेरित किया कर। हे ( हरि-अश्व ) हे उत्तम बलवान् मनुष्यों के स्वामिन् ( तव ) तेरी (प्रणीती ) उत्तम नीति और न्यायपूर्वक शासन में ( सूरिभिः ) विद्वान् पुरुषों की सहायता से ( विश्वा दुरिता ) सब प्रकार के दुःखजनक कारणों और दुष्टाचारों को ( तरेम ) पार कर जावें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठः । २६ वसिष्ठः शक्तिर्वा ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ।। छन्दः – १, ४, २४ विराड् बृहती । ६, ८,१२,१६,१८,२६ निचृद् बृहती । ११, २७ बृहती । १७, २५ भुरिग्बृहती २१ स्वराड् बृहती । २, ६ पंक्तिः । ५, १३,१५,१६,२३ निचृत्पांक्ति: । ३ साम्नी पंक्तिः । ७ विराट् पंक्तिः । १०, १४ भुरिगनुष्टुप् । २०, २२ स्वराडनुष्टुप्॥ सप्तविंशत्यूचं सूक्तम्॥

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    विषय

    न्याययुक्त शासन से प्रजा सुखी

    पदार्थ

    पदार्थ - (ये) = जो लोग (प्रिया वसु) = प्रिय धन (ददति) = दान करते हैं उन (मघोनः) = ऐश्वर्यवान् पुरुषों को (वृत्र हत्येषु) = शत्रुनाशक संग्राम आदि कार्यों में (चोदय स्म) = प्रेरित कर। हे (हरि-अश्व) = मनुष्यों के स्वामिन् ! (तव) = तेरी (प्रणीती) = उत्तम नीति में (सूरिभिः) = विद्वानों की सहायता से (विश्वा दुरिता) = सब दुःखजनक कारणों को (तरेम) = पार करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- राजा को योग्य है कि विद्वानों की सम्मति एवं परामर्श से राष्ट्र को उन्नत करने की नीति तैयार कर लागू करे तथा उन विद्वानों के सहयोग से न्याययुक्त शासन व्यवस्था प्रदान कर प्रजा को सुखी एवं समृद्ध बनावे ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे राजा ! तू पक्षपात सोडून सर्वांचे रक्षण केलेस व उदार धनिक लोकांना युद्धात प्रेरणा दिलीस तर आम्ही सर्व लोक सर्व दुःखातून तरून जाऊ. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord commander of world forces, in the battles against darkness, want and evil, inspire those leaders of wealth, honour and power who contribute to world service in the manner dear to you. O ruler of the dynamics of nations, we pray, may we, along with the wise and the fearless, cross over all evils of the world under the guidance of your ethics, morals and policy in matters of universal values.

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