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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 32/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराड्बृहती स्वरः - मध्यमः

    इ॒म इन्द्रा॑य सुन्विरे॒ सोमा॑सो॒ दध्या॑शिरः। ताँ आ मदा॑य वज्रहस्त पी॒तये॒ हरि॑भ्यां या॒ह्योक॒ आ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मे । इन्द्रा॑य । सु॒न्वि॒रे॒ । सोमा॑सः । दधि॑ऽआशिरः । तान् । आ । मदा॑य । व॒ज्र॒ऽह॒स्त॒ । पी॒तये॑ । हरि॑ऽभ्याम् । या॒हि॒ । ओकः॑ । आ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इम इन्द्राय सुन्विरे सोमासो दध्याशिरः। ताँ आ मदाय वज्रहस्त पीतये हरिभ्यां याह्योक आ ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमे। इन्द्राय। सुन्विरे। सोमासः। दधिऽआशिरः। तान्। आ। मदाय। वज्रऽहस्त। पीतये। हरिऽभ्याम्। याहि। ओकः। आ ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 32; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुना राजादयः किमाचरेयुरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे वज्रहस्त ! य इमे दध्याशिरः सोमासो जना मदायेन्द्राय पीतये सुन्विरे महौषधिरसान् सुन्विरे तान् हरिभ्यां युक्तेन रथेनाऽऽयाहि शुभमोक आयाहि ॥४॥

    पदार्थः

    (इमे) (इन्द्राय) परमैश्वर्याय (सुन्विरे) सुन्वन्त्युत्पादयन्ति (सोमासः) प्रेरकाः (दध्याशिरः) ये दधत्यश्नन्ति ते (तान्) (आ) (मदाय) आनन्दाय (वज्रहस्त) शस्त्रास्त्रपाणे (पीतये) पानाय (हरिभ्याम्) सुशिक्षिताभ्यामश्वाभ्यां युक्ते रथेन (याहि) प्राप्नुहि (ओकः) गृहम् (आ) समन्तात् ॥४॥

    भावार्थः

    ये पुरुषार्थेन विद्याः प्राप्योद्यमं कुर्वन्ति ते राज्यश्रियं लभन्ते ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर राजा आदि क्या आचरण करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (वज्रहस्त) शस्त्र और अस्त्रों को हाथ में रखनेवाले ! जो (इमे) यह (दध्याशिरः) धारण करने और व्याप्त होनेवाले (सोमासः) प्रेरक जन (मदाय) आनन्द और (इन्द्राय) परमैश्वर्य के लिये तथा (पीतये) पीने को (सुन्विरे) अच्छे रसों को उत्पन्न करते हैं (तान्) उनको (हरिभ्याम्) अच्छी सीख पाये हुए घोड़ों से युक्त रथ से (आ, याहि) आओ शुभ (ओकः) स्थान को (आ) प्राप्त होओ ॥४॥

    भावार्थ

    जो पुरुषार्थ से विद्याओं को प्राप्त होकर उद्यम करते हैं, वे राज्यश्री को प्राप्त होते हैं ॥४॥

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    विषय

    राष्ट्र धारणार्थ शासक को राजा नियुक्त करे ।

    भावार्थ

    ( इमे ) ये ( दध्याशिरः ) राष्ट्र को धारण करने और उसका उपयोग करने वाले ( सोमासः ) ऐश्वर्य युक्त तेरे शासक जन ( सुन्विरे ) प्रजाओं का शासन करें । हे ( वज्रहस्त ) बलवीर्य को हाथों में धारण करने हारे राजन् ! ( पीतये ) राष्ट्र को पालन करने के लिये ( तानू आ याहि ) उनको प्राप्त कर और ( हरिभ्याम् ) उत्तम अश्वों से तू ( ओक: आयाहि ) अपने गृह, भवन को आ। इसी प्रकार ध्यान धारणा वाले जन प्रभु की आराधना करते हैं । वह उनके आनन्द देने और रक्षा करने के लिये प्राप्त हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठः । २६ वसिष्ठः शक्तिर्वा ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ।। छन्दः – १, ४, २४ विराड् बृहती । ६, ८,१२,१६,१८,२६ निचृद् बृहती । ११, २७ बृहती । १७, २५ भुरिग्बृहती २१ स्वराड् बृहती । २, ६ पंक्तिः । ५, १३,१५,१६,२३ निचृत्पांक्ति: । ३ साम्नी पंक्तिः । ७ विराट् पंक्तिः । १०, १४ भुरिगनुष्टुप् । २०, २२ स्वराडनुष्टुप्॥ सप्तविंशत्यूचं सूक्तम्॥

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    विषय

    राष्ट्रधारक शासक की नियुक्ति

    पदार्थ

    पदार्थ - (इमे) = ये (दध्याशिरः) = राष्ट्र के धारक (सोमास:) = ऐश्वर्ययुक्त शासक (सुन्विरे) = प्रजा का शासन करें। हे (वज्रहस्त) = बल को हाथों में धारणकर्ता राजन्! (पीतये) = राष्ट्र-पालन के लिये (तान् आ याहि) = उनको प्राप्त कर और (हरिभ्याम्) = उत्तम अश्वों से, तू (ओकः आयाहि) = अपने गृह को आ।

    भावार्थ

    भावार्थ- जो राजा वा सेनापति अपने राष्ट्र की रक्षा करने में सक्षम न हो, उसकी नियुक्ति राष्ट्र में नहीं होनी चाहिए। राजा वा सेनापति वही नियुक्त होवे जो राष्ट्र की रक्षा में समर्थ, तथा प्रजा व राष्ट्र की सम्पदा को सुरक्षित कर सके।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे पुरुषार्थाने विद्या प्राप्त करतात व उद्योग करतात ते राज्यश्री प्राप्त करतात. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    These somas of the nation’s honour and excellence energised by the ferment of inspiration and enthusiasm have been distilled to celebrate the dignity and majesty of the land and the ruler Indra. O lord wielder of the thunderbolt, come to our hall of fame for the joy of a drink of them. Come fast by the chariot drawn by horses of the winds.

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