ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 32/ मन्त्र 6
स वी॒रो अप्र॑तिष्कुत॒ इन्द्रे॑ण शूशुवे॒ नृभिः॑। यस्ते॑ गभी॒रा सव॑नानि वृत्रहन्त्सु॒नोत्या च॒ धाव॑ति ॥६॥
स्वर सहित पद पाठसः । वी॒रः । अप्र॑तिऽस्कुतः । इन्द्रे॑ण । शू॒शु॒वे॒ । नृऽभिः॑ । यः । ते॒ । ग॒भी॒रा । सव॑नानि । वृ॒त्र॒ऽह॒न् । सु॒नोति॑ । आ । च॒ । धाव॑ति ॥
स्वर रहित मन्त्र
स वीरो अप्रतिष्कुत इन्द्रेण शूशुवे नृभिः। यस्ते गभीरा सवनानि वृत्रहन्त्सुनोत्या च धावति ॥६॥
स्वर रहित पद पाठसः। वीरः। अप्रतिऽस्कुतः। इन्द्रेण। शूशुवे। नृऽभिः। यः। ते। गभीरा। सवनानि। वृत्रऽहन्। सुनोति। आ। च। धावति ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 32; मन्त्र » 6
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनर्मनुष्यः कैः सह किं कुर्यादित्याह ॥
अन्वयः
हे वृत्रहन् ! यस्तेऽप्रतिष्कुतो वीरो इन्द्रेण नृभिः सह शूशुवे गभीरा सवनानि सुनोति सद्य आधावति च स एव शत्रून् विजेतुं शक्नोति ॥६॥
पदार्थः
(सः) (वीरः) निर्भयः (अप्रतिष्कुतः) इतस्ततः कम्परहितः (इन्द्रेण) परमैश्वर्येण (शूशुवे) उपगच्छति (नृभिः) नायकैर्मनुष्यैः (यः) (ते) तव (गभीरा) गभीराणि (सवनानि) प्रेरणानि (वृत्रहन्) शत्रुहन्तः (सुनोति) (आ) (च) (धावति) ॥६॥
भावार्थः
य उत्तमैः पुरुषैः सहाऽभिसन्धिं दुष्टैः सह वैमनस्यं रक्षन्ति तेऽसंख्यमैश्वर्यमाप्नुवन्ति ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर मनुष्य किनके साथ क्या करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (वृत्रहन्) शत्रुओं को मारनेवाले ! (यः) जो (ते) आपका (अप्रतिष्कुतः) इधर उधर से निष्कंप (वीरः) निर्भय पुरुष (इन्द्रेण) परमैश्वर्य और (नृभिः) नायक मनुष्यों के साथ (शूशुवे) समीप आता है (गभीरा) गम्भीर (सवनानि) प्रेरणाओं को (सुनोति) उत्पन्न करता है शीघ्र (आ, धावति, च) दौड़ता है (सः) वही शत्रुओं को जीत सकता है ॥६॥
भावार्थ
जो उत्तम पुरुषों के साथ सब ओर से मित्रता और दुष्टों के साथ वैमनस्य रखते हैं, वे असंख्य ऐश्वर्य पाते हैं ॥६॥
विषय
राजा के गम्भीर शासनों के पालक की वृद्धि ।
भावार्थ
( यः ) जो पुरुष हे ( वृत्रहन् ) दुष्टों के नाश करने हारे ! और धनों के प्राप्त करने हारे राजन् ! ( यः ) जो ( ते ) तेरे (गभीरा ) गम्भीर ( सवना ) शासनों, आदेशों को ( सुनोति ) करता और ( आधावति च) आगे वेग से बढ़ता है (सः ) वह (वीरः) विविध विद्या और बल से युक्त पुरुष ( इन्द्रेण ) ऐश्वर्य और ( नृभिः ) उत्तम नायकों सहित ( अप्रतिष्कुतः ) सबसे बढ़कर ( शुशुचे ) हो जाता है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठः । २६ वसिष्ठः शक्तिर्वा ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ।। छन्दः – १, ४, २४ विराड् बृहती । ६, ८,१२,१६,१८,२६ निचृद् बृहती । ११, २७ बृहती । १७, २५ भुरिग्बृहती २१ स्वराड् बृहती । २, ६ पंक्तिः । ५, १३,१५,१६,२३ निचृत्पांक्ति: । ३ साम्नी पंक्तिः । ७ विराट् पंक्तिः । १०, १४ भुरिगनुष्टुप् । २०, २२ स्वराडनुष्टुप्॥ सप्तविंशत्यूचं सूक्तम्॥
विषय
राजाज्ञा का पालन हो
पदार्थ
पदार्थ - (यः) = जो पुरुष, हे (वृत्रहन्) = दुष्टों के नाशक राजन् ! (यः) = जो (ते) = तेरे (गभीरा) = गम्भीर (सवना) = आदेशों को (सुनोति) = करता और (आ-धावति च) = आगे बढ़ता है (सः) = वह (वीरः) = विविध विद्या और बल से युक्त पुरुष (इन्द्रेण) = ऐश्वर्य और (नृभिः) = उत्तम नायकों सहित (अप्रतिष्कृतः) = सर्वाधिक (शुशुवे) = हो जाता है।
भावार्थ
भावार्थ- राजा को जनप्रिय तथा जनहितकारी नियमों का निर्माण वेद के विद्वानों की सम्मति से करना चाहिए। प्रजा को भी राजा की आज्ञा व शासनादेश का स्वेच्छा से पालन करना चाहिए। इससे राष्ट्र सुदृढ़ बनता है।
मराठी (1)
भावार्थ
जे उत्तम पुरुषांबरोबर मैत्री ठेवतात व दुष्टांबरोबर वैमनस्य करतात ते अमाप ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
He who approaches you, does your behest and performs the serious assignments given by you, O destroyer of evil, he goes forward bold and unshaken, and, exhorted by leading men, rises under the protection of Indra.
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