ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 32/ मन्त्र 22
अ॒भि त्वा॑ शूर नोनु॒मोऽदु॑ग्धाइव धे॒नवः॑। ईशा॑नम॒स्य जग॑तः स्व॒र्दृश॒मीशा॑नमिन्द्र त॒स्थुषः॑ ॥२२॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । त्वा॒ । शू॒र॒ । नो॒नु॒मः॒ । अदु॑ग्धाःऽइव । धे॒नवः॑ । ईशा॑नम् । अ॒स्य । जग॑तः । स्वः॒ऽदृश॑म् । ईशा॑नम् । इ॒न्द्र॒ । त॒स्थुषः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि त्वा शूर नोनुमोऽदुग्धाइव धेनवः। ईशानमस्य जगतः स्वर्दृशमीशानमिन्द्र तस्थुषः ॥२२॥
स्वर रहित पद पाठअभि। त्वा। शूर। नोनुमः। अदुग्धाःऽइव। धेनवः। ईशानम्। अस्य। जगतः। स्वःऽदृशम्। ईशानम्। इन्द्र। तस्थुषः ॥२२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 32; मन्त्र » 22
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरस्य जगतः कः स्वामीत्याह ॥
अन्वयः
हे शूरेन्द्र परमात्मन्नस्य जगत ईशानमस्य तस्थुष ईशानं त्वा त्वां स्वर्दृशं धेनवोऽदुग्धा इव वयमभि नोनुमः ॥२२॥
पदार्थः
(न) (अभि) (त्वा) त्वाम् (शूर) पापाचाराणां हिंसकः (नोनुमः) भृशं नमामः (अदुग्धाइव) दुग्धरहिता इव (धेनवः) गावः (ईशानम्) ईषणशीलम् (अस्य) (जगतः) संसारस्य (स्वर्दृशम्) सुखं द्रष्टुम् (ईशानम्) निर्मातारम् (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (तस्थुषः) स्थावरस्य ॥२२॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यदि सततं सुखेच्छा स्यात्तर्हि परमात्मानमेव भवन्त उपासीरन् ॥२२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर इस जगत् का स्वामी कौन है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (शूर) पापाचरणों के हिंसक (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त परमात्मा ! (अस्य) इस (जगतः) जङ्गम के (ईशानम्) चेष्टा कराने और (तस्थुषः) स्थावर संसार के (ईशानम्) निर्माण करनेवाले (त्वा) आपको (स्वर्दृशम्) सुखपूर्वक देखने को (धेनवः) गौवें (अदुग्धाइव) दूधरहित हों जैसे, वैसे हम लोग (अभि, नोनुमः) सब ओर से निरन्तर नमते प्रणाम करते हैं ॥२२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्य ! यदि निरन्तर सुखेच्छा हो तो परमात्मा ही की आप लोग उपासना करें ॥२२॥
विषय
ईश्वर के प्रति वात्सल्य प्रेम ।
भावार्थ
हे ( शूर ) दुष्टों के नाशक ! ( अदुग्धाः धेनवः इव ) न दुही गौओं के समान हम लोग ( अस्य जगतः ) इस जंगम और (तस्थुषः) स्थावर चल और अचल संसार के ( ईशानम् ) स्वामी, सञ्चालक और निर्माता ( स्वर्दृशं त्वाम् ) सर्वद्रष्टा तुझको वा सुख आनन्द दर्शन के लिये तेरे प्रति ( अभि नोनुमः ) हम झुकते हैं । तेरी प्रेम से स्तुति करते हैं। अर्थात् जिस प्रकार न दुही गौएं प्रेम से अपना दुग्ध सर्वस्व देने के लिये गवाले के प्रति नमती हैं उसी प्रकार हम प्रभु के प्रति आत्मसमर्पण करने के लिये झुकें । हम प्रजाजन भी दुःखी अकिञ्चन तुझ सर्वस्व के स्वामी के प्रति पुत्र, धन, अन्नादि सुख प्राप्तयर्थ झुकते और स्तुति करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठः । २६ वसिष्ठः शक्तिर्वा ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ।। छन्दः – १, ४, २४ विराड् बृहती । ६, ८,१२,१६,१८,२६ निचृद् बृहती । ११, २७ बृहती । १७, २५ भुरिग्बृहती २१ स्वराड् बृहती । २, ६ पंक्तिः । ५, १३,१५,१६,२३ निचृत्पांक्ति: । ३ साम्नी पंक्तिः । ७ विराट् पंक्तिः । १०, १४ भुरिगनुष्टुप् । २०, २२ स्वराडनुष्टुप्॥ सप्तविंशत्यूचं सूक्तम्॥
विषय
ईश्वर के प्रति समर्पण
पदार्थ
पदार्थ- हे (शूर) = दुष्ट-नाशक ! (अदुग्धाः धेनवः इव) = न दुही गौओं के तुल्य हम (अस्य जगत:) = इस जंगम और (तस्थुष:) = स्थावर संसार के (ईशानम्) = सञ्चालक (इन्द्र) = हे परमैश्वर्यवान्। (स्वर्दृशं त्वाम्) = सर्वद्रष्टा तुझको, (अभि नोनुमः) = झुकते हैं।
भावार्थ
भावार्थ-जैसे पावसी हुई गाय ग्वाले के प्रति समर्पित हो जाती है। उसी प्रकार राष्ट्र के राजा और प्रजा ईश्वर के प्रति समर्पित होकर समस्त कार्यों को करें। ईश्वर की आज्ञा वेद के आदेश का पालन करें तथा उस प्रभु का धन्यवाद करें।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जर निरंतर सुखाची इच्छा असेल तर परमात्म्याचीच तुम्ही उपासना करा. ॥ २२ ॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord almighty, we adore you and wait for your blessings as lowing cows not yet milked wait for the master. Indra, lord of glory, you are ruler of the moving world and you are ruler of the unmoving world and your vision is bliss.
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