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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 12
    ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒भ्य॑र्ष सह॒स्रिणं॑ र॒यिं गोम॑न्तम॒श्विन॑म् । अ॒भि वाज॑मु॒त श्रव॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । अ॒र्ष॒ । स॒ह॒स्रिण॑म् । र॒यिम् । गोऽम॑न्तम् । अ॒श्विन॑म् । अ॒भि । वाज॑म् । उ॒त । श्रवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभ्यर्ष सहस्रिणं रयिं गोमन्तमश्विनम् । अभि वाजमुत श्रव: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । अर्ष । सहस्रिणम् । रयिम् । गोऽमन्तम् । अश्विनम् । अभि । वाजम् । उत । श्रवः ॥ ९.६३.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 12
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 32; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे जगदीश्वर ! भवान् (सहस्रिणं रयिम्) बहुविधानि धनानि यानि (गोमन्तम्) भूमिहिरण्यादियुतानि तथा (अश्विनम्) नानाविधवाहनपरिपूर्णानि अथ च (वाजम्) बलयुक्तानि (उत) अथ च (श्रवः) यशोरूपाणि तानि (अभ्यर्ष) अस्मभ्यं ददातु ॥१२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! आप (सहस्रिणम् रयिम्) अनन्त प्रकार के धनों को जो (गोमत्) अनेक प्रकार की भूमि-हिरण्यादियुक्त हैं तथा (अश्विनम्) जो विविध यानों से परिपूर्ण हैं और जो (वाजम्) बलरूप (उत) और (श्रवः) यशोरूप हैं, उनको (अभ्यर्ष) आप हमको दें ॥१२॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा ने अनन्त प्रकार के धनों की उपलब्धि का उपदेश किया है ॥१२॥

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    विषय

    सब कोशों का ऐश्वर्य

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! तू (रयिम्) = उस ऐश्वर्य को (अभि अर्ष) = हमें प्राप्त करा, जो कि (सहस्रिणम्) = [सहस्] सदा आनन्द से युक्त है, 'सहस्' वाला है। यही तो आनन्दमय कोश का ऐश्वर्य है 'सहोसि सहो मयि धेहि' । [२] उस ऐश्वर्य को प्राप्त करा जो कि (गोमन्तम्) = प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाला है तथा (अश्विनम्) = प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाला है । यही ऐश्वर्य प्राणमयकोश का है 'प्राणाः वाव इन्द्रियाणि' । [३] हे सोम ! तू हमें (वाजं अभि) = बल की ओर ले चल । यह बल ही मनोमयकोश का ऐश्वर्य है 'बलमसि बलं मयि धेहि' । (उत) = और (श्रवः) = ज्ञान की ओर तू हमें ले चल । हमारे विज्ञानमयकोश को ज्ञानैश्वर्य से तू परिपूर्ण कर ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें आनन्द, उत्तम इन्द्रियाँ, शक्ति व ज्ञान को प्राप्त करानेवाला हो ।

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    विषय

    उसके ऐश्वर्य में सहस्रों गौएं वा अश्वारोही आदि हों।

    भावार्थ

    तू (सहस्रिणं अश्विनं) सहस्रों सुखों से युक्त, अश्वों और (गोमन्तं) गौओं से युक्त (रयिम् अभि अर्ष) ऐश्वर्य प्राप्त कर। (उत) और ऐसा ही (वाजम् श्रवः अभि) ज्ञान, बल, कीर्त्ति भी प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Let flow to us a thousandfold wealth of lands and cows, arts and culture, horses and progressive achievements. Bring us also speed, energy, and victorious success, and undying fame and excellence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमेश्वराने अनन्त प्रकारच्या धनाच्या उपलब्धीचा आदेश दिलेला आहे. ॥१२॥

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