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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 13
    ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    सोमो॑ दे॒वो न सूर्योऽद्रि॑भिः पवते सु॒तः । दधा॑नः क॒लशे॒ रस॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सोमः॑ । दे॒वः । न । सूर्यः॑ । अद्रि॑ऽभिः । प॒व॒ते॒ । सु॒तः । दधा॑नः । क॒लशे॑ । रस॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोमो देवो न सूर्योऽद्रिभिः पवते सुतः । दधानः कलशे रसम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सोमः । देवः । न । सूर्यः । अद्रिऽभिः । पवते । सुतः । दधानः । कलशे । रसम् ॥ ९.६३.१३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 13
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 32; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोमः) सूते चराचरं जगदिति सोमः समस्तविश्वविधाता (देवः) दिव्यगुणसम्पन्न ईश्वरः (सूर्यः न) सूर्य इव (अद्रिभिः) स्वकीयशक्तिभिः (पवते) पवित्रयति। तथा यः (सुतः) स्वयंसिद्धः परमात्मा (कलशे) अखिलपदार्थेषु (रसम्) आनन्दं (दधानः) धारयति ॥१३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोमः) सब संसार को उत्पन्न करनेवाला (देवः) दिव्यस्वरूप (सूर्यः न) सूर्य के समान (अद्रिभिः) अपनी शक्तियों से (पवते) पवित्र करता है और (सुतः) स्वतःसिद्ध परमात्मा जो (कळशे) प्रत्येक पदार्थ में (रसं) रस को (दधानः) धारण कराता है ॥१३॥

    भावार्थ

    परमात्मदेव ही प्रत्येक पदार्थ रस को उत्पन्न करता है और वही अपनी शक्तियों से सबको पवित्र करता है ॥१३॥

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    विषय

    प्रकाश - पवित्रता - मधुरता

    पदार्थ

    [१] (सोमः) = शरीर में उत्पन्न होनेवाला सोम (सूर्यः देवः न) = सूर्य देव के समान है। सूर्योदय होता है और सारा अन्धकार विनष्ट हो जाता है। इसी प्रकार हमारे जीवन-गणना में भी सोमरक्षण के द्वारा ज्ञान-सूर्य का उदय होता है और सब अज्ञानान्धकार विलुप्त हो जाता है। [२] (अद्रिभिः) = उपासकों से [ adore ] (सुतः) = उत्पन्न किया गया यह सोम (पवते) = जीवन को पवित्र करता है । यह सोम (कलशे) = सोलह कलाओं के निवास स्थानभूत इस शरीर में (रसं दधानः) = रस को धारण करता है। शरीर में सुरक्षित हुआ हुआ यह जीवन को रसमय [मधुर] बनाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम [१] अज्ञानान्धकार को नष्ट करता है, [२] जीवन को पवित्र बनाता है, [३] इसमें मधुरता को भरता है ।

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    विषय

    मेघ के तुल्य अभिषेचनीय प्रजा की स्थिति

    भावार्थ

    (देवः सूर्यः न) प्रकाशमान सूर्य जिस प्रकार (अद्रिभिः) मेघों से (कलशे रसम् दधानः पवते) अन्तरिक्ष में जल को धारण करता हुआ क्षरित होता है, बरसता है, उसी प्रकार (कलशे रसम दधानः) कलश में जल रखकर (सुतः) अभिषिक्त (देवः) दानशील, तेजस्वी (सोमः) ऐश्वर्यवान् पदाभिषिक्त जन भी (अद्रिभिः पवते) शस्त्र-आदि बलों वा आदरणीय कार्यों से राष्ट्र को स्वच्छ करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, self-existent divine power of creativity, radiates, energises and purifies all like the generous refulgent sun vesting the sap of life in every form of existence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वरच प्रत्येक पदार्थात रस उत्पन्न करतो व तोच आपल्या शक्तींनी सर्वांना पवित्र करतो. ॥१३॥

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