ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 28
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
पु॒ना॒नः सो॑म॒ धार॒येन्दो॒ विश्वा॒ अप॒ स्रिध॑: । ज॒हि रक्षां॑सि सुक्रतो ॥
स्वर सहित पद पाठपु॒ना॒नः । सो॒म॒ धार॑या । इन्दो॒ इति॑ । विश्वा॑ । अप॑ । स्रिधः॑ । ज॒हि । रक्षां॑सि । सु॒क्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो ॥
स्वर रहित मन्त्र
पुनानः सोम धारयेन्दो विश्वा अप स्रिध: । जहि रक्षांसि सुक्रतो ॥
स्वर रहित पद पाठपुनानः । सोम धारया । इन्दो इति । विश्वा । अप । स्रिधः । जहि । रक्षांसि । सुक्रतो इति सुऽक्रतो ॥ ९.६३.२८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 28
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 35; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 35; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे सौम्यस्वभाव विद्वन् ! भवान् (धारया) आमोदवृष्ट्या (पुनानः) पवित्रयन् (विश्वा अपस्रिधः) समस्तान् धर्मविरोधिनः (रक्षांसि) राक्षसान् (जहि) नाशयतु (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप ! (सुक्रतो) हे यज्ञस्वरूप ! भवान् अनाचारिनाशं करोतु ॥२८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे सौम्य स्वभाववाले विद्वन् ! आप (धारया) आनन्दवृष्टि से (पुनानः) हमको पवित्र करते हुए (विश्वा अपस्रिधः) सम्पूर्ण धर्मविरोधियों का (जहि) नाश करो, (रक्षांसि) जो राक्षस शुभ कर्मों के नाशक हैं। हे सुक्रतो ! अनाचारियों का नाश करो ॥२८॥
भावार्थ
धीरवीरतादि गुणसम्पन्न शूरवीर दुराचारी राक्षसों का नाश करके देश में सदाचार का प्रचार करता है ॥२८॥
विषय
रक्षांसि अपजहि
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले ! तू (पुनानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करता हुआ धारया अपनी धारणशक्ति से (विश्वाः) = सब (स्त्रिधः) = हिंसक शत्रुओं को (अपजहि-इ) = सुदूर विनष्ट करनेवाला हो। [२] हे (सुक्रतो) = उत्तम शक्ति व प्रज्ञानवाले सोम ! तू (रक्षांसि) = राक्षसी भावों को विनष्ट करनेवाला बन ।
भावार्थ
भावार्थ- सुररिक्षत सोम हमारे शत्रुओं को विनष्ट करनेवाला हो। इसके रक्षण से राक्षसी भाव हमारे से दूर हों ।
विषय
विद्वानों का कर्त्तव्य, दुष्टों का नाश।
भावार्थ
हे (सुक्रतो सोम) उत्तम काम करने वाले, शुभ, ज्ञानवान् विद्वन् ! (इन्दो) उस प्रभु के उपासक ! तू (धारया) वाणी द्वारा (स्रिधः अप जहि) द्वेषकारी हिंसा का नाश कर और (रक्षांसि अप जहि) विघ्नकारी दुष्ट पुरुषों को भी दूर कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, creative divinity, bright, blissful and dynamic, pure and purifying spirit of holy action, flow by the stream and shower of life and grace, ward off all hurdles of negativity and eliminate all evil forces of destruction.
मराठी (1)
भावार्थ
धीर वीर गुणसंपन्न शूरवीर लोक दुराचारी राक्षसांचा नाश करून देशात सदाचाराचा प्रचार करतो. ॥२८॥
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