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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 21
    ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    वृष॑णं धी॒भिर॒प्तुरं॒ सोम॑मृ॒तस्य॒ धार॑या । म॒ती विप्रा॒: सम॑स्वरन् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृष॑णम् । धी॒भिः । अ॒प्ऽतुर॑म् । सोम॑म् । ऋ॒तस्य॑ । धार॑या । म॒ती । विप्राः॑ । सम् । अ॒स्व॒र॒न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषणं धीभिरप्तुरं सोममृतस्य धारया । मती विप्रा: समस्वरन् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषणम् । धीभिः । अप्ऽतुरम् । सोमम् । ऋतस्य । धारया । मती । विप्राः । सम् । अस्वरन् ॥ ९.६३.२१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 21
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 34; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (विप्राः) बुद्धिमन्तः पुरुषाः (वृषणम्) कामनावर्षकं (सोमम्) परमात्मानं (धीभिः) शुद्धबुद्ध्या (मती) स्तुत्या तथा (ऋतस्य धारया) सत्यधारणतया (समस्वरन्) बुद्धिविषयं कुर्वन्ति ॥२१॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (विप्राः) मेधावीजन (वृषणं) कामनाओं की वृष्टि करानेवाले (सोमम्) परमात्मा को (धीभिः) शुद्धबुद्धि द्वारा (मती) स्तुति से तथा (ऋतस्य धारया) सत्य की धारणा से (समस्वरन्) बुद्धिविषय करते हैं ॥२१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र से परमात्मा के साक्षात्कार करने का उपदेश किया है ॥२१॥

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    विषय

    वृषणं अप्तुरम्

    पदार्थ

    [१] (विप्राः) = अपना पूरण करनेवाले ज्ञानी लोग (ऋतस्य धारया) = ऋत के, जो भी ठीक है उसके धारण के हेतु से (मती) = मननपूर्वक (सोमं समस्वरन्) = सोम का स्तवन करते हैं, सोम के गुणों का उच्चारण करते हैं । [२] उस सोम के गुणों का उच्चारण करते हैं, जो कि (वृषणम्) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला है तथा (धीभिः अप्तुरम्) = बुद्धियों के साथ कर्मों को हमारे में प्रेरित करनेवाला है । सोमरक्षण से हम शक्तिसाली बनते हैं । यह सुरक्षित सोम हमें ज्ञानपूर्वक कर्मोंवाला बनाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम के गुणों का स्मरण करते हुए हम इसके रक्षण के द्वारा शक्तिशाली व कर्मशील बनते हैं ।

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    विषय

    सर्वोत्पादक प्रभु का गुण-स्तवन।

    भावार्थ

    (विप्राः) विद्वान् जन (वृषणं) बलवान्, सब सुखों के वर्षाने वाले, (सोमम्) सब के प्रेरक, सब के उत्पादक (अप्तुरम्) प्रजाओं, जीवों, प्राणों और प्रकृति के सूक्ष्म परमाणुओं के भी प्रेरक को (ऋतस्य धारया) सत्य ज्ञानमय वेद की वाणी से और (मती) स्तुति से (सम् अस्वरन्) एक ही साथ स्वरपूर्वक स्तुति करते, उसी के गुणों का वर्णन करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Vibrant poets, sages and scholars, with their thoughts, holy actions and spontaneous songs of truth and sincerity, celebrate Soma, generous giver, brave warrior and instant conqueror.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमेश्वराचा साक्षात्कार करण्याचा उपदेश केलेला आहे. ॥२१॥

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