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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 19
    ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    परि॒ वाजे॒ न वा॑ज॒युमव्यो॒ वारे॑षु सिञ्चत । इन्द्रा॑य॒ मधु॑मत्तमम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    परि॑ । वाजे॑ । न । वा॒ज॒ऽयुम् । अव्यः॑ । वारे॑षु । सि॒ञ्च॒त॒ । इन्द्रा॑य । मधु॑मत्ऽतमम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    परि वाजे न वाजयुमव्यो वारेषु सिञ्चत । इन्द्राय मधुमत्तमम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    परि । वाजे । न । वाजऽयुम् । अव्यः । वारेषु । सिञ्चत । इन्द्राय । मधुमत्ऽतमम् ॥ ९.६३.१९

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 19
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 33; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे जगदीश्वर ! (इन्द्राय) कर्मयोगिने (मधुमत्तमम्) सर्वोत्कृष्टमाधुर्यं (परिषिञ्चत) सिञ्चय। (अव्यः) सर्वरक्षको भवान् (वारेषु) वरणीयपदार्थेषु (वाजयुं न) वीर इव (वाजे) सङ्ग्रामे रक्षां करोतु ॥१९॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! (इन्द्राय) कर्मयोगी के लिये (मधुमत्तमम्) सर्वोपरि माधुर्य को (परिषिञ्चत) सिञ्चन करें (अव्यः) सबको रक्षा करनेवाले आप (वारेषु) वरणीय पदार्थों में (वाजयुं न) वीरों के समान (वाजे) युद्ध में रक्षा करें ॥१९॥

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करते हैं कि जो लोग कर्मयोगी और उद्योगी बनकर अपने लक्ष्य की पूर्ति में कटिबद्ध रहते हैं, परमात्मा वीरों के समान उनकी रक्षा करता है ॥१९॥

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    विषय

    'वाजयु-मधुमत्तम' सोम

    पदार्थ

    [१] (वाजे न) = जीवन संग्राम के निमित्त, संग्राम तुल्य इस जीवन में (वाजयुम्) = शक्ति को हमारे साथ जोड़नेवाले इस सोम को (अव्यः) = [ अवेः ] सोमरक्षक पुरुष के वारेषु वासनाओं के निवारण करने पर (परि सिञ्चत) = शरीर में चारों ओर सिक्त करनेवाले होवो । जब हम वासनाओं से ऊपर उठते हैं, तो सोम को शरीर में सुरक्षित कर पाते हैं । [२] उस सोम को शरीर में सिक्त करो, जो कि (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (मधुमत्तमम्) = जीवन को अतिशयेन मधुर बनानेवाला है। शरीर को यह सोम ही सब प्रकार से नीरोग व निर्मल बनाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें जीवन संग्राम में विजय के लिये शक्ति प्राप्त कराता है ।

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    विषय

    संग्राम-कुशल के समान बल, अन्न, ज्ञान आदि में श्रेष्ठ पुरुषों का भी भिन्न २ उत्तम पदों पर अभिषेक।

    भावार्थ

    हे विद्वान् लोगो ! (इन्द्राय) परमेश्वर्य पद के लिये (अव्यः वारेषु) प्रजा के रक्षकवत् या भूमि के वरण करने योग्य उत्तम पदों या ऐश्वर्यों के ऊपर (वाजे न वाजयुम्) संग्राम के निमित्त जैसे संग्राम-कुशल को अभिषिक्त किया जाता है उसी प्रकार (मधुमत्-तमम् परि सिञ्चत) सर्वोत्तम बल, अन्न, ज्ञान से युक्त पुरुष को ही अभिषिक्त करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    As in war you send up a heroic warrior to battle, so in times of peace of your choice create the sweetest and most brilliant soma of beauty and joy for the glory of the human order.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा उपदेश करतो की, जे लोक कर्मयोगी व उद्योगी बनून आपल्या लक्ष्याच्या पूर्तीसाठी कटिबद्ध असतात. परमात्मा वीरांप्रमाणे त्यांचे रक्षण करतो. ॥१९॥

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