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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 16
    ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र सो॑म॒ मधु॑मत्तमो रा॒ये अ॑र्ष प॒वित्र॒ आ । मदो॒ यो दे॑व॒वीत॑मः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । सो॒म॒ । मधु॑मत्ऽतमः । रा॒ये । अ॒र्ष॒ । प॒वित्रे॑ । आ । मदः॑ । यः । दे॒व॒ऽवीत॑मः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सोम मधुमत्तमो राये अर्ष पवित्र आ । मदो यो देववीतमः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सोम । मधुमत्ऽतमः । राये । अर्ष । पवित्रे । आ । मदः । यः । देवऽवीतमः ॥ ९.६३.१६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 16
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 33; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे जगन्नियन्तः ! भावत्कः (यः) यः (मदः) रसः (मधुमत्तमः) अतिस्वादुरस्ति तथा (देववीतमः) दिव्यस्वरूपस्तं रसं (राये) अस्मदैश्वर्याय (पवित्रे) शुद्धान्तःकरणेषु (प्रार्ष) प्रापयतु ॥१६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमेश्वर ! आपका (यः) जो (मदः) रस (मधुमत्तमः) अत्यन्त स्वादु तथा (देववीतमः) दिव्यस्वरूप है, उसको (राये) हमारे ऐश्वर्य के लिये (पवित्रे) पवित्रान्तःकरणों में (प्रार्ष) प्राप्त कराइये ॥१६॥

    भावार्थ

    जो पुरुष परमात्मा के आनन्द का अनुसन्धान करते हैं अर्थात् परमात्मा को ध्येय बनाकर उसके आह्लाद से आह्लादित होते हैं, वे सब प्रकार से अभ्युदय के पात्र होते हैं ॥१६॥

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    विषय

    माधुर्य-उल्लास - दिव्यता

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (पवित्रे) = पवित्र हृदयवाले पुरुष में राये सब ऐश्वर्यों की प्राप्ति के लिये, अन्नमय आदि कोशों को तेज आदि सम्पत्तियों से परिपूर्ण करने के लिये (आ प्र अर्ष) = शरीर में समन्तात् प्राप्त हो । रुधिर के साथ सारे शरीर में ही तेरा व्यापन हो । [२] वह तू हमें प्राप्त हो, (यः) = जो कि (मधुमत्तमः) = जीवन को अत्यन्त मधुर बनानेवाला है। (मदः) = उल्लास का जनक है और (देववीतमः) = अधिक से अधिक दिव्य गुणों को उत्पन्न करनेवाला है।

    भावार्थ

    भावार्थ- शरीर में सुरक्षित सोम हमें 'माधुर्य, उल्लास व दिव्यता' को प्राप्त कराता है।

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    विषय

    अभिषिक्त का सूर्यवत् पद।

    भावार्थ

    (यः) जो तू (देव-वीतमः) कान्तिमान् सूर्य के समान सबसे अधिक तेजस्वी, (मदः) हृष्ट पुष्ट है, वह तू हे (सोम) अभिषिक्त ! (मधुमत्तमः) मधुर अन्न, जल से तृप्त होने वाला, स्वयं मधुर ज्ञान से युक्त होकर (राये) ऐश्वर्य को प्राप्त करने के लिये (पवित्रे आ अर्ष) पवित्र पद को प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, lord of peace and bliss, let the highest joy, the best of honey sweets, most exhilarating and most divinely blest, flow free to the pure and pious soul of the celebrant for the sake of wealth, honour and excellence of life’s fulfilment.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे पुरुष परमात्म्याच्या आनंदाचे अनुसंधान करतात. अर्थात परमात्म्याला ध्येय मानून त्याच्या आल्हादाने आल्हादित होतात. त्यांचा सर्व प्रकारे अभ्युदय होतो. ॥१६॥

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