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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 29
    ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - ककुम्मतीगायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒प॒घ्नन्त्सो॑म र॒क्षसो॒ऽभ्य॑र्ष॒ कनि॑क्रदत् । द्यु॒मन्तं॒ शुष्म॑मुत्त॒मम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒प॒ऽघ्नन् । सो॒म॒ । र॒क्षशः॑ । अ॒भि । आ॒र्ष॒ । कनि॑क्रदत् । द्यु॒ऽमन्त॑म् । शुष्म॑म् । उ॒त्ऽत॒मम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपघ्नन्त्सोम रक्षसोऽभ्यर्ष कनिक्रदत् । द्युमन्तं शुष्ममुत्तमम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपऽघ्नन् । सोम । रक्षशः । अभि । आर्ष । कनिक्रदत् । द्युऽमन्तम् । शुष्मम् । उत्ऽतमम् ॥ ९.६३.२९

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 29
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 35; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे सौम्यस्वभाव ! भवान् (रक्षसः) राक्षसानां (अपघ्नन्) नाशं कुर्वन् (कनिक्रदत्) तथा शूरताया उपदेशं कुर्वन् (उत्तमम्) सर्वोत्कृष्टं (द्युमन्तम्) दीप्तिमन्तं (शुष्मम्) बलं (अभ्यर्ष) अस्मभ्यं ददातु ॥२९॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे सौम्यगुण सम्पन्न विद्वन् ! आप (रक्षसः) राक्षसों का (अपघ्नन्) नाश करते हुए (कनिक्रदत्) और शूरवीरता का उपदेश करते हुए (उत्तमं) उत्तम (द्युमन्तं) दीप्तिवाला (शुष्मम्) बल (अभ्यर्ष) हमको दें ॥२९॥

    भावार्थ

    जिस देश में सौम्यस्वभावयुक्त शूरवीर उत्पन्न होते हैं, उस देश में सर्वोपरि बल और ऐश्वर्य उत्पन्न होता है। तात्पर्य यह है कि ऐश्वर्य उत्पन्न करने के लिये धीरवीरतादि गुणों का धारण करना अत्यावश्यक है ॥२९॥

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    विषय

    द्युमान् शुष्म [गोमान् वाज]

    पदार्थ

    [१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते! (रक्षसः) = राक्षसीभावों व रोगकृमिरूप राक्षसों को (अपघ्नन्) = सुदूर विनष्ट करता हुआ तू (अभ्यर्ष) = हमें प्राप्त हो। (कनिक्रदत्) = हमारे अन्दर स्थित हुआ हुआ तू प्रभु के गुणों का उच्चारण करनेवाला बन । [२] तू (द्युमन्तम्) = ज्योतिर्मय (शुष्मम्) = बल को (आभर) = हमारे में भर । तेरे रक्षण से हमें ज्योति व शक्ति की प्राप्ति हो ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम रोगकृमियों को नष्ट करे, हमें प्रभु-स्तवन में प्रवृत्त करे, हमारे लिये ज्योतिर्मय शक्ति को प्राप्त करानेवाला हो ।

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    विषय

    वीर शासक का कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (सोम) विद्वान् पुरुष ! हे शासक जन ! तू (रक्षसः अप घ्नन्) दुष्ट पुरुषों का नाश करता हुआ (कनिक्रदत्) निरन्तर वीरवत् गर्जता या घोषणा करता हुआ (द्युमन्तं) तेजोयुक्त (उत्तमं शुष्मम्) उत्तम बल (अभि अर्ष) स्वयं प्राप्त कर और हमें प्राप्त करा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, spirit of creative peace and prosperity, dispelling and eliminating negative and destructive forces, roaring with success of positive progress, let streams of peace and prosperity flow full with highest strength, sweetness and light.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या देशात सौम्य स्वभावयुक्त शूरवीर उत्पन्न होतात त्या देशात सर्वश्रेष्ठ बल व ऐश्वर्य उत्पन्न होते. तात्पर्य हे की ऐश्वर्य उत्पन्न करण्यासाठी धैर्य, वीरता इत्यादी गुण धारण करणे अत्यावश्यक आहे. ॥२९॥

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