ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 18
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
आ प॑वस्व॒ हिर॑ण्यव॒दश्वा॑वत्सोम वी॒रव॑त् । वाजं॒ गोम॑न्त॒मा भ॑र ॥
स्वर सहित पद पाठआ । प॒व॒स्व॒ । हिर॑ण्यऽवत् । अश्व॑ऽवत् । सो॒म॒ । वी॒रऽव॑त् । वाज॑म् । गोऽम॑न्तम् । आ । भ॒र॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पवस्व हिरण्यवदश्वावत्सोम वीरवत् । वाजं गोमन्तमा भर ॥
स्वर रहित पद पाठआ । पवस्व । हिरण्यऽवत् । अश्वऽवत् । सोम । वीरऽवत् । वाजम् । गोऽमन्तम् । आ । भर ॥ ९.६३.१८
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 18
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 33; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 33; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे परमात्मन् ! भवान् (आपवस्व) अस्मान् परितः पवित्रयतु। भवान् (हिरण्यवत्) समस्तै- श्वर्यवानस्ति अथ च (अश्वावत्)। सर्वशक्तिसम्पन्नोऽस्ति (वीरवत्) विविधवीरस्वाम्यस्ति त्वं मां (गोमन्तं वाजम्) ज्ञानस्यैश्वर्येण (आ भर) परिपूरय ॥१८॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! आप (आपवस्व) हमको सब ओर से पवित्र करें। आप (हिरण्यवत्) सब प्रकार के ऐश्वर्यवाले हैं (अश्वावत्) सर्वशक्तिसम्पन्न हैं (वीरवत्) विविध प्रकार के वीरों के स्वामी हैं। आप हमको (गोमन्तं वाजम्) ज्ञान के ऐश्वर्य से (आभर) भरपूर करिये ॥१८॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मपरायण होते हैं, उनको परमात्मा विज्ञानादि अनन्त प्रकार के ऐश्वर्य से परिपूर्ण करता है ॥१८॥
विषय
गोमान् वाज
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते! तू (हिरण्यवत्) = ज्योति से युक्त, ज्ञान-ज्योतिवाली, (अश्वावत्) = उत्तम इन्द्रियाश्वोंवाले (वीरवत्) = उत्तम सन्तानोंवाले ऐश्वर्य को (आपवस्व) = सर्वथा प्राप्त करा । हम सोमरक्षण के द्वारा ज्ञान, उत्तम इन्द्रियों व वीर सन्तानों को प्राप्त करें। [२] हे सोम ! तू (गोमन्तम्) = प्रशस्त ज्ञान की वाणियोंवाले (वाजम्) = बल को (आभर) = हमारे में भरनेवाला हो। तेरे द्वारा ज्ञानाग्नि के दीपन से इन ज्ञान की वाणियों को ग्रहण करनेवाले बनें तथा शरीर में शक्ति सम्पन्न हों ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें 'ज्ञान प्रशस्त इन्द्रियों, वीर सन्तानों व शक्ति' को देनेवाला हो ।
विषय
उसके कर्त्तव्य, समृद्धि प्राप्ति।
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! तू (हिरण्यवत्, अश्ववत्, वीरवत्) सुवर्णादि धन, अश्वों और वीरों से युक्त (गोमन्तं वाजं) गवादि पशु- सम्पदा वाले ऐश्वर्य को (आ पवस्व) सब ओर से प्राप्त कर और (आ भर) हमें भी प्राप्त करा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Flow, O Soma, purify and exhilarate us, bearing golden graces of beauty, progressive success, brave progeny, vibrant victory and the prosperity of lands, cows, arts and culture.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक परमात्मपरायण असतात. त्यांना परमात्मा ज्ञान-विज्ञान इत्यादी अनंत प्रकारच्या ऐश्वर्याने परिपूर्ण करतो. ॥१८॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal