ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 4
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
ए॒ते अ॑सृग्रमा॒शवोऽति॒ ह्वरां॑सि ब॒भ्रव॑: । सोमा॑ ऋ॒तस्य॒ धार॑या ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ते । अ॒सृ॒ग्र॒म् । आ॒शवः॑ । अति॑ । ह्वरां॑सि । ब॒भ्रवः॑ । सोमाः॑ । ऋ॒तस्य॑ । धार॑या ॥
स्वर रहित मन्त्र
एते असृग्रमाशवोऽति ह्वरांसि बभ्रव: । सोमा ऋतस्य धारया ॥
स्वर रहित पद पाठएते । असृग्रम् । आशवः । अति । ह्वरांसि । बभ्रवः । सोमाः । ऋतस्य । धारया ॥ ९.६३.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 30; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एते) इमे (सोमाः) सौम्यस्वभावाः (बभ्रवः) ये दृढाः सन्ति ते (ऋतस्य) सत्यतायाः (धारया) धाराभिः (अति ह्वरांसि) राक्षसानतिक्रमन्तः (आशवः) येऽत्यन्ततेजस्विनः सन्ति, हे परमेश्वर ! तान् त्वं (असृग्रम्) उत्पादय ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एते) ये (सोमाः) सौम्यस्वभाव (बभ्रवः) जो दृढ़तायुक्त हैं, वे (ऋतस्य) सच्चाई की (धारया) धारा से (अतिह्वरांसि) राक्षसों को अतिक्रमण करते हुए (आशवः) जो अत्यन्त तेजस्वी हैं, हे परमात्मन् ! आप (असृग्रम्) उनको उत्पन्न करें ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करता है कि राजधर्मानुयायी पुरुषों ! तुम लोग उग्र स्वभाव को बनाओ, ताकि दुष्ट दस्यु और राक्षस तुम्हारे रौद्र स्वभाव से भयभीत होकर कोई अनाचार न फैला सकें ॥४॥
विषय
'ऋतमय ऋजु' जीवन
पदार्थ
[१] (एते सोमाः) = ये सोमकण (ऋतस्य धारया) = ऋत के धारण के हेतु से (असृग्रम्) = पैदा किये जाते हैं । उत्पन्न हुए-हुए ये सोम हमारे जीवन में ऋत का धारण करते हैं । हमारा जीवन इस सोम से ऋतमय बनता है । [२] ये सोम (आशवः) = हमें शीघ्रता से कार्य करानेवाले, हमारे में स्फूर्ति को देनेवाले होते हैं। ये (ह्वरांसि अति) = हमें सब कुटिलताओं से दूर ले जाते हैं तथा (बभ्रवः) = ये हमारा धारण करनेवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ - उत्पन्न हुए हुए सोम हमारे जीवन को ऋतमय व ऋजु बनाते हैं ।
भावार्थ
(एते बभ्रवः) ये बभ्रु वर्ण के, कापाय वस्त्र धारण करने वाले वा रक्त वर्ण के वा प्रजा को भरण पोषण करने में समर्थ, (सोमाः) वीर्यवान्, ऐश्वर्यवान् (ऋतस्य धारया) ज्ञान-ऐश्वर्य और जल की धारा से (ह्वरांसि) सब कुटिल भावों और कुटिल जनों को (अति) पार करके (आशवः) वेग से आगे बढ़ने वाले सजे अश्वों के समान (असृग्रम्) एक आश्रम से दूसरे आश्रम में प्रवेश करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
These somas, powers of peace, prosperity and joy, dynamic, fast and determined, advance, overcoming forces of crookedness, intrigue and negativity by the path of universal truth and law.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की राजधर्म नुयायी पुरुषांनो! तुम्ही उग्र स्वभावाचे बना त्यामुळे दुष्ट दस्यु व राक्षस तुमच्या रौद्र स्वभावाने भयभीत होऊन कोणताही अनाचार करणार नाहीत. ॥४॥
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