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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 10
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - ब्रह्मौदनः छन्दः - पुरोऽतिजगती विराड्जगती सूक्तम् - ब्रह्मौदन सूक्त
    82

    गृ॑हा॒ण ग्रावा॑णौ स॒कृतौ॑ वीर॒ हस्त॒ आ ते॑ दे॒वा य॒ज्ञिया॑ य॒ज्ञम॑गुः। त्रयो॒ वरा॑ यत॒मांस्त्वं वृ॑णी॒षे तास्ते॒ समृ॑द्धीरि॒ह रा॑धयामि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गृ॒हा॒ण । ग्रावा॑णौ । स॒ऽकृतौ॑ । वी॒र॒ । हस्ते॑ । आ । ते॒ । दे॒वा: । य॒ज्ञिया॑: । य॒ज्ञम् । अ॒गु: । त्रय॑: । वरा॑: । य॒त॒मान् । त्वम् । वृ॒णी॒षे । ता: । ते॒ । सम्ऽऋ॑ध्दी: । इ॒ह । रा॒ध॒या॒मि॒ ॥१.१०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गृहाण ग्रावाणौ सकृतौ वीर हस्त आ ते देवा यज्ञिया यज्ञमगुः। त्रयो वरा यतमांस्त्वं वृणीषे तास्ते समृद्धीरिह राधयामि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    गृहाण । ग्रावाणौ । सऽकृतौ । वीर । हस्ते । आ । ते । देवा: । यज्ञिया: । यज्ञम् । अगु: । त्रय: । वरा: । यतमान् । त्वम् । वृणीषे । ता: । ते । सम्ऽऋध्दी: । इह । राधयामि ॥१.१०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 1; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    (वीर) हे वीर ! (सकृतौ) मिलकर काम करनेवाले दोनों (ग्रावाणौ) सिलबट्टों को (हस्ते) हाथ में (गृहाण) ले, (यज्ञियाः) पूजायोग्य (देवाः) देवता [विजयी लोग] (ते) तेरे (यज्ञम्) यज्ञ [श्रेष्ठ व्यवहार में] (आ अगुः) आये हैं। (त्रयः) तीन [स्थान, नाम और जन्म] (वराः) वरदान हैं, (यतमान्) जिन-जिन को (त्वम्) तू (वृणीषे) माँगता है, (ते) तेरे लिये (ताः) उन (समृद्धीः) समृद्धियों को (इह) यहाँ [संसार में] (राधयामि) मैं सिद्ध करता हूँ ॥१०॥

    भावार्थ

    जो पराक्रमी पुरुष सिल-बट्टे के समान मिलकर काम करे, सब पुण्यात्मा विजयी पुरुष उसका साथ देवें और वह अपने स्थान वा स्थिति, नाम वा कीर्ति और जन्म वा मनुष्यजन्म को सफल करे ॥१०॥भगवान् यास्कमुनि का वचन है−“धाम तीन होते हैं, स्थान नाम और जन्म निरु० ९।२८ ॥”

    टिप्पणी

    १०−(गृहाण) स्वीकुरु (ग्रावाणौ) म० ९। अवहननपाषाणौ (सकृतौ) सहकर्मकर्तारौ (वीर) हे शूर (हस्ते) करे (ते) तव (देवाः) विजिगीषवः (यज्ञियाः) पूजार्हाः (यज्ञम्) श्रेष्ठव्यवहारम् (आ अगुः) इण् गतौ-लुङ्। आगमन् (त्रयः) स्थाननामजन्मरूपाः (वराः) वरणीयाः। प्रार्थनीयाः पदार्थाः (यतमान्) बहुषु यान् वरान् (त्वम्) (वृणीषे) याचसे (ताः) (ते) तुभ्यम् (समृद्धीः) सम्पत्तीः (इह) संसारे (राधयामि) संसाधयामि ॥

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    विषय

    त्रयः वराः

    पदार्थ

    १. हे (वीर) = वीर्यवन अध्वर्यो! तू (सकृतौ) = [सह-कृती] मिलकर कार्य करनेवाले इन (ग्रावाणी) = ऊखल ब मूसल को (हस्ते गृहाण) = हाथ में ले. अर्थात् यज्ञ के लिए हविद्रव्यों को तैयार करने के लिए सन्नद्ध हो। (ते यज्ञिया: देवा:) = वे यज्ञशील देव-पूजनीय ज्ञानी पुरुष-(यज्ञम् अगु:) = यज्ञ में आएँ और तेरे इस यज्ञ को सम्यक् सम्पन्न करें। २. (त्रयः वरा:) = यजमान से वरयितव्य [प्रार्थनीय] तीन ही पदार्थ हैं। एक तो 'कर्मसमृद्धि', दूसरी उसकी फलभूत 'ऐहिकी समृद्धि' [Prosperity] तथा 'आमुष्मिकी समृद्धि' [मोक्ष]। हे यजमान! (त्वम्) = तु (यतमान् वृणीषे) = जिन वरों को प्रार्थित करता है, (ते) = तेरे लिए (ता: समृद्धी:) = उन समृद्धियों को [कर्मसमृद्धि, ऐहिकी समृद्धि, आमुष्मिकी समृद्धि] (इह) = इस यज्ञ में (राधयामि) = संसिद्ध करता हैं। यह यज्ञ इष्टकामधुक् तो है ही।

    भावार्थ

    हम यज्ञसामग्री को सिद्ध करें। ज्ञानी ऋत्विज् हमारे यज्ञों में उपस्थित हों। हमें इन यज्ञों द्वारा कर्मसमृद्धि के साथ ऐहिकी व आमुष्मिकी समृद्धि प्राप्त हो।


     

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    भाषार्थ

    (वीर) हे वीर! (हस्ते) हाथ में, (ग्रावाणौ) सिल-बट्टा के समान सुदृढ़ ऊखल-मुसल को, (सकृतौ) जिन्होंने कि परस्पर मिल कर अवहनन कार्य करना है, (गृहाण) पकड़, (यज्ञियाः) पूज्य तथा सत्संग के योग्य तथा जिन का सत्कार ओदन भोग द्वारा करना है ऐसे (देवाः) देवकोटि के विद्वान् (ते) तेरे (यज्ञम्) इस राष्ट्र यज्ञ में (आ अगुः) आ गए हैं। (त्रयः वराः) तीन वर (यतमान) जिन्हें कि (त्वं वृणीषे) तू वरना चाहता है (ताः समृद्धीः) उन तीनों (ते) तेरे समृद्धिरूप वरों को (इह) इस यज्ञ में (राधयामि) मैं सिद्ध करता हूं।

    टिप्पणी

    ["राधयामि" द्वारा सप्तऋषियों में से कोई ऋषि, या कोई अन्य वरिष्ठ याज्ञिक विद्वान् अभिप्रेत है, जो कि राजा या सम्राट् के इस सत्कार यज्ञ का सम्पादन करेगा। वीर पद द्वारा राजा का या सम्राट् का सम्बोधन हुआ है। राजा केवल ग्रावाणौ को हाथ लगाता है, अवहनन क्रिया नहीं करता। अबहनन तो राजपत्नी करती है (मन्त्र ९)। इस सत्कार-यज्ञ में देवकोटि के विद्वान् आए हैं, इसलिये यज्ञ के लिये वरा गया वरिष्ठ विद्वान् राजा से कहता है कि तीनवर, जो कि तेरे लिये समृद्धिकारक हैं, उन का कथन कर, ताकि मैं उन के सम्पादन का यत्न करूं। सकृतौ= सह+कृतौ, कर्तरि क्तः]।

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    विषय

    ब्रह्मोदन रूप से प्रजापति के स्वरूपों का वर्णन।

    भावार्थ

    हे वीर ! राजन् ! गृहपते ! (सकृतौ) एक स्थान पर रखे हुए (ग्रावाणौ) ऊखल और मूसल दोनों को (हस्ते) हाथ में (गृहाण) पकड़। अर्थात् क्षत्रियों और प्रजाओं दोनों को अपने वश में रख। (यज्ञियाः) यज्ञ करने या राष्ट्र पालन में समर्थ (देवाः) विद्वान् देव तुल्य शासक लोग (ते यज्ञम् अगुः) तेरे यज्ञ में प्राप्त हों। (यतमान्) जिन जिन वरण करने योग्य श्रेष्ठ पुरुषों को (त्वं) तू (वृणीषे) वरण करता है वे (त्रयः वराः) तीन वर, श्रेष्ठ पुरुष हैं। (ताः) उन नाना प्रकार की (समृद्धीः) सम्पत्तियों को (ते) तेरे लिये मैं (राधयामि) प्राप्त कराता हूं।

    टिप्पणी

    ‘ग्रावाणौ सयुजौ’, ‘हस्ता’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। ब्रह्मोदनो देवता। १ अनुष्टुब्गर्भा भुरिक् पंक्तिः, २, ५ बृहतीगर्भा विराट्, ३ चतुष्पदा शाक्वरगर्भा जगती, ४, १५, १६ भुरिक्, ६ उष्णिक्, ८ विराङ्गायत्री, ६ शाक्करातिजागतगर्भा जगती, १० विराट पुरोऽतिजगती विराड् जगती, ११ अतिजगती, १७, २१, २४, २६, २८ विराड् जगत्यः, १८ अतिजागतगर्भापरातिजागताविराड्अतिजगती, २० अतिजागतगर्भापरा शाकराचतुष्पदाभुरिक् जगती, २९, ३१ भुरिक् २७ अतिजागतगर्भा जगती, ३५ चतुष्पात् ककुम्मत्युष्णिक्, ३६ पुरोविराड्, ३७ विराड् जगती, ७, १२, १४, १९, २२, २३, ३०-३४ त्रिष्टुभः। सप्तत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahmaudana

    Meaning

    Brave hero, holding as you are the two efficient soma grinders of complementarity in celebrative action, let the noble Devas, loved and adorable, come and join you in your creative programme. And, of the three gifts of action, honour and splendour of joyous success and prosperity, I make it possible for you to achieve as much as you choose to have.

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    Translation

    Seize in thy hand; O hero, the two joint-acting (sakrt) stones; the worshipful divinities have come to thy sacrifice; three boons, whichsoever thou choosest -- those successes do I here make successful (samrdhi) for thee.

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    Translation

    O braved priest, hold these two stones which work together in your hand. The learned men and the other physical forces concerned with Yajna come to your Yajna. There are three kinds of virtuos happiness, the spiritual, mundane and ultra mundane, which you elect for yourself. I, the head priest make you avail of all these prosperities.

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    Translation

    O King, grasp in thy hand the Kshatriya and Vaisha, the doers of noble deeds. The venerable learned persons have come unto thy sacrifice. Three wishes of thy heart which thou askest for, these happy gains for thee I here make ready.

    Footnote

    Grasp in thy hand: Control the military personnel and the businessmen. I: The priest. Three wishes: स्थान stability: नाम Fame, जन्म Human life, or success in action, success in this world, success in the next world.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १०−(गृहाण) स्वीकुरु (ग्रावाणौ) म० ९। अवहननपाषाणौ (सकृतौ) सहकर्मकर्तारौ (वीर) हे शूर (हस्ते) करे (ते) तव (देवाः) विजिगीषवः (यज्ञियाः) पूजार्हाः (यज्ञम्) श्रेष्ठव्यवहारम् (आ अगुः) इण् गतौ-लुङ्। आगमन् (त्रयः) स्थाननामजन्मरूपाः (वराः) वरणीयाः। प्रार्थनीयाः पदार्थाः (यतमान्) बहुषु यान् वरान् (त्वम्) (वृणीषे) याचसे (ताः) (ते) तुभ्यम् (समृद्धीः) सम्पत्तीः (इह) संसारे (राधयामि) संसाधयामि ॥

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