अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 3
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - ब्रह्मौदनः
छन्दः - चतुष्पदा शाक्वरगर्भा जगती
सूक्तम् - ब्रह्मौदन सूक्त
138
अग्नेऽज॑निष्ठा मह॒ते वी॒र्याय ब्रह्मौद॒नाय॒ पक्त॑वे जातवेदः। स॑प्तऋ॒षयो॑ भूत॒कृत॒स्ते त्वा॑जीजनन्न॒स्यै र॒यिं सर्व॑वीरं॒ नि य॑च्छ ॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । अज॑निष्ठा:: । म॒ह॒ते । वी॒र्या᳡य । ब्र॒ह्म॒ऽओद॒नाय॑ । पक्त॑वे । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । स॒प्त॒ऽऋ॒षय॑: । भू॒त॒ऽकृत॑: । ते । त्वा॒ । अ॒जी॒ज॒न॒न् । अ॒स्यै । र॒यिम् । सर्व॑ऽवीरम् । नि । य॒च्छ॒ ॥१.३॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्नेऽजनिष्ठा महते वीर्याय ब्रह्मौदनाय पक्तवे जातवेदः। सप्तऋषयो भूतकृतस्ते त्वाजीजनन्नस्यै रयिं सर्ववीरं नि यच्छ ॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने । अजनिष्ठा:: । महते । वीर्याय । ब्रह्मऽओदनाय । पक्तवे । जातऽवेद: । सप्तऽऋषय: । भूतऽकृत: । ते । त्वा । अजीजनन् । अस्यै । रयिम् । सर्वऽवीरम् । नि । यच्छ ॥१.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।
पदार्थ
(जातवेदः) हे प्रसिद्ध ज्ञानवाले (अग्ने) तेजस्वी वीर ! (महते) बड़े (वीर्याय) वीरत्व [पाने] के लिये (ब्रह्मौदनाय पक्तवे) ब्रह्म-ओदन [वेदज्ञान, अन्न वा धन बरसानेवाले परमात्मा] के पक्का [मन में दृढ़] करने को (अजनिष्ठाः) तू उत्पन्न हुआ है। (ते) उन (भूतकृतः) उचित कर्म करनेवाले (सप्तऋषयः) सात ऋषियों [त्वचा, नेत्र, कान, जिह्वा नाक, मन और बुद्धि] ने (त्वा) तुझ [शूर] को (अजीजनन्) प्रसिद्ध किया है, (अस्यै) इस [प्रजा म० १] को (सर्ववीरम्) सब वीरों से युक्त (रयिम्) धन (नि) नियम से (यच्छ) दे ॥३॥
भावार्थ
विद्वान् मनुष्य पराक्रम के साथ परमेश्वर की आज्ञा का पालन करे और मन बुद्धि द्वारा श्रेष्ठ कर्मों से प्रसिद्ध होकर प्रजापालन में तत्पर रहे ॥३॥
टिप्पणी
३−(अग्ने) हे तेजस्विन् (अजनिष्ठा) त्वमुत्पन्नोऽसि (महते) प्रभूताय (वीर्याय) वीरकर्मणे (ब्रह्मौदनाय) म० १। ब्रह्मणो वेदज्ञानस्य, अन्नस्य धनस्य वा सेचकाय वर्षकाय। परमेश्वराय (पक्तवे) डुपचष् पाके-तवेन्। पक्तुम्। मनसि दृढीकर्तुम् (जातवेदः) अ० १।७।२। हे प्रसिद्धज्ञानयुक्त (अजीजनन्) जनेर्ण्यन्ताल्लुङि चङि रूपम्। प्रसिद्धं कृतवन्तः (अस्यै) प्रजायै-म० १। (रयिम्) धनम् (सर्ववीरम्) सर्वैर्वीरैर्युक्तम् (नि) नियमेन (यच्छ) दाण् दाने-लोट्। देहि। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
विषय
महते वीर्याय,ब्रह्मौदनाय पक्तवे
पदार्थ
१. (अग्ने) = हे प्रगतिशील जीव! तू (महते वीर्याय) = महनीय वीर्य के लिए प्रशस्त पराक्रम के लिए-(अजनिष्ठाः) = प्रादुर्भूत हुआ है। हे (जातवेदः) = उत्पन्न ज्ञानवाले जीव! तू (ब्रह्मौदनाय पक्तवे) = ज्ञान के भोजन के परिपाक के लिए प्रादुर्भूत हुआ है। तूने शक्ति व ज्ञान का सम्पादन किया है। २. (ते) = वे (सप्त ऋषयः) = प्रभुपूजन करनेवाले [सप् to worship] व प्रभुपूजन द्वारा वासनाओं का संहार करनेवाले [ऋष् tokill] (भूतकृतः) = यथार्थ [सत्य] कमों को ही करनेवाले (त्वा अजीजनन्) = तुझे जन्म देनेवाले हुए। तू भी (अस्यै) = इस अपनी गृहपत्नी के लिए (सर्ववीरं रयिं नियच्छ) = सब वीर सन्तानोंवाले ऐश्वर्य को देनेवाला हो। गृहपति का यह कर्तव्य है कि संयत जीवन के द्वारा वह वीर सन्तानों को जन्म देनेवाला हो तथा उनके पालने के लिए पुरुषार्थ से आवश्यक ऐश्वर्य को जुटानेवाला बने।
भावार्थ
गृहपति को शक्तिशाली व ज्ञानप्रधान जीवनवाला बनना योग्य है। वह वीर सन्तानों से युक्त हो और ऐश्वर्य को घर में प्राप्त करानेवाला बने।
भाषार्थ
(जातवेदः) राष्ट्रोत्पन्न वस्तुओं के जानने वाले हे विद्वन् ! (अग्ने) हे राष्ट्र के् अग्रणी राजन् ! (महते वीर्याय) महान् वीरता के कर्मों को करने के लिये, तथा (ब्रह्मौदनाय पक्तवे) ब्रह्मौदन के कृषिपाक के लिये, (अजनिष्ठाः) तू पैदा हुआ है। (ते) उन (भूतकृतः सप्तऋषयः) सत्यानुष्ठानी सात ऋषियों ने (त्वा) तुझे (अजीजनन्) राजरूप में जन्म दिया है, (अस्यै) इस पृथिवी अर्थात् प्रजा के लिये (रयिम्) सम्पत्ति तथा (सर्ववीरम्) सब वीर (नियच्छ) नितरां प्रदान कर।
टिप्पणी
[जातवेदसे= "जातानि वेद, जातविद्यो वा जातप्रज्ञानः” (निरुक्त ७।५।१९)। पक्तवे= कृष्योदन के पकने के लिये। एतदर्थ कृषि की रक्षा तथा कृषि के लिये जल का प्रबन्ध करना राजा का कर्त्तव्य दर्शाया है। साथ ही राष्ट्ररक्षार्थ वीरता के कर्म, सम्पत्ति की वृद्धि, तथा युद्ध शिक्षा दे कर प्रजा को वीर बनाना ये भी राजा के कर्तव्य कर्म है।]
विषय
ब्रह्मोदन रूप से प्रजापति के स्वरूपों का वर्णन।
भावार्थ
हे (अग्ने) राजन् ! तू (महते वीर्याय) बड़े भारी वीर्य सामर्थ्य के लिये (अ जनिष्ठाः) उत्पन्न हो। हे (जातवेदः) जातप्रज्ञ विद्वान् या ऐश्वर्यवान् जातवेदः ! तू (ब्रह्मौदनाय पक्तवे) ब्रह्मशक्ति, विज्ञान द्वारा प्रजापति पद को परिपक्व या दृढ़ करने के लिये (अ जनिष्ठाः) उत्पन्न हो। (ते भूतकृतः सप्त ऋषयः) वे प्राणियों की सृष्टि करने, उनको व्यवस्थित करने वाले, सात ऋषि जन (त्वा अजीजनन्) तुझको उत्पन्न करते हैं। (अस्यै) इस पृथ्वी के लिये तू. (सर्ववीरं रयिम्) सब प्रकार के वीर-जनों से युक्त राय सामर्थ्य, यश और बल को (नि यच्छ) नियमित कर, व्यवस्थित कर।
टिप्पणी
(द्वि०) ‘पक्तये’ (तृ०) ‘सप्तर्षयो’, ‘जीजनन्नस्मे....नियच्छतम्’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। ब्रह्मोदनो देवता। १ अनुष्टुब्गर्भा भुरिक् पंक्तिः, २, ५ बृहतीगर्भा विराट्, ३ चतुष्पदा शाक्वरगर्भा जगती, ४, १५, १६ भुरिक्, ६ उष्णिक्, ८ विराङ्गायत्री, ६ शाक्करातिजागतगर्भा जगती, १० विराट पुरोऽतिजगती विराड् जगती, ११ अतिजगती, १७, २१, २४, २६, २८ विराड् जगत्यः, १८ अतिजागतगर्भापरातिजागताविराड्अतिजगती, २० अतिजागतगर्भापरा शाकराचतुष्पदाभुरिक् जगती, २९, ३१ भुरिक् २७ अतिजागतगर्भा जगती, ३५ चतुष्पात् ककुम्मत्युष्णिक्, ३६ पुरोविराड्, ३७ विराड् जगती, ७, १२, १४, १९, २२, २३, ३०-३४ त्रिष्टुभः। सप्तत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brahmaudana
Meaning
O Agni, universal light and leader of humanity, co-existent with all that is bom, you are born and you arise for great performance and glorious victories, and for the maturity and perfection of the food for enlightenment leading to the attainment of Brahma. Seven sagely powers who create higher and higher forms of being have created and consecrated you. Pray create and bless this nation of humanity with wealth, honour and excellence, all worthy of the brave.
Translation
O Agni, thou hast been born unto great heroism, unto the cooking of the brahmanrrice-dish, O Jatavedas; the seven Saptarshi seers-being makers - they have given thee -birth; do thou confirm to this woman wealth with all heroes.
Translation
The igneous element is ment for more powerful works pervading all the created objects. It is this fire which in heat form is created by Divinity for preparing the luminous whole of all worldly objects. The seven world—creating elements produce this. This fire gives it (Aditi) the wealth full of all the effect forms.
Translation
O noble, learned hero, thou art born for mighty valour, and firmly fixing in the mind, God, the Bestower of Vedic knowledge, food, and riches. These seven Rishis, the doers of noble deeds, have made thee renowned. Grant to this Earth wealth with store of heroes!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(अग्ने) हे तेजस्विन् (अजनिष्ठा) त्वमुत्पन्नोऽसि (महते) प्रभूताय (वीर्याय) वीरकर्मणे (ब्रह्मौदनाय) म० १। ब्रह्मणो वेदज्ञानस्य, अन्नस्य धनस्य वा सेचकाय वर्षकाय। परमेश्वराय (पक्तवे) डुपचष् पाके-तवेन्। पक्तुम्। मनसि दृढीकर्तुम् (जातवेदः) अ० १।७।२। हे प्रसिद्धज्ञानयुक्त (अजीजनन्) जनेर्ण्यन्ताल्लुङि चङि रूपम्। प्रसिद्धं कृतवन्तः (अस्यै) प्रजायै-म० १। (रयिम्) धनम् (सर्ववीरम्) सर्वैर्वीरैर्युक्तम् (नि) नियमेन (यच्छ) दाण् दाने-लोट्। देहि। अन्यत् पूर्ववत्-म० १ ॥
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