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अथर्ववेद के काण्ड - 11 के सूक्त 1 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 35
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - ब्रह्मौदनः छन्दः - चतुष्पदा ककुम्मत्युष्णिक् सूक्तम् - ब्रह्मौदन सूक्त
    45

    वृ॑ष॒भोसि॑ स्व॒र्ग ऋषी॑नार्षे॒यान्ग॑च्छ। सु॒कृतां॑ लो॒के सी॑द॒ तत्र॑ नौ संस्कृ॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृ॒ष॒भ: । अ॒सि॒ । स्व॒:ऽग: । ऋषी॑न् । आ॒र्षे॒यान् । ग॒च्छ॒ । सु॒ऽकृता॑म् । लो॒के । सी॒द॒ । तत्र॑ । नौ॒ । सं॒स्कृ॒तम् ॥१.३५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषभोसि स्वर्ग ऋषीनार्षेयान्गच्छ। सुकृतां लोके सीद तत्र नौ संस्कृतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषभ: । असि । स्व:ऽग: । ऋषीन् । आर्षेयान् । गच्छ । सुऽकृताम् । लोके । सीद । तत्र । नौ । संस्कृतम् ॥१.३५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 1; मन्त्र » 35
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।

    पदार्थ

    [हे परमात्मन् !] तू (वृषभः) महाबली और (स्वर्गः) सुख पहुँचानेवाला (असि) है, (ऋषीन्) ऋषियों [सूक्ष्मदर्शियों] को और (आर्षेयान्) ऋषियों में विख्यात पुरुषों को (गच्छ) प्राप्त हो। (सुकृताम्) सुकर्मियों के (लोके) समाज में (सीद) बैठ, (तत्र) वहाँ (नौ) हम दोनों का (संस्कृतम्) संस्कार होवे [अर्थात् मैं तेरी उपासना करूँ और तू मुझे बल देवे] ॥३५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य जगदीश्वर की उपासना करके पुण्यात्माओं के समान व्यवहार करते हैं, वे बली और सुखी होते हैं ॥३५॥

    टिप्पणी

    ३५−(वृषभः) अ० ४।५।१। वृषु प्रजनैश्ययोः-अभच्, कित्। महाबली (असि) (स्वर्गः) सुखस्य गमयिता (ऋषीन्) सूक्ष्मदर्शिनः पुरुषान् (आर्षेयान्) म० १३। ऋषिषु विख्यातान् (गच्छ) प्राप्नुहि (सुकृताम्) सुकर्मिणाम् (लोके) समाजे (सीद) तिष्ठ (तत्र) समाजे (नौ) आवयोः। मम च तव च (संस्कृतम्) संस्कारः ॥

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    विषय

    वृषभ:-स्वर्ग:

    पदार्थ

    १. हे प्रभो! आप (वृषभः असि) = सुखों व शक्ति का सेचन करनेवाले हैं, (स्वर्ग:) = प्रकाश को प्राप्त करानेवाले हैं [स्व: गमयति]।आप ऋषीन्-[ऋष् tokill] वासनाओं का संहार करनेवाले (आर्षेयान्) = [ऋषी वेदे भवान्] ज्ञान में रुचिवाले पुरुषों को (गच्छ) = प्राप्त होओ। २. आप (सुकृताम्) = पुण्यकर्मा लोगों के लोके-लोक में (सीद) = आसीन होओ। (तत्र) = वहाँ सुकर्मा लोगों के लोक में (नौ) = पति-पत्नी हम दोनों का (संस्कृतम्) = [Purification] पवित्रीकरण हो। सत्संग में हम पवित्र जीवनवाले बनें।

    भावार्थ

    प्रभु वृषभ हैं-स्वर्ग हैं। वासनाओं को विनष्ट करनेवाले ज्ञानरुचि-पुरुषों को प्राप्त होते हैं। पुण्यकर्मा लोगों के लोक में प्रभु का निवास है। वहाँ सजन-संग में ही हम पति पत्नी का पवित्रीकरण होता है।

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    भाषार्थ

    (वृषभः) धेनुओं, बैलो तथा कृष्यन्नों की वर्षा करने वाला, प्रभूत मात्रा में देने वाला हे बैल ! (असि) तू है, (स्वर्गः) तू सुख विशेष पहुंचाता है, (ऋषीन आर्षेयान) ऋषियों और ऋषि सन्तानों को (गच्छ) प्राप्त हो। (सुकृताम्) इन सुकर्मियों के (लोके) स्थान में (सीद) विद्यमान रह। (तत्र) उन ऋषियों और आर्षेयों में (नौ) हम दोनों का (संस्कृतम्) यह संस्कृति का कार्य हो, या हम दोनों का मिल करें यह सेवा कार्य हो।

    टिप्पणी

    [मेरी ओर से ऋषियों को तेरा समर्पण, तथा ऋषियों में रह कर उन की धेनुओं आदि को बढ़ाना], यह दो कार्य हम दोनों के सम्मिलित कर्म हैं। मन्त्र ३४ और ३५ के समन्वित अर्थों की दृष्टि से वृषभ का अर्थ बैल प्रतीत है। ऋषियों की सेवार्थ उन्हें "पुमान् धेनु" भी देनी चाहिये, यह मन्त्राभिप्राय है]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Brahmaudana

    Meaning

    O Yajna, meeting of the human and divine, you are Vrshabha, giver of the showers of prosperity, leading to the paradisal bliss of life. Be moving and bless the sages and their followers and disciples. Establish us in the life of the performers of holy action where there is the gracious life for both you and me.

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    Translation

    Thou art a heaven-going bull; go to the seers, to them of the seers; sit in the world of the well-doing (suhrtasya like) there is their preparation (sanskrta) for us both.

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    Translation

    This Yajna showers all sorts of pleasure and plenty on the performer, it is the giver of happiness, it gives seers of high spiritual attainments, it finds its proper place amid persons apt and engaged to perform good acts and let there remain this Yajna as the good and refined action of us the priest and perfomer of Yajna.

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    Translation

    O King, thou art the showerer of all blessings on the state, thou art the bestower of happiness. Befriend the Rishis and their offspring. Rest in the world of pious men: there is the place prepared for us both!

    Footnote

    Both: The king and the subjects

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३५−(वृषभः) अ० ४।५।१। वृषु प्रजनैश्ययोः-अभच्, कित्। महाबली (असि) (स्वर्गः) सुखस्य गमयिता (ऋषीन्) सूक्ष्मदर्शिनः पुरुषान् (आर्षेयान्) म० १३। ऋषिषु विख्यातान् (गच्छ) प्राप्नुहि (सुकृताम्) सुकर्मिणाम् (लोके) समाजे (सीद) तिष्ठ (तत्र) समाजे (नौ) आवयोः। मम च तव च (संस्कृतम्) संस्कारः ॥

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