अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 1/ मन्त्र 5
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - ब्रह्मौदनः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - ब्रह्मौदन सूक्त
90
त्रे॒धा भा॒गो निहि॑तो॒ यः पु॒रा वो॑ दे॒वानां॑ पितॄ॒णां मर्त्या॑नाम्। अंशा॑ञ्जानीध्वं॒ वि भ॑जामि॒ तान्वो॒ यो दे॒वानां॒ स इ॒मां पा॑रयाति ॥
स्वर सहित पद पाठत्रे॒धा । भा॒ग: । निऽहि॑त: । य: । पु॒रा । व॒: । दे॒वाना॑म् । पि॒तॄ॒णाम् । मर्त्या॑नाम् । अंशा॑न् । जा॒नी॒ध्व॒म् । वि । भ॒जा॒मि॒ । तान् । व॒: । य: । दे॒वाना॑म् । स: । इ॒माम् । पा॒र॒या॒ति॒ ॥१.५॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रेधा भागो निहितो यः पुरा वो देवानां पितॄणां मर्त्यानाम्। अंशाञ्जानीध्वं वि भजामि तान्वो यो देवानां स इमां पारयाति ॥
स्वर रहित पद पाठत्रेधा । भाग: । निऽहित: । य: । पुरा । व: । देवानाम् । पितॄणाम् । मर्त्यानाम् । अंशान् । जानीध्वम् । वि । भजामि । तान् । व: । य: । देवानाम् । स: । इमाम् । पारयाति ॥१.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
ब्रह्मज्ञान से उन्नति का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्यो !] (त्रेधा) तीन प्रकार से, (देवानाम्) देवताओं [विजयी जनों] का, (पितॄणाम्) पितरों [पालक पुरुषों] का और (मर्त्यानाम्) मर्त्यों [मरणधर्मियों] का, (यः) जो (वः) तुम्हारे लिये (भागः) भाग (पुरा) पहिले से (निहितः) ठहराया हुआ है। (जानीध्वम्) तुम जानो कि (तान् अंशान्) उन भागों को (वः) तुम्हारे लिये (वि भजामि) मैं [परमेश्वर] बाँटता हूँ, (यः) जो [भाग] (देवानाम्) देवताओं का है, (सः) वह (इमाम्) इस [प्रजा-म० १] को (पारयाति) पार लगावे ॥५॥
भावार्थ
ईश्वरनियम से अनादि काल से कर्मानुसार मनुष्य तीन प्रकार के हैं−एक उत्तम देवसंज्ञक दूसरे मध्यम पितृसंज्ञक और तीसरे निकृष्ट मर्त्यसंज्ञक। देवसंज्ञक श्रेष्ठ पुरुष ही अपनी प्रजा को यथावत् सुख पहुँचाने में समर्थ होते हैं ॥५॥
टिप्पणी
५−(त्रेधा) एधाच्च। पा० ५।३।४६। त्रि-एधाच्। त्रिप्रकारेण (भागः) अंशः (निहितः) स्थापितः (यः) (पुरा) पूर्वकाले। सृष्ट्यादौ (वः) युष्मभ्यम् (देवानाम्) विजयिनाम्। श्रेष्ठपुरुषाणाम् (पितॄणाम्) पालकानां मध्यमजनानाम् (मर्त्यानाम्) मरणधर्मणां निकृष्टजनानाम् (अंशान्) भागान् (जानीध्वम्) अवगच्छत (विभजामि) वण्टयामि परमेश्वरोऽहम् (तान्) (वः) युष्मभ्यम् (यः) भागः (देवानाम्) श्रेष्ठजनानाम् (सः) (इमाम्) प्रजाम्-म० १ (पारयाति) पार कर्मसमाप्तौ-लट्। पारयेत्। पारं नयेत् ॥
विषय
देवयज्ञ, पितृयज्ञ, अतिथियज्ञ
पदार्थ
१. हे मनुष्यो ! (पुरा) = सृष्टि के प्रारम्भ में ही (य:) = जो (व:) = तुम्हारे लिए (त्रेधा भागः निहित:) = तीन प्रकार से भाग रक्खा गया है, एक तो (देवानाम्) = वायु आदि देवों का, दूसरा (पितृणाम्) = पितरों का तथा तीसरा (मानाम्) = अतिथिरूप मनुष्यों का, (तान् अंशान् जानीध्वम्) = उन अंशों को तुम समझो। मैं उन सब अंशों को (वः विभजामि) = तुम्हारे लिए प्राप्त कराता हूँ। मैं तुम्हें इन सब यज्ञों के लिए आवश्यक धन प्राप्त कराता हूँ। २. इनमें (य:) = जो (देवानाम्) = देवों का भाग है, अर्थात् जो वायु आदि की शुद्धि के लिए देवयज्ञ किया जाता है, (स:) = वह (इमाम् पारयाति) = इस प्रजा को भवसागर से पार करता है-सब कष्टों से मुक्त करता है। नीरोगता का कारण बनकर यह देवयज्ञ प्रजा के जीवन को सुखी करता है।
भावार्थ
प्रभु ने हमें जो धन प्राप्त कराया है वह देवयज्ञ, पितृयज्ञ व अतिथियज्ञ के लिए नियुक्त किया जाना चाहिए। इनमें देवयज्ञ वायुशुद्धि द्वारा प्रजा को रोग आदि कष्टों से पार करता है।
भाषार्थ
हे प्रजाजनो! (वः) तुम्हारे लिये, (पुरा) अनादिकाल से, (यः) जो (त्रेधा, भागः; निहितः) त्रिविध भाग निश्चित किया है, (देवानाम्) एक भाग देवों का, (पितृणाम्) एक भाग पितरों का, (मर्त्यानाम्) एक भाग अन्य मनुष्यों का, (अंशान् जानीध्वम्) उन अंशों अर्थात् भागों को जानो, (तान्) उन भागों को (वः) तुम्हें (विभजामि) विभागानुसार मैं देता हूं, (यः) जो (देवानाम्) देवों का भाग है (सः) वह भाग (इमाम्) इस पृथिवी को अर्थात् पृथिवीस्थ प्रजा को (पारयाति) दुःखों और कष्टों के नद से पार करता है।
टिप्पणी
[जो अन्न आदि, राष्ट्र में उत्पन्न हो, राजनियम से उस के तीन भाग कर के उसे प्रजा के निमित्त निश्चित कर देने चाहिये। यह विभाग राज प्रबन्ध द्वारा होना चाहिये, जैसे कि यजुर्वेद में कहा है कि 'विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः (३०।४), अर्थात् "अभीष्ट साधक, राष्ट्रिय अद्भुत सम्पत्ति के विभाग-कर्त्ता का हम प्रजाजन आह्वान करते हैं"। इस से ज्ञात होता है कि राष्ट्र की उत्पत्तियों और सम्पत्तियों पर उत्पादकों का कोई एकाधिकार नहीं, अपितु वे सम्पत्तियां और उत्पत्तियां राष्ट्र की हैं, उन का यथोचित विभाग, राष्ट्रनियत "विभक्ता" करें। राष्ट्र की सम्पत्तियों और उत्पत्तियों के तीन विभाग होने चाहिये, उन-उन विभागों की जनसंख्या और आवश्यकतानुसार। देव हैं- विद्वान्, त्यागी, तपस्वी ऋषि-मुनि आदि। पितर हैं गृहस्थी। मनुष्य हैं, इन दोनों विभागों से अतिरिक्त सामान्य प्रजा बह्मचारी वानप्रस्थी आदि। सायणाचार्य के मत में देव हैं, यज्ञ पद्धति में जिन के निमित्त, आहुतियां दी जाती हैं अग्नि आदि। पितर हैं पिता, पितामह, प्रपितामह मृत व्यक्ति। मनुष्य हैं ब्राह्मण लोग]।
विषय
ब्रह्मोदन रूप से प्रजापति के स्वरूपों का वर्णन।
भावार्थ
(यः) जो (पुरा) पहले ही (त्रेधा भागः) तीन प्रकार के भाग (निहितः) बना कर रखे गये हैं एक (देवानाम्) देव, राज-शासकों के लिये दूसरा (पितॄणाम्) प्रजा के पालक आचार्य और वानप्रस्थी, माता पिता पितामह आदि का और तीसरा (मर्त्यानाम्) साधारण अन्य मनुष्यों का, अतिथियों का और गृह-वासियों का, हे देव, पितर और मर्त्यजनो ! (अहम्) मैं गृह-स्वामी या परमात्मा (वः) आप लोगों के (तान्) उन भागों को (वि भजामि) विशेष रूप से पृथक् पृथक् कर देता हूं। आप लोग अपने अपने (अंशान्) अंशों को (जानीध्वम्) पृथक् पृथक् जान लें। (यः) जो (देवानाम्) देवों शासकों का भाग है (सः) वह (इमाम्) इस पृथ्वी को (पाश्याति) पालन करता है।
टिप्पणी
(प्र०) ‘निहितो जातवेदाः’ (द्वि०) ‘पितृणामुत मर्त्यानां’ (च०) ‘सेवं पार’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। ब्रह्मोदनो देवता। १ अनुष्टुब्गर्भा भुरिक् पंक्तिः, २, ५ बृहतीगर्भा विराट्, ३ चतुष्पदा शाक्वरगर्भा जगती, ४, १५, १६ भुरिक्, ६ उष्णिक्, ८ विराङ्गायत्री, ६ शाक्करातिजागतगर्भा जगती, १० विराट पुरोऽतिजगती विराड् जगती, ११ अतिजगती, १७, २१, २४, २६, २८ विराड् जगत्यः, १८ अतिजागतगर्भापरातिजागताविराड्अतिजगती, २० अतिजागतगर्भापरा शाकराचतुष्पदाभुरिक् जगती, २९, ३१ भुरिक् २७ अतिजागतगर्भा जगती, ३५ चतुष्पात् ककुम्मत्युष्णिक्, ३६ पुरोविराड्, ३७ विराड् जगती, ७, १२, १४, १९, २२, २३, ३०-३४ त्रिष्टुभः। सप्तत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Brahmaudana
Meaning
The three-way shares of life’s gifts meant for Devas, Pitaras and mortal humanity, fixed and set apart since all time earlier, know you all that, and those shares I award to each one of you separately in full measure. Of these, that which is the share of Devas will save and lead this nation to fulfilment till the end of the journey.
Translation
Threefold is set down the share that is yours of old, of gods, of fathers, of mortals; know ye the portions (ansa); I share them out to you; that one that is the gods, shall set this woman across.
Translation
The three division which has been made prior is intended for Deva, Pitar and Martya, i.e. the creation has been classified in these three classes. O Ye jivas’ You know these divisions I (God) give to you and that whatever is for the Devas make happy to this subject.
Translation
Your portion from eternity is triply parted, portion of Devas, of Fathers and of mortals. Know all, your shares. I deal them out among you. The portion of the Devas shall save this land.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(त्रेधा) एधाच्च। पा० ५।३।४६। त्रि-एधाच्। त्रिप्रकारेण (भागः) अंशः (निहितः) स्थापितः (यः) (पुरा) पूर्वकाले। सृष्ट्यादौ (वः) युष्मभ्यम् (देवानाम्) विजयिनाम्। श्रेष्ठपुरुषाणाम् (पितॄणाम्) पालकानां मध्यमजनानाम् (मर्त्यानाम्) मरणधर्मणां निकृष्टजनानाम् (अंशान्) भागान् (जानीध्वम्) अवगच्छत (विभजामि) वण्टयामि परमेश्वरोऽहम् (तान्) (वः) युष्मभ्यम् (यः) भागः (देवानाम्) श्रेष्ठजनानाम् (सः) (इमाम्) प्रजाम्-म० १ (पारयाति) पार कर्मसमाप्तौ-लट्। पारयेत्। पारं नयेत् ॥
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