अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 5/ मन्त्र 25
पञ्च॑ रु॒क्मा पञ्च॒ नवा॑नि॒ वस्त्रा॒ पञ्चा॑स्मै धे॒नवः॑ काम॒दुघा॑ भवन्ति। यो॒जं पञ्चौ॑दनं॒ दक्षि॑णाज्योतिषं॒ ददा॑ति ॥
स्वर सहित पद पाठपञ्च॑ । रु॒क्मा । पञ्च॑ । नवा॑नि । वस्रा॑ । पञ्च॑ । अ॒स्मै॒ । धे॒नव॑: । का॒म॒ऽदुघा॑: । भ॒व॒न्ति॒ । य: । अ॒जम् । पञ्च॑ऽओदनम् । दक्षि॑णाऽज्योतिषम् । ददा॑ति ॥५.२५॥
स्वर रहित मन्त्र
पञ्च रुक्मा पञ्च नवानि वस्त्रा पञ्चास्मै धेनवः कामदुघा भवन्ति। योजं पञ्चौदनं दक्षिणाज्योतिषं ददाति ॥
स्वर रहित पद पाठपञ्च । रुक्मा । पञ्च । नवानि । वस्रा । पञ्च । अस्मै । धेनव: । कामऽदुघा: । भवन्ति । य: । अजम् । पञ्चऽओदनम् । दक्षिणाऽज्योतिषम् । ददाति ॥५.२५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 5; मन्त्र » 25
भाषार्थ -
(अस्मै) इस अध्यात्मगुरु के लिये (पञ्च रुक्मा) पांच सुवर्णाभूषण, (पञ्च नवानि वस्त्रा) पांच नवीन वस्त्र, (पञ्च कामदुघाः धेनवः) पांच यथेच्छ दूध देने वाली दुधारू गौएं (भवन्ति) देय होती हैं (यः) जो अध्यात्मगुरु (पञ्चौदनम्) पांच भोगों के स्वामी, (अजम्) अकाय, तथा (दक्षिणाज्योतिषम्) ज्योतिः स्वरूप परमेश्वर को दक्षिणा के फलस्वरूप में प्रदान करता है।
टिप्पणी -
[मन्त्र में "पञ्च” शब्द का प्रयोग हुआ है। इसलिये क्योंकि अध्यात्म गुरु ने पञ्च-इन्द्रिय भोगों पर शिष्य की विजय कराई है। प्रत्येक इन्द्रिय भोग पर विजय प्राप्त कराने के लिये, गुरु एक-एक सुवर्णाभूषण, वस्त्र, तथा उत्तम धेनु की प्राप्ति का अधिकारी होता है। इन्द्रिय भोगों पर विजय प्राप्त कराकर शिष्य के जीवन को सफल बनाना कोई साधारण कार्य नहीं। तो भी परिणाम रूप में कथित दक्षिणा, है भी मामूली। शिष्य पांच सुवर्णमालाएं तो कृतज्ञता रूप में गुरु की गर्दन पर पहनाता है, मुर्झा जाने वाली पुष्पमालाएं नहीं, तथा गुरु के परिधान के लिये पांच नवीन वस्त्र, तथा दुग्धसेवी गुरु के लिये पांच गौएं देता है, जिस द्वारा गुरु के परिवार का पालन-पोषण हो सके। पांच सुवर्ण-मालाएं भी तात्कालिक समारोह में गुरु के सम्मान के लिये ही हैं, गुरु ने स्वयं तो उन्हें पहिने नहीं रखना। ये भी गुरु के परिवार के लिये उपयोगी हो सकती हैं]