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  • यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 40
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्वा देवा ऋषयः देवता - रुद्रा देवताः छन्दः - अतिशक्वरी स्वरः - पञ्चमः
    6

    नमः॑ श॒ङ्गवे॑ च पशु॒पत॑ये च॒ नम॑ उ॒ग्राय॑ च भी॒माय॑ च॒ नमो॑ऽग्रेव॒धाय॑ च दूरेव॒धाय॑ च॒ नमो॑ ह॒न्त्रे च॒ हनी॑यसे च॒ नमो॑ वृ॒क्षेभ्यो॒ हरि॑केशेभ्यो॒ नम॑स्ता॒राय॑॥४०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नमः॑। श॒ङ्गव॒ इति॑ श॒म्ऽगवे॑। च॒। प॒शु॒पत॑य इति॑ प॒शु॒ऽपत॑ये। च॒। नमः॑। उ॒ग्राय॑। च॒। भी॒माय॑। च॒। नमः॑। अ॒ग्रे॒व॒धायेत्य॑ग्रेऽव॒धाय॑। च॒। दू॒रे॒व॒धायेति॑ दूरेऽव॒धाय॑। च॒। नमः॑। ह॒न्त्रे। च॒। हनी॑यसे। च॒। नमः॑। वृ॒क्षेभ्यः॑। हरि॑केशेभ्य इति॒ हरि॑ऽकेशेभ्यः। नमः॑। ता॒राय॑ ॥४० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमः शङ्गवे च पशुपतये च नम उग्राय च भीमाय च नमोग्रेवधाय च दूरेवधाय च नमो हन्त्रे च हनीयसे च नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यो नमस्ताराय ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    नमः। शङ्गव इति शम्ऽगवे। च। पशुपतय इति पशुऽपतये। च। नमः। उग्राय। च। भीमाय। च। नमः। अग्रेवधायेत्यग्रेऽवधाय। च। दूरेवधायेति दूरेऽवधाय। च। नमः। हन्त्रे। च। हनीयसे। च। नमः। वृक्षेभ्यः। हरिकेशेभ्य इति हरिऽकेशेभ्यः। नमः। ताराय॥४०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 16; मन्त्र » 40
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    पदार्थ -
    পদার্থঃ– সব মনুষ্য (শঙ্গবে) সুখ প্রাপ্ত হওয়া ব্যক্তিকে (চ) এবং (পশুপতয়ে) গাভি আদি পশুদিগের রক্ষাকারীকে (চ) এবং গাভি আদি কেও (নমঃ) অন্নাদি পদার্থ দিবে, (উগ্রায়) তেজস্বী (চ) এবং (ভীমায়) ভয় প্রদর্শন কারীদেরকে (চ)(নমঃ) সৎকার করিবে, (অগ্রেবধায়) প্রথমে শত্রুদেরকে বন্ধনকারী (চ) এবং (দূরেবধায়) দূরে শত্রুদিগকে বন্ধনকারী (চ) এবং হত্যাকারীকে ও (হ নীয়সে) দুষ্টদিগকে অত্যন্ত নির্মূল, বিনাশকারীদেরকে (চ)(নমঃ) অন্নাদি দিবে, (বৃক্ষেভ্যঃ) শত্রুদিগকে কাটিয়া ফেলার ব্যক্তিকে বা বৃক্ষসকলের এবং (হরিকেশেভ্যেঃ) সবুজ কেশ যুক্ত যুবক বা সবুজ পত্র বিশিষ্ট বৃক্ষ সকলের (নমঃ) সৎকার করিবে বা জলাদি দিবে এবং (তারায়) দুঃখ হইতে উত্তীর্ণকারী পুরুষকে (নমঃ) অন্নাদি দিবে এবং সুখী হইবে ॥ ৪০ ॥

    भावार्थ - ভাবার্থঃ–মনুষ্যদিগের উচিত যে, গাভি আদি পশুদিগের পালন এবং ভয়ঙ্কর জীবদিগের শান্তিকরণ দ্বারা সন্তোষ করিবে ॥ ৪০ ॥

    मन्त्र (बांग्ला) - নমঃ॑ শং॒গবে॑ চ পশু॒পত॑য়ে চ॒ নম॑ উ॒গ্রায়॑ চ ভী॒মায়॑ চ॒ নমো॑ऽগ্রেব॒ধায়॑ চ দূরেব॒ধায়॑ চ॒ নমো॑ হ॒ন্ত্রে চ॒ হনী॑য়সে চ॒ নমো॑ বৃ॒ক্ষেভ্যো॒ হরি॑কেশেভ্যো॒ নম॑স্তা॒রায়॑ ॥ ৪০ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - নমঃ শঙ্গব ইত্যস্য পরমেষ্ঠী প্রজাপতির্বা দেবা ঋষয়ঃ । রুদ্রা দেবতাঃ ।
    অতিশক্বরী ছন্দঃ । পঞ্চমঃ স্বরঃ ॥

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