Loading...

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 86
    ऋषिः - सप्तऋषय ऋषयः देवता - मरुतो देवताः छन्दः - निचृच्छक्वरी स्वरः - धैवतः
    0

    इन्द्रं॒ दैवी॒र्विशो॑ म॒रुतोऽनु॑वर्त्मानोऽभव॒न् यथेन्द्रं॒ दैवी॒र्विशो॑ म॒रुतोऽनु॑वर्त्मा॒नोऽभ॑वन्। ए॒वमि॒मं यज॑मानं॒ दैवी॑श्च॒ विशो॑ मानु॒षीश्चानु॑वर्त्मानो भवन्तु॥८६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म्। दैवीः॑। विशः॑। म॒रुतः॑। अनु॑वर्त्मान॒ इत्यनु॑ऽवर्त्मानः। अ॒भ॒व॒न्। यथा॑। इन्द्र॑म्। दैवीः॑। विशः॑। म॒रुतः॑। अ॒नु॑वर्त्मान॒ इत्यनु॑ऽवर्त्मानः। अ॒भ॒व॒न्। ए॒वम्। इ॒मम्। यज॑मानम्। दैवीः॑। च॒। विशः॑। मा॒नु॒षीः। च॒। अनु॑वर्त्मान॒ इत्यनु॑ऽवर्त्मानः। भ॒व॒न्तु॒ ॥८६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रन्दैवीर्विशो मरुतोनुवर्त्मानो भवन्यथेन्द्रन्दैवीर्विशो मरुतोनुवर्त्मानोभवन् । एवमिमँयजमानन्दैवीश्च विशो मानुषीश्चानुवर्त्मानो भवन्तु ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम्। दैवीः। विशः। मरुतः। अनुवर्त्मान इत्यनुऽवर्त्मानः। अभवन्। यथा। इन्द्रम्। दैवीः। विशः। मरुतः। अनुवर्त्मान इत्यनुऽवर्त्मानः। अभवन्। एवम्। इमम्। यजमानम्। दैवीः। च। विशः। मानुषीः। च। अनुवर्त्मान इत्यनुऽवर्त्मानः। भवन्तु॥८६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 86
    Acknowledgment

    पदार्थ -
    १. (इन्द्रम्) = इन्द्र के, (दैवी: विश:) = दिव्य गुणोंवाली विद्वान् प्रजाएँ तथा (मरुतः) = रणाङ्गण में देश के लिए प्राण दे देनेवाले [ म्रियन्ते] सैनिक (अनुवर्त्मानः) = अनुकूल मार्गवाले (अभवन्) = होते हैं। अथर्व के शब्दों में 'तं सभा च समितिश्च सेना च' जो राजा प्रजा का अनुरञ्जन करता है, सभा-समिति के सदस्य तथा सैनिक उसके अनुकूल होते हैं। यहाँ प्रस्तुत मन्त्र में सभा-समिति के सदस्यों को 'दैवीर्विश: ' शब्द से स्मरण किया है और सैनिकों को 'मरुतः' शब्द से। राजा के लिए यहाँ 'इन्द्र' शब्द का प्रयोग है। राजा ने जितेन्द्रिय-इन्द्रियों का अधिष्ठाता होना है। 'जितेन्द्रियो हि शक्नोति वशे स्थापयितुं प्रजाः 'यह जितेन्द्रिय राजा ही प्रजा को वश में स्थापित कर सकता है। ३. इस (इन्द्रम्) = जितेन्द्रिय राजा को (यथा) = जैसे (दैवी: विश:) = दिव्य गुणोंवाली प्रजाएँ तथा (मरुतः) = सैनिक (अनुवर्त्मान:) = अनुकूल मार्गवाले (अभवन्) = होते हैं, (एवम्) = इसी प्रकार (इमं यजमानम्) = इस प्राणसाधना के द्वारा यज्ञिय वृत्तिवाले पुरुष को (दैवीः च विशः) = दिव्य गुणोंवाले विद्वान् पुरुष तथा (मानुषी: च) = सामान्य व्यवहारी पुरुष भी (अनुवर्त्मानो भवन्तु) = अनुकूल मार्गवाले हों, अर्थात् इसके प्रति सभी का प्रेम होता है, चाहे विद्वान् हों, चाहे सामान्य व्यक्ति ।

    भावार्थ - भावार्थ- हम प्राणसाधना द्वारा यज्ञिय वृत्ति का विकास करें। जितनी जितनी हमारी वृत्ति यज्ञिय होगी उतनी उतनी हमें लोकानुकूलता प्राप्त होगी ।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top