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  • यजुर्वेद - अध्याय 17/ मन्त्र 50
    ऋषिः - अप्रतिरथ ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - विराडार्ष्यनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    उदे॑नमुत्त॒रां न॒याग्ने॑ घृतेनाहुत। रा॒यस्पोषे॑ण॒ सꣳसृ॑ज प्र॒जया॑ च ब॒हुं कृ॑धि॥५०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत्। ए॒न॒म्। उ॒त्त॒रामित्यु॑त्ऽत॒राम्। न॒य॒। अग्ने॑। घृ॒ते॒न॒। आ॒हु॒तेत्या॑ऽहुत। रा॒यः। पोषे॑ण। सम्। सृ॒ज॒। प्र॒जयेति॑ प्र॒ऽजया॑। च॒। ब॒हुम्। कृ॒धि॒ ॥५० ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदेनमुत्तरान्नयाग्ने घृतेनाहुत रायस्पोषेण सँ सृज प्रजया च बहुङ्कृधि ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। एनम्। उत्तरामित्युत्ऽतराम्। नय। अग्ने। घृतेन। आहुतेत्याऽहुत। रायः। पोषेण। सम्। सृज। प्रजयेति प्रऽजया। च। बहुम्। कृधि॥५०॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 17; मन्त्र » 50
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    पदार्थ -
    १. (एनम्) = गत मन्त्र के अनुसार ब्रह्मरूप कवच के धारण करनेवाले और सोम-रक्षा से अपने को अमर बनानेवाले को (उत्) = इन प्राकृतिक भोगों से ऊपर उठाकर [उत्=out] (उत्तराम्) = [अतिशयेन उत्= उत्तराम्] उत्कृष्टत्व को, उत्कृष्ट ऐश्वर्य को (नय) = प्राप्त कराइए । २. (अग्ने) = सब उत्कर्षो के प्रापक हे प्रभो। (घृतेन) = मलों के क्षरण [घृ-क्षरण] व ज्ञान की दीप्ति से (आहुत) [हूयमान] = जिसके प्रति अपना अर्पण किया गया है, ऐसे प्रभो! आप इस 'ब्रह्म कवची, सोम-रक्षक' को उत्कर्ष की ओर ले चलिए । प्रभु के प्रति अपना अर्पण करने का अभिप्राय है—' अपने जीवन में से मलों को दूर करना और ज्ञान को खूब दीप्त करना'। निर्मल व ज्ञानी बनकर हम प्रभु के सच्चे उपासक बनते हैं। प्रभु का सच्चा उपासक बनने पर वे प्रभु हमारा उद्धार करते हैं। हम प्रकृति के हीन भोगों से ऊपर उठकर उत्कृष्ट ऐश्वर्य को प्राप्त करनेवाले बनते हैं । ३. हे प्रभो! आप इस उपासक को (रायस्पोषेण संसृज) = संसार - यात्रा को चलाने के लिए आवश्यक धन के पोषण से संसृष्ट कीजिए। यह इतना धन अवश्य प्राप्त करे कि परिवार को, अपने को तथा आये गये को उत्तमता से पाल सके और सामाजिक कार्यों में भी उचित सहयोग दे पाये ४. (च) = और हे प्रभो! आप इस आपकी शरण में आये हुए को (प्रजया) = उत्तम सन्तान से (बहुम्) = [बृंहते वर्धते] खूब वृद्धि को प्राप्त हुआ हुआ, समाज में बढ़े हुए नामवाला, अर्थात् यशस्वी (कृधि) = कीजिए। इसकी सन्तान ऐसी उत्तम हो कि इसका यश चारों ओर फैले। यह यशस्वी सन्तानवाला हो ।

    भावार्थ - भावार्थ - १. प्रभु को अपना कवच बनानेवाला व्यक्ति वासनाओं को जीतकर उत्कर्ष प्राप्त करता है। २. उत्तम धन का संचय करनेवाला होता है । ३. और अपनी सन्तान से यशस्वी बनता है।

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