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  • अथर्ववेद - काण्ड 10/ सूक्त 2/ मन्त्र 6
    सूक्त - नारायणः देवता - ब्रह्मप्रकाशनम्, पुरुषः छन्दः - जगती सूक्तम् - ब्रह्मप्रकाशन सूक्त

    कः स॒प्त खानि॒ वि त॑तर्द शी॒र्षणि॒ कर्णा॑वि॒मौ नासि॑के॒ चक्ष॑णी॒ मुख॑म्। येषां॑ पुरु॒त्रा वि॑ज॒यस्य॑ म॒ह्मनि॒ चतु॑ष्पादो द्वि॒पदो॑ यन्ति॒ याम॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क: । स॒प्त । खानि॑ । वि । त॒त॒र्द॒ । शी॒र्षणि॑ । कर्णौ॑ । इ॒मौ । नासि॑के॒ इति॑ । चक्ष॑णी॒ इति॑ । मुख॑म् । येषा॑म् । पु॒रु॒ऽत्रा । वि॒ऽज॒यस्य॑ । म॒ह्यनि॑ । चतु॑:ऽपाद: । द्वि॒ऽपद॑: । यन्ति॑ । याम॑म् ॥२.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कः सप्त खानि वि ततर्द शीर्षणि कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्। येषां पुरुत्रा विजयस्य मह्मनि चतुष्पादो द्विपदो यन्ति यामम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क: । सप्त । खानि । वि । ततर्द । शीर्षणि । कर्णौ । इमौ । नासिके इति । चक्षणी इति । मुखम् । येषाम् । पुरुऽत्रा । विऽजयस्य । मह्यनि । चतु:ऽपाद: । द्विऽपद: । यन्ति । यामम् ॥२.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 2; मन्त्र » 6

    पदार्थ -

    १.(क:) = किसने (शीर्षणि) = सिर में (सप्त खानि विततर्द) = सात इन्द्रिय-गोलकों को खोदा है बनाया है। (इमौ कर्णौं) = इन दोनों कानों को, (नासिके) = दोनों नासिका-छिद्रों को (चक्षणी) = दोनों आँखों को और (मुखम्) = मुख को किसने बनाया है? २. (येषाम्) = जिन इन्द्रिय-गोलकों की (विजयस्य मह्यनि) = विजय की महिमा में उनके स्वस्थ रहने पर ही (चतुष्पादः द्विपदः) = चौपाये और दोपाये-पशु व मनुष्य सभी प्राणी (पुरुत्रा) = अनेक प्रकार से (यामं यन्ति) = मार्ग पर चलते हैं|

    भावार्थ -

    प्रभु ने किस प्रकार इन दो कान, दो नासिका-छिद्र, दो आँख व मुखरूप अद्भुत सात इन्द्रिय-गोलकों को बनाया है। इनकी विजय की महिमा में ही सब प्राणी जीवन-मार्ग में आगे बढ़ते हैं।

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