ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 12/ मन्त्र 23
म॒हान्तं॑ महि॒ना व॒यं स्तोमे॑भिर्हवन॒श्रुत॑म् । अ॒र्कैर॒भि प्र णो॑नुम॒: समोज॑से ॥
स्वर सहित पद पाठम॒हान्त॑म् । म॒हि॒ना । व॒यम् । स्तोमे॑भिः । ह॒व॒न॒ऽश्रुत॑म् । अ॒र्कैः । अ॒भि । प्र । नो॒नु॒मः॒ । सम् । ओज॑से ॥
स्वर रहित मन्त्र
महान्तं महिना वयं स्तोमेभिर्हवनश्रुतम् । अर्कैरभि प्र णोनुम: समोजसे ॥
स्वर रहित पद पाठमहान्तम् । महिना । वयम् । स्तोमेभिः । हवनऽश्रुतम् । अर्कैः । अभि । प्र । नोनुमः । सम् । ओजसे ॥ ८.१२.२३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 12; मन्त्र » 23
अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(वयम्) वयमुपासकाः (महिना) महिम्ना (महान्तम्) सर्वातिक्रान्तम् (हवनश्रुतम्) यज्ञेषु प्रसिद्धम् (समोजसे) पराक्रमलाभाय (अर्कैः, स्तोमैः) अर्चनैः सह स्तोत्रैः (अभिप्रणोनुमः) अभितः स्तुमः ॥२३॥
विषयः
पुनस्तमर्थमाह ।
पदार्थः
समोजसे=समीचीनाय ओजसे=बलाय हेतवे । वयम्=मनुष्याः । महिना=स्वमहिम्ना । महान्तम् । पुनः । हवनश्रुतमस्माकमाह्वानस्य श्रोतारम् । इन्द्रमीश्वरम् । स्तोमैः=स्तोत्रैः । अर्कैः=अर्चनीयैर्मन्त्रैश्च साधनैः । अभि=आभिमुख्येन । प्र=प्रकर्षेण । नोनुमः=पुनः पुनर्नुमः=स्तुमः ॥२३ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(वयम्) हम उपासक लोग (महिना) अपनी महिमा से (महान्तम्) सर्वोपरि (हवनश्रुतम्) यज्ञों में प्रसिद्ध परमात्मा की (समोजसे) पराक्रमप्राप्ति के लिये (अर्कैः, स्तोमैः) अर्चनासहित स्तोत्रों से (अभिप्रणोनुमः) सम्यक् स्तुति करते हैं ॥२३॥
भावार्थ
परमात्मपरायण उपासक लोग शारीरिक, आत्मिक तथा सामाजिक उन्नति के लिये महान् परमात्मा की वेदवाणियों द्वारा स्तुति करते हैं कि हे प्रभो ! हमें बल दें कि हम लोग उक्त तीनों प्रकार की उन्नति करते हुए स्वतन्त्र हों अर्थात् पराक्रमयुक्त होकर मनुष्यसमुदाय में मान को प्राप्त हों, यह हमारी आपसे प्रार्थना है ॥२३॥
विषय
फिर भी उसी विषय को कहते हैं ।
पदार्थ
(सम्+ओजसे) समीचीन बलप्राप्ति के लिये (वयम्) हम मनुष्य (महिना) अपने महिमा से (महान्तम्) महान् और (हवनश्रुतम्) हमारे आह्वान के श्रोता इन्द्र को (स्तोमेभिः) स्तोत्रों और (अर्कैः) अर्चनीय मन्त्रों से (अभि) सर्वभाव से (प्र) अतिशय (नोनुमः) पुनः-पुनः प्रणाम करते हैं । उसकी वारंवार स्तुति करते हैं ॥२३ ॥
भावार्थ
बलप्राप्ति के लिये भी वही स्तुत्य है ॥२३ ॥
विषय
राजा के कर्त्तव्यों का वर्णन ।
भावार्थ
( महिना महान्तं ) अपने महान् सामर्थ्य से बड़े ( हवनश्रुतम् ) आह्वानों, उपासक की पुकारों को श्रवण करने वाले, वा 'हवन' दानों से सर्वत्र प्रसिद्ध उस प्रभु की हम ( स्तोमेभिः ) स्तुतियों और ( अर्कैः ) अर्चना करने योग्य वेदमन्त्रों और यज्ञों से ( ओजसे ) बल प्राप्त करने के लिये ( अभिः सं प्र नोनुमः ) साक्षात् खूब स्तुति करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
पर्वतः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, २, ८, ९, १५, १६, २०, २१, २५, ३१, ३२ निचृदुष्णिक्। ३—६, १०—१२, १४, १७, १८, २२—२४, २६—३० उष्णिक्। ७, १३, १९ आर्षीविराडुष्णिक्। ३३ आर्ची स्वराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
विषय
प्रभु महिमा स्मरण व ओजस्विता की प्राप्ति
पदार्थ
[१] (महिना) = अपनी महिमा से (महान्तम्) = महान् उस प्रभु को (वयम्) = हम (स्तोमेभिः) = स्तोत्रों के द्वारा (अभि प्रणोनुमः) = बारम्बार स्तुत करते हैं। यह प्रभु-स्तवन ही हमें भी महान् बनाता है। [२] उस (हवनश्रुतम्) = उपासक की पुकार को सुननेवाले प्रभु को (अर्कैः) = स्तुति साधन मन्त्रों के द्वारा हम स्तुत करते हैं। यह स्तवन ही (सं ओजसे) = समीचीन ओज के लिये होता है। इस ओज से ओजस्वी बनकर हम वासना विनाश के द्वारा प्रभु को पानेवाले बनते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम प्रभु-स्तवन करते हुए प्रभु की महिमा का स्मरण करते हैं, ओजस्वी बनकर वासनाओं का विनाश कर पाते हैं।
इंग्लिश (1)
Meaning
With highest songs of adoration and offers of homage we worship omnipotent Indra who listens and responds to our call and prayers and we bow to him for the attainment of strength and splendour.
मराठी (1)
भावार्थ
बलप्राप्तीसाठीही तोच (परमेश्वर) स्तुत्य आहे. ॥२३॥
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