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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 12 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 12/ मन्त्र 29
    ऋषिः - पर्वतः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    य॒दा ते॒ मारु॑ती॒र्विश॒स्तुभ्य॑मिन्द्र नियेमि॒रे । आदित्ते॒ विश्वा॒ भुव॑नानि येमिरे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒दा । ते॒ । मारु॑तीः । विशः॑ । तुभ्य॑म् । इ॒न्द्र॒ । नि॒ऽये॒मि॒रे । आत् । इत् । ते॒ । विश्वा॑ । भुव॑नानि । ये॒मि॒रे॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदा ते मारुतीर्विशस्तुभ्यमिन्द्र नियेमिरे । आदित्ते विश्वा भुवनानि येमिरे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यदा । ते । मारुतीः । विशः । तुभ्यम् । इन्द्र । निऽयेमिरे । आत् । इत् । ते । विश्वा । भुवनानि । येमिरे ॥ ८.१२.२९

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 12; मन्त्र » 29
    अष्टक » 6; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (यदा) यत्र काले (ते) तव (मारुतीः, विशः) सैनिकप्रजाः (तुभ्यम्) त्वदाज्ञापालनार्थम् (नियेमिरे) नियमयन्ति भूतानि (आदित्) अनन्तरमेव (ते) तव (विश्वा, भुवनानि) सम्पूर्णलोकाः (येमिरे) नियम्यन्ते ॥२९॥

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    विषयः

    तस्य विभूतिं दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! यदा=यस्मिन् काले । ते=तवोत्पादिताः । मारुतीः=मारुत्यो वायुप्रधानभूते लोके स्थापिताः=विशो मेघरूपाः प्रजाः । तुभ्यम्=त्वाम् । नियेमिरे=नियमयन्ति=नितरां रमयन्ति=प्रकाशयन्ति । आदित्ते इत्यादि गतम् ॥२९ ॥

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    हिन्दी (4)

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (यदा) जब (ते) आपकी (मारुतीः, विशः) सैनिक प्रजायें (तुभ्यम्) आपकी आज्ञापालन करने के लिये (नियेमिरे) सब प्राणियों का नियमन करती हैं (आदित्) तभी (विश्वा, ते, भुवनानि) आपके सब लोक (येमिरे) नियमबद्ध रहते हैं ॥२९॥

    भावार्थ

    हे परमात्मन् ! आपके नियम में बँधी हुई सब सैनिक प्रजाएँ अर्थात् राष्ट्र को नियम में रखनेवाली शक्तिरूप सेनाएँ आपकी आज्ञापालन करने के लिये सबको नियम में रखती हैं, इसी कारण सब लोक-लोकान्तर नियमबद्ध हो रहे हैं ॥२९॥

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    विषय

    उसकी विभूति दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! हे परमात्मदेव ! (यदा) जिस काल में (ते) तेरी उत्पादित (मारुतीः) वायुप्रधान लोक में स्थापित (विशः) मेघरूपी प्रजाएँ (तुभ्यम्) तुझको (नियेमिरे) अपने ऊपर प्रकाशित करते हैं अर्थात् जब मेघों में तेरी विद्युद्रूप से परमविभूति दीखने लगती है, तब मानो (आद्+इत्) उसके पश्चात् ही (ते) तेरे (विश्वा+भुवनानि) निखिल भुवन स्व-२ नियम में (येमिरे) स्वयं बद्ध हो जाते हैं अर्थात् मेघ के गर्जन तर्जन सुन सारी प्रजाएँ कम्पायमान हो स्व-२ नियम में निबद्ध हो जाती हैं ॥२९ ॥

    भावार्थ

    ईश्वर की विभूति वायु आदि समस्त पदार्थ में दीख पड़ती है ॥२९ ॥

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    विषय

    राजा के कर्त्तव्यों का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! हे तेजस्विन् ! ( यदा ) जब (ते) तेरे अधीन ( मारुती: ) 'मरुत्' अर्थात् प्राणों से प्राणित ( विशः ) प्रजाएं, ( तुभ्यम् ) तेरे ही लिये ( नियेमिरे ) नियम में बद्ध होती हैं, ( आत् इत् ) अनन्तर, उनके नियम व्यवस्थित होने के कारण ( विश्वा भुवनानि) समस्त लोक भी ( ते ) तेरे अधीन ही नियम में व्यवस्थित होते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पर्वतः काण्व ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, २, ८, ९, १५, १६, २०, २१, २५, ३१, ३२ निचृदुष्णिक्। ३—६, १०—१२, १४, १७, १८, २२—२४, २६—३० उष्णिक्। ७, १३, १९ आर्षीविराडुष्णिक्। ३३ आर्ची स्वराडुष्णिक्॥ त्रयस्त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    मारुती: विशः

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (यदा) = जब (ते) = आपकी ये (मारुती: विशः) = प्राणसाधक प्रजायें (तुभ्यम्) = आपकी प्राप्ति के लिये (नियेमिरे) = अपने को नियम में करनेवाली होती हैं। (आत् इत्) = तब शीघ्र ही (ते) = वे अपने को वश में करनेवाले लोग (विश्वा भुवनानि) = सब भुवनों को (येमिरे) = वशीभूत करनेवाले होते हैं। [२] प्राणसाधना के द्वारा इन्द्रियों का संयम होता है। यह संयमी पुरुष प्रभु को प्राप्त करने का अधिकारी होता है। यह सब भुवनों को भी वश में कर पाता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणसाधना द्वारा अपना संयम करते हुए हम सबको वश में करनेवाले हों और प्रभु प्राप्ति के अधिकारी बनें।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Since the entire world of vibrant winds and humanity bow to you in obedience to the divine law, the entire worlds of existence are sustained in the order of the divine law.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ईश्वराची विभूती वायू इत्यादी संपूर्ण पदार्थांमध्ये दिसून येते. ॥२९॥

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