ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 46/ मन्त्र 14
अ॒भि वो॑ वी॒रमन्ध॑सो॒ मदे॑षु गाय गि॒रा म॒हा विचे॑तसम् । इन्द्रं॒ नाम॒ श्रुत्यं॑ शा॒किनं॒ वचो॒ यथा॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । वः॒ । वी॒रम् । अन्ध॑सः । मदे॑षु । गा॒य॒ । गि॒रा । म॒हा । विऽचे॑तसम् । इन्द्र॑म् । नाम॑ । श्रुत्य॑म् । शा॒किन॑म् । वचः॑ । यथा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि वो वीरमन्धसो मदेषु गाय गिरा महा विचेतसम् । इन्द्रं नाम श्रुत्यं शाकिनं वचो यथा ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । वः । वीरम् । अन्धसः । मदेषु । गाय । गिरा । महा । विऽचेतसम् । इन्द्रम् । नाम । श्रुत्यम् । शाकिनम् । वचः । यथा ॥ ८.४६.१४
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 46; मन्त्र » 14
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
In the ecstasy of your soma celebration, with the best of word and voice, sing in praise of Indra, mighty brave, highly knowledgeable and wise, renowned of name and versatile in power and competence.
मराठी (1)
भावार्थ
ईश्वराच्या कृपेने जेव्हा जेव्हा काही लाभ होतो तेव्हा तेव्हा त्याच्या नावाचा उत्सव करावा. सर्वांनी मिळून त्याच्या कीर्तीचे गान करावे. ॥१४॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे मनुष्याः ! वः=युष्माकम् । अन्धसः=अन्नस्य । मदेषु=प्राप्तेषु सत्सु । गिरा=वाण्या । इन्द्रम् । अभि+गाय=अभिगायत । वचो यथा=यथा वचः प्रवर्तेत=वचसो यावती गतिरस्ति तत्पर्य्यन्तं गायत । कीदृशमिन्द्रम् । वीरम् । महा=महान्तम् । विचेतसम्=प्रकृष्टविज्ञानम् । यस्य नाम श्रुत्यम् श्रवणीयम् । पुनः शाकिनं=शक्रम् ॥१४ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
हे मनुष्यों ! (वः) आप लोगों को जब-२ (अन्धसः+मदेषु) अन्न का आनन्द प्राप्त हो अर्थात् ऋतु-२ में जब-२ अन्न की फसल हो, तब-२ (गिरा) निज-२ वाणी से (इन्द्रम्) परमात्मा का (अभि+गायत) गान अच्छे प्रकार करो । जो (वीरम्) महावीर (महा) महान् (विचेतसम्) और महा प्रज्ञान है, (नाम+श्रुत्यम्) जिसका नाम श्रवणीय है, पुनः (शाकिनम्) जो सब कार्य में समर्थ है, जिसकी शक्ति अनन्त-अनन्त है, (वचः+यथा) जहाँ तक वाणी की गति हो, वहाँ तक हे मनुष्यों ! उसका गान करो ॥१४ ॥
भावार्थ
उसकी कृपा से जब-२ कुछ लाभ हो, तब-२ ईश्वर के नाम पर उत्सव रचें । सब मिलकर उसका कीर्तिगान करें ॥१४ ॥
विषय
उससे अनेक प्रार्थनाएं।
भावार्थ
हे मनुष्यो ! (वः मदेषु) आप लोग अपने हर्ष और (अन्धसः) अन्नादि पदार्थों के द्वारा प्राप्त आनन्द के अवसरों में (वीरम् ) वीर, ( विचेतसम् ) विविध चित्तों और ज्ञानों के स्वामी, ( इन्द्रं ) ऐश्वर्यवान् (श्रुत्यं) श्रुति-प्रसिद्ध, वेदगम्य, (शाकिनं) शक्तिशाली प्रभु की ( यथा वचः ) वाणी, के अनुसार ही, (महागिरा गाय) श्रेष्ठ वाणी से स्तुति गान करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वशोश्व्य ऋषिः॥ देवताः—१—२०, २९—३१, ३३ इन्द्रः। २१—२४ पृथुश्रवसः कानीनस्य दानस्तुतिः। २५—२८, ३२ वायुः। छन्दः—१ पाद निचृद् गायत्री। २, १०, १५, २९ विराड् गायत्री। ३, २३ गायत्री। ४ प्रतिष्ठा गायत्री। ६, १३, ३३ निचृद् गायत्री। ३० आर्ची स्वराट् गायत्री। ३१ स्वराड् गायत्री। ५ निचृदुष्णिक्। १६ भुरिगुष्णिक्। ७, २०, २७, २८ निचृद् बृहती। ९, २६ स्वराड् बृहती। ११, १४ विराड् बृहती। २१, २५, ३२ बृहती। ८ विरानुष्टुप्। १८ अनुष्टुप्। १९ भुरिगनुष्टुप्। १२, २२, २४ निचृत् पंक्तिः। १७ जगती॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
वीरं, विचेतसं, श्रुत्यं शाकिनम्
पदार्थ
[१] (वः वीरं) = तुम्हारे शत्रुओं के कम्पित करनेवाले [वि + ईर् ] (महा विचेतसम्) = महान् विशिष्ट प्रज्ञानवाले प्रभु को (अन्धसः मदेषु) = सोमपानजनित मदों में (गिरा) = इस ज्ञान की वाणियों के द्वारा (अभिगाय) = तू गायन कर । [२] तू (इन्द्रं) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले, (नाम) = शत्रुओं को नमानेवाले-झुका देनेवाले (श्रुत्यं) = ज्ञान में प्रसिद्ध (शाकिनं) = शक्तिशाली - हमें शक्तिशाली बनानेवाले- प्रभु को (वचो यथा) = वेदवाणी के अनुसार स्तुत कर ।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु वीर व विचेता हैं- शत्रुओं को नष्ट करनेवाले व ज्ञानी हैं। वे ज्ञान में प्रसिद्ध व शक्तिशाली हैं। इन प्रभु का हम स्तवन करें।
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