ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 46/ मन्त्र 6
तमिन्द्रं॒ दान॑मीमहे शवसा॒नमभी॑र्वम् । ईशा॑नं रा॒य ई॑महे ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । इन्द्र॑म् । दान॑म् । ई॒म॒हे । श॒व॒सा॒नम् । अभी॑र्वम् । ईशा॑नम् । रा॒यः । ई॒म॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमिन्द्रं दानमीमहे शवसानमभीर्वम् । ईशानं राय ईमहे ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । इन्द्रम् । दानम् । ईमहे । शवसानम् । अभीर्वम् । ईशानम् । रायः । ईमहे ॥ ८.४६.६
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 46; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
We pray to Indra, omnipotent and fearless lord ruler of the world, for the gift of wealth, honour and excellence.
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! आपल्या इच्छा ईश्वरासमोर प्रकट करा. तो त्या पूर्ण करील. ॥६॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
वयमुपासकाः शवसानम्=बलदातारम् । अभीर्वम्=अभीरुं निर्भयम् । ईशानम्=जगतः स्वामिनम् । तमिन्द्रम् । दानं=देयम् । रायः=धनम् । ईमहे=याचामहे ॥६ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
हम उपासकजन (तम्+इन्द्रम्) उस इन्द्रवाच्य परमात्मा से (दानम्+रायः) दातव्य धन की (ईमहे) याचना करते हैं, जो ईश्वर (शवसानम्) बलप्रदाता (अभीर्वम्) निर्भय और (ईशानम्) जगत् का स्वामी है ॥६ ॥
भावार्थ
हे मनुष्यों ! अपनी आकाङ्क्षा ईश्वर के निकट निवेदन करो । वह उसको पूर्ण करेगा ॥६ ॥
विषय
उससे अनेक प्रार्थनाएं।
भावार्थ
हम ( तम् ) उस ( रायः ईशानम् ) धन के स्वामी, (शवसानम् ) बलशाली ( अभीर्वम् ) अभीरु, निर्भीक, किसी से भय न करने वाले ( इन्द्रं ) शत्रुनाशी, ऐश्वर्य वाले, सत्यदर्शी स्वामी पुरुष को प्राप्त कर उससे ( दानम् ईमहे ) दातव्य धन और ज्ञान की याचना करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वशोश्व्य ऋषिः॥ देवताः—१—२०, २९—३१, ३३ इन्द्रः। २१—२४ पृथुश्रवसः कानीनस्य दानस्तुतिः। २५—२८, ३२ वायुः। छन्दः—१ पाद निचृद् गायत्री। २, १०, १५, २९ विराड् गायत्री। ३, २३ गायत्री। ४ प्रतिष्ठा गायत्री। ६, १३, ३३ निचृद् गायत्री। ३० आर्ची स्वराट् गायत्री। ३१ स्वराड् गायत्री। ५ निचृदुष्णिक्। १६ भुरिगुष्णिक्। ७, २०, २७, २८ निचृद् बृहती। ९, २६ स्वराड् बृहती। ११, १४ विराड् बृहती। २१, २५, ३२ बृहती। ८ विरानुष्टुप्। १८ अनुष्टुप्। १९ भुरिगनुष्टुप्। १२, २२, २४ निचृत् पंक्तिः। १७ जगती॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
इन्द्रं दानम् ईमहे [शवसानम्, अभीर्वम्]
पदार्थ
[१] (तम्) = उस (इन्द्रं) = परमैश्वर्यशाली प्रभु से (दानं) = उस धन को दान की (ईमहे) = याचना करते हैं जो हमारे जीवन में (शवसानम्) = बल की तरह आचरण करता है जो धन हमें बलवान् बनाता है तथा (अभीर्वम्) = हमें निडर बनाता है। [२] उस (ईशानं) = ईश से स्वामी से ही हम (रायः) = दान देने योग्य धनों को मांगते हैं। हम उन धनों की याचना करते हैं, जो लोकहित के लिए दान में विनियुक्त होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु से हम उस धन की याचना करते हैं जोकि हमें [क] सबल बनाएँ, [ख] अभीरु बनाएँ, तथा [ग] दान में विनियुक्त हो ।
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