ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 46/ मन्त्र 19
प्र॒भ॒ङ्गं दु॑र्मती॒नामिन्द्र॑ शवि॒ष्ठा भ॑र । र॒यिम॒स्मभ्यं॒ युज्यं॑ चोदयन्मते॒ ज्येष्ठं॑ चोदयन्मते ॥
स्वर सहित पद पाठप्र॒ऽभ॒ङ्गम् । दुः॒ऽम॒ती॒नाम् । इन्द्र॑ । श॒वि॒ष्ठ॒ । आ । भ॒र॒ । र॒यिम् । अ॒स्मभ्य॑म् । युज्य॑म् । चो॒द॒य॒त्ऽम॒ते॒ । ज्येष्ठ॑म् । चो॒द॒य॒त्ऽम॒ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्रभङ्गं दुर्मतीनामिन्द्र शविष्ठा भर । रयिमस्मभ्यं युज्यं चोदयन्मते ज्येष्ठं चोदयन्मते ॥
स्वर रहित पद पाठप्रऽभङ्गम् । दुःऽमतीनाम् । इन्द्र । शविष्ठ । आ । भर । रयिम् । अस्मभ्यम् । युज्यम् । चोदयत्ऽमते । ज्येष्ठम् । चोदयत्ऽमते ॥ ८.४६.१९
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 46; मन्त्र » 19
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, lord most potent, bring us the intelligence and other means to break down the negative and anti social thoughts and actions of adversaries. O lord inspirer of right thinking, bring us the mind and materials usable in constructive thinking and planning and bring us the best and highest thought and competence, O lord inspirer of rational and scientific minds.
मराठी (1)
भावार्थ
दुर्जनामुळे व नीच बुद्धीमुळे जगाची फार हानी होते. त्यामुळे विद्वानांनी सुबुद्धी व सुजन जगात उत्पन्न करावेत. ॥१९॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
हे इन्द्र ! सर्वसम्पत्तिसंयुक्त हे शविष्ठ=महाबलवन् ईश ! दुर्मतीनाम्=दुष्टबुद्धीनाम् । निकृष्टानां मतीनाञ्च । प्रभङ्गं=विनाशकम् । पदार्थम् । आभर=देहि । पुनः । हे चोदयन्मते=बुद्धिप्रेरक देव ! युज्यं=योग्यम् । रयिम् । अस्मभ्यमाहर ज्येष्ठं वस्तु । देहि ॥१९ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
(इन्द्र) हे सर्वसम्पत्तियुक्त (शविष्ठ) हे महाबलवन् महेश ! (दुर्मतीनाम्) दुष्ट बुद्धिवाले जनों के और निकृष्ट बुद्धियों के (प्रभङ्गम्) भञ्जक पदार्थ हमको (आभर) दे । (चोदयन्मते) हे शुभकर्मों में बुद्धिप्रेरक देव ! (युज्यम्) सुयोग्य उचित (रयिम्) धन (अस्मभ्यम्) हमको दे । (चोदयन्मते) हे ज्ञानविज्ञानप्रेरक ! हे चैतन्यप्रद ईश ! (ज्येष्ठम्) श्रेष्ठ प्रशस्त हितकारी वस्तु हमको दे ॥१९ ॥
भावार्थ
दुर्जनों और नीच बुद्धियों से जगत् की बहुत हानि होती है, अतः विद्वानों को उचित है कि सुबुद्धि और सुजन जगत् में उत्पन्न करें ॥१९ ॥
विषय
उससे अनेक प्रार्थनाएं।
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! हे ( शविष्ठ ) बलशालिन् ! तू ( अस्मभ्यम् ) हमें (प्र-भङ्गं) नाना प्रकार के कष्टों को नाश करने वाला, ( रयिम् आ भर ) ऐश्वर्यं प्राप्त करा। हे ( चोदयन्-मते ) सन्मार्ग में प्रवृत्त कराने वाली बुद्धि और वाणी वाले ! तू (प्रभङ्गं युज्यं आभर) शत्रुओं के बल तोड़ने वाले सहयोगी को प्राप्त करा वा, ( युज्यं रयिम् आ भर ) सहयोगी जनों के हितकारी ऐश्वर्य को प्राप्त करा। हे ( चोदयन्मते ) प्रेरक वाणी के स्वामिन् ! तू (ज्येष्ठं रयिम् आ भर ) सर्वश्रेष्ठ ऐश्वर्य और ( प्रभङ्गं ज्येष्ठं ) सर्व-कष्टनाशक सर्वश्रेष्ठ पुरुष को हमें प्राप्त करा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वशोश्व्य ऋषिः॥ देवताः—१—२०, २९—३१, ३३ इन्द्रः। २१—२४ पृथुश्रवसः कानीनस्य दानस्तुतिः। २५—२८, ३२ वायुः। छन्दः—१ पाद निचृद् गायत्री। २, १०, १५, २९ विराड् गायत्री। ३, २३ गायत्री। ४ प्रतिष्ठा गायत्री। ६, १३, ३३ निचृद् गायत्री। ३० आर्ची स्वराट् गायत्री। ३१ स्वराड् गायत्री। ५ निचृदुष्णिक्। १६ भुरिगुष्णिक्। ७, २०, २७, २८ निचृद् बृहती। ९, २६ स्वराड् बृहती। ११, १४ विराड् बृहती। २१, २५, ३२ बृहती। ८ विरानुष्टुप्। १८ अनुष्टुप्। १९ भुरिगनुष्टुप्। १२, २२, २४ निचृत् पंक्तिः। १७ जगती॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
दुर्मति विनाश तथा 'ज्येष्ठ युज्य' धन की प्राप्ति
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् (शविष्ठ) = अतिशयेन शक्तिसम्पन्न (चोदयन्मते) = बुद्धि को प्रेरित करनेवाले प्रभो ! हमारे लिए (दुर्मतीनो प्रभंङ्ग) = दुर्मतियों के विनाश को (आभर) = पुष्ट करिये। आपके अनुग्रह से हमारी सब दुर्मतियाँ दूर हों। [२] हे (चोदयन्मते) = उत्तम बुद्धियों को प्रेरित करनेवाले प्रभो ! आप (अस्मभ्यं) = हमारे लिए (ज्येष्ठं) = अतिप्रशस्त व (युज्यं) = योग्य - हमारे लिए उचित अथवा हमें सबके साथ मिलानेवाले (रयिं) = धन को प्राप्त कराइये।
भावार्थ
भावार्थ- प्रभु हमारी बुद्धियों को सत्प्ररेणा देकर दुर्मतियों को दूर करिये और प्रशस्त सबके साथ मेल करानेवाले धन को प्राप्त कराइये ।
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