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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 46/ मन्त्र 22
    ऋषिः - वशोऽश्व्यः देवता - पृथुश्रवसः कानीतस्य दानस्तुतिः छन्दः - निचृत्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    ष॒ष्टिं स॒हस्राश्व्य॑स्या॒युता॑सन॒मुष्ट्रा॑नां विंश॒तिं श॒ता । दश॒ श्यावी॑नां श॒ता दश॒ त्र्य॑रुषीणां॒ दश॒ गवां॑ स॒हस्रा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ष॒ष्टिम् । स॒हस्रा॑ । अश्व्य॑स्य । अ॒युता॑ । अ॒स॒न॒म् । उष्ट्रा॑नाम् । विं॒श॒तिम् । श॒ता । दश॑ । श्यावी॑नाम् । श॒ता । दश॑ । त्रिऽअ॑रुषीणाम् । दश॑ । गवा॑म् । स॒हस्रा॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    षष्टिं सहस्राश्व्यस्यायुतासनमुष्ट्रानां विंशतिं शता । दश श्यावीनां शता दश त्र्यरुषीणां दश गवां सहस्रा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    षष्टिम् । सहस्रा । अश्व्यस्य । अयुता । असनम् । उष्ट्रानाम् । विंशतिम् । शता । दश । श्यावीनाम् । शता । दश । त्रिऽअरुषीणाम् । दश । गवाम् । सहस्रा ॥ ८.४६.२२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 46; मन्त्र » 22
    अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    I have got sixty-and-ten thousand horses, twenty hundred camels, and ten hundred dark brown, ten hundred tawny red, in all ten thousand cows.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसे विवाहाचे मंत्र वर-वधूच म्हणतात, ते इतरांसाठी नसतात. त्याच प्रकारे ज्या राजा-महाराजा इत्यादींच्या निकट इतके पशू असावेत की या मंत्रांचे उच्चारण करून ईश्वराची स्तुती प्रार्थना करावी व त्याला धन्यवाद द्यावा. ॥२२॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    N/A

    पदार्थः

    तस्येश्वरस्य कृपया । अहमुपासकः । अश्व्यस्य=अश्वसम्बन्धिनः । षष्टिं । सहस्रा=सहस्राणि । अयुता=अयुतानि च । असनम्=प्राप्नोति । पुनः । उष्ट्राणाम् । विंशतिम् । शता=शतानि । असनम् । श्यावीनां= श्याववर्णानां=वडवानाम् । दश शता=शतानि । असनम्=यरुषीणाम्=त्रीण्यारोचमानानि शुभ्राणि यासां तादृशीनां गवाम् । दश सहस्रा=सहस्राणि चासनम् ॥२२ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    N/A

    पदार्थ

    उस ईश्वर की कृपा से मैं उपासक (अश्व्यस्य+षष्टिं+सहस्रा) ६०००० साठ सहस्र घोड़ों को (असनम्) रखता हूँ, (अयुता) अन्यान्य पशु मेरे निकट कई एक अयुत हैं, (उष्ट्राणाम्+विंशतिम्+शता) बीस शत ऊँट मेरे पास हैं, (श्यावीनाम्+दश+शता) दश शत घोड़ियाँ मेरे निकट हैं । (त्र्यरुषीणाम्) तीन स्थानों में श्वेत चिह्नवाली (गवाम्) गाएँ (दश+सहस्रा) दश सहस्र हैं ॥२२ ॥

    भावार्थ

    जैसे विवाह के मन्त्र वर-वधू ही पढ़ते हैं, सबके लिये नहीं हैं, इसी प्रकार जिन राजा महाराजा आदिकों के निकट इतने पशु हों, वे इन मन्त्रों को उच्चारण कर ईश्वर की स्तुति प्रार्थना करें । उसको धन्यवाद दें ॥२२ ॥

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    विषय

    उससे अनेक प्रार्थनाएं।

    भावार्थ

    ( षष्टिं सहस्रा ) साठ हज़ार और ( अयुता ) दश सहस्र ( अश्वस्य ) उत्तम अश्वों के और (उष्ट्राणां शता विंशतिं) ऊंठों के २० सौ, (श्यावीनां गवां दशशता) श्याव, काले लाल रंग वाली गौओं या भूमियों के सौ, और (त्रि-अरुषीणां) तीनों चमकने वाली शुभ्र रंग की ( गवां दश दश सहस्रा ) दस दस हज़ार गौएं ( असनम् ) मैं दान करूं और प्राप्त करूं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वशोश्व्य ऋषिः॥ देवताः—१—२०, २९—३१, ३३ इन्द्रः। २१—२४ पृथुश्रवसः कानीनस्य दानस्तुतिः। २५—२८, ३२ वायुः। छन्दः—१ पाद निचृद् गायत्री। २, १०, १५, २९ विराड् गायत्री। ३, २३ गायत्री। ४ प्रतिष्ठा गायत्री। ६, १३, ३३ निचृद् गायत्री। ३० आर्ची स्वराट् गायत्री। ३१ स्वराड् गायत्री। ५ निचृदुष्णिक्। १६ भुरिगुष्णिक्। ७, २०, २७, २८ निचृद् बृहती। ९, २६ स्वराड् बृहती। ११, १४ विराड् बृहती। २१, २५, ३२ बृहती। ८ विरानुष्टुप्। १८ अनुष्टुप्। १९ भुरिगनुष्टुप्। १२, २२, २४ निचृत् पंक्तिः। १७ जगती॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    अश्व-उष्ट्र-गौ

    पदार्थ

    [१] ' अश्नुते इति अश्व:, तेषु उत्तमः अश्व्यः' (अश्व्यस्य) = व्यापक तत्त्वों में सर्वोत्तम उस प्रभु के (अयुता) = सदा साथ रहनेवाले (षष्टिं सहस्त्रा) = 'आध्यात्मिक- आधिभौतिक व आधिदैविक' इन त्रिविध अश्वों के कारण बीस हज़ार होते हुए भी साठ हजार मन्त्ररूप वचनों को मैं (असनम्) = प्राप्त करूँ। इन मन्त्ररूप वचनों के द्वारा होनेवाले (उष्ट्राणां विंशतिं) [उष दाहे+त्र] = दोषदहन की २० क्रियाओं को (शता) = शतवर्षपर्यन्त प्राप्त करूँ। मेरे दसों प्राण व दसों इन्द्रियाँ बड़ी निर्दोष बनें। इन बीस के सब दोष ज्ञानाग्नि में दग्ध हो जाएँ। [२] इस प्रकार दोषदहन से दश (श्यावीनां) = [श्यैङ् गतौ] दस गतिशील इन्द्रियों को भी (शता) = शतवर्षपर्यन्त प्राप्त करूँ । इन्द्रियाँ निर्दोष बनें और सौ वर्ष तक ठीक कार्य करती रहें। इन इन्द्रियों के ठीक होने पर (त्र्यरुषीणाम्) = शरीर, मन व मस्तिष्क- तीनों को आरोचमान बनानेवाली अथवा 'ज्ञान-कर्म-उपासना' तीनों का प्रकाश करनेवाली (गवां) = वेदवाणीरूपी गौओं को (दश दश) = दस गुणा दस अर्थात् १०० वर्ष तक प्राप्त करूँ। ये वेदवाणीरूप गौएँ (सहस्त्रा) = मेरे लिए [स+हस्] आनन्दोल्लास को देनेवाली हों।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु के मन्त्ररूप वचनों को प्राप्त करके मैं प्राणों व इन्द्रियों को ज्ञानाग्नि में निर्दोष बना पाऊँ। मेरी ये निर्दोष इन्द्रियाँ खूब क्रियाशील हों, और ये ज्ञान, कर्म व उपासना का प्रकाश करनेवाली वेदवाणीरूप गौओं के दुग्ध का पान करें और आनन्द को सिद्ध करें।

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