ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 46/ मन्त्र 23
ऋषिः - वशोऽश्व्यः
देवता - पृथुश्रवसः कानीतस्य दानस्तुतिः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
दश॑ श्या॒वा ऋ॒धद्र॑यो वी॒तवा॑रास आ॒शव॑: । म॒थ्रा ने॒मिं नि वा॑वृतुः ॥
स्वर सहित पद पाठदश॑ । श्या॒वाः । ऋ॒धत्ऽर॑यः । वी॒तऽवा॑रासः । आ॒शवः॑ । म॒थ्राः । ने॒मिम् । नि । व॒वृ॒तुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
दश श्यावा ऋधद्रयो वीतवारास आशव: । मथ्रा नेमिं नि वावृतुः ॥
स्वर रहित पद पाठदश । श्यावाः । ऋधत्ऽरयः । वीतऽवारासः । आशवः । मथ्राः । नेमिम् । नि । ववृतुः ॥ ८.४६.२३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 46; मन्त्र » 23
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
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अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
इंग्लिश (1)
Meaning
Ten fleet dark brown horses with straight long tails instantly rushing to the target turn the whirling wheels of my chariot and beat the opposing forces.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्यांच्याजवळ शीघ्रगामी घोडे, रथ इत्यादी सामग्री असेल त्यांनी शत्रूला मंथन करण्याची प्रार्थना ईश्वराजवळ करावी. ॥२३॥
संस्कृत (1)
विषयः
N/A
पदार्थः
दश=दशसंख्याकाः । श्यावाः=श्याववर्णाः । आशवः=अश्वाः मम । नेमिं=रथनेमिम् । निवावृतुः=निवर्तयन्ति, रथं वहन्तीत्यर्थः । कीदृशः=ऋधद्रयः=प्रवृद्धवेगाः । पुनः । वीतवारासः=वीलपुच्छाः । पुनः । मथ्नाः । मथनशीलाः ॥२३ ॥
हिन्दी (3)
विषय
N/A
पदार्थ
उस परमात्मा की कृपा से (दश) दश (श्यावाः) श्याव वर्ण के (आशवः) शीघ्रगामी घोड़े (नेमिम्) रथनेमि को (नि+वावृतुः) ले चलते हैं अर्थात् मेरे रथ में दश अश्व जोते जाते हैं, जो (ऋधद्रयः) बड़े वेगवाले हैं, (वीतवारासः) जिनके पूँछ बड़े लम्बे हैं और (मथ्नाः) जो रण में शत्रुओं को मथन करनेवाले हैं ॥२३ ॥
भावार्थ
जिनके निकट इस प्रकार की सामग्री हो, वे ऐसी प्रार्थना करें ॥२३ ॥
विषय
उससे अनेक प्रार्थनाएं।
भावार्थ
( दश श्यावाः ) दस श्याव अर्थात् लाल-काले वर्ण के (ऋधद्-रयः) अति वेग वाले (वीतवारासः) चमकते बालों वाले, (आशवः) शीघ्रगामी, ( मथ्राः ) शत्रुओं का मथन करने वाले, वीर ( नेमिं ) रथ चक्रवत् राष्ट्र को ( नि वावृतुः ) नियम से संचालित करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वशोश्व्य ऋषिः॥ देवताः—१—२०, २९—३१, ३३ इन्द्रः। २१—२४ पृथुश्रवसः कानीनस्य दानस्तुतिः। २५—२८, ३२ वायुः। छन्दः—१ पाद निचृद् गायत्री। २, १०, १५, २९ विराड् गायत्री। ३, २३ गायत्री। ४ प्रतिष्ठा गायत्री। ६, १३, ३३ निचृद् गायत्री। ३० आर्ची स्वराट् गायत्री। ३१ स्वराड् गायत्री। ५ निचृदुष्णिक्। १६ भुरिगुष्णिक्। ७, २०, २७, २८ निचृद् बृहती। ९, २६ स्वराड् बृहती। ११, १४ विराड् बृहती। २१, २५, ३२ बृहती। ८ विरानुष्टुप्। १८ अनुष्टुप्। १९ भुरिगनुष्टुप्। १२, २२, २४ निचृत् पंक्तिः। १७ जगती॥ त्रयोदशर्चं सूक्तम्॥
विषय
रथ के दस घोड़े
पदार्थ
[१] (दश) = दस (श्यावा:) = गतिशील इन्द्रियाश्व (नेमिं) = रथचक्र को (निवावृतुः) = निश्चय से परिवृतत करते हैं-आगे और आगे ले चलते हैं। शरीर ही रथ हैं, इन्द्रियाँ इस रथ के घोड़े हैं। ये दस घोड़े इस रथ में जुते हैं। ये ही इसे उन्नति के मार्ग पर आगे और आगे ले चलनेवाले हैं। [२] ये इन्द्रियाश्व (ऋद्रयः) = बढ़े हुए वेगवाले हैं। (वीतवारासः) = ये प्राप्त वरणीय शक्तिवाले हैं। (आशवः) = शीघ्रता से मार्ग का व्यापन करनेवाले हैं और (मथ्रा) = शत्रुओं को कुचल देनेवाले हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हमारे इन्द्रियाश्व गतिशील वेगवान् बलवान् मार्ग का व्यापन करनेवाले व शत्रुओं को कुचलनेवाले हों।
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