ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 11
ए॒ष वृषा॒ वृष॑व्रत॒: पव॑मानो अशस्ति॒हा । कर॒द्वसू॑नि दा॒शुषे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । व्र्षा॑ । वृष॑ऽव्रतः॑ । पव॑मानः । अ॒श॒स्ति॒ऽहा । कर॑त् । वसू॑नि । दा॒शुषे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष वृषा वृषव्रत: पवमानो अशस्तिहा । करद्वसूनि दाशुषे ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । व्र्षा । वृषऽव्रतः । पवमानः । अशस्तिऽहा । करत् । वसूनि । दाशुषे ॥ ९.६२.११
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 11
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वृषा) कामनावर्षकः (वृषव्रतः) अभीष्टपूर्तिरूपव्रतधारी (पवमानः) सर्वपावकः (अशस्तिहा) दुष्टघातकः (एषः) अयं सेनापतिः (दाशुषे) भागदात्रे (वसूनि करत्) अनेकविधधनप्राप्त्यै प्रयत्नं करोति ॥११॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वृषा) कामनाओं की वर्षा करनेवाला (वृषव्रतः) कामनापूर्तिरूप ही व्रत धारण करनेवाला (पवमानः) सर्वपावक (अशस्तिहा) दुराचारियों का नाशक (एषः) यह सेनापति (दाशुषे) भाग देनेवाले के लिये (वसूनि करत्) प्रत्येक प्रकार के धनों की प्राप्ति का प्रयत्न करता है ॥११॥
भावार्थ
उक्तगुणसम्पन्न सेनापति सब प्रकार के ऐश्वर्य उत्पन्न करके प्रजा में सुख बढ़ाता है ॥११॥
विषय
'वृषव्रत' सोम
पदार्थ
[१] (एषः) = यह सोम (वृषा) = हमारे पर सुखों का वर्षण करनेवाला है । (वृषव्रतः) शक्तिशाली कर्मोंवाला है। इसके रक्षित होने पर हमारे कर्म निर्बल नहीं होते । शक्तिपूर्वक कर्मों को करते हुए हम अवश्य उन कर्मों में सफल होते हैं। (पवमानः) = यह हमारे जीवन को पवित्र बनाता है। (अशस्तिहा) = सब बुराइयों का नाश करता है। [२] यह सोम (दाशुषे) = प्रभु के प्रति अपना अर्पण करनेवाले पुरुष के लिये (वसूनि करत्) = निवास के लिये आवश्यक सब तत्त्वों को करनेवाला होता है। शरीर में सुरक्षित सोम सब वसुओं को जन्म देता है ।
भावार्थ
भावार्थ - यह सोम हमारे लिये सब सुखों का वर्षण करनेवाला, हमें पवित्र करनेवाला व हमारे जीवन में सब वसुओं को जन्म देनेवाला है ।
विषय
वह सर्वबन्धु हो।
भावार्थ
(एषः) वह (वृषा) बलवान् (वृष-व्रतः) प्रबन्ध के योग्य कर्म में नियुक्त पुरुष (पवमानः) राष्ट्र-पद को सुशोभित करता हुआ (अशस्तिहा) राज्य शासन के विपरीत शत्रुओं का नाश करने वाला (दाशुषे) करप्रद प्रजा जन के लिये (वसूनि करत्) नाना ऐश्वर्य प्रदान करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
This virile giver of showers of fulfilment, the very commitment incarnate of divinity to beneficence, always flowing, creating and giving, destroyer of calumny and evil doers, creates and provides wealth, honour and excellence for the generous yajnic givers.
मराठी (1)
भावार्थ
वरील गुणसंपन्न सेनापती सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य उत्पन्न करून प्रजेचे सुख वाढवितो. ॥११॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal