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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 18
    ऋषिः - जमदग्निः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तं सो॑तारो धन॒स्पृत॑मा॒शुं वाजा॑य॒ यात॑वे । हरिं॑ हिनोत वा॒जिन॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । सो॒ता॒रः॒ । ध॒न॒ऽस्पृत॑म् । आ॒शुम् । वाजा॑य । यात॑वे । हरि॑म् । हि॒नो॒त॒ । वा॒जिन॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं सोतारो धनस्पृतमाशुं वाजाय यातवे । हरिं हिनोत वाजिनम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । सोतारः । धनऽस्पृतम् । आशुम् । वाजाय । यातवे । हरिम् । हिनोत । वाजिनम् ॥ ९.६२.१८

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 18
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 27; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोतारः) हे अभिषेक्तारोऽमात्यादयः ! (धनस्पृतम्) यो हि धनसञ्चयकर्तास्ति तथा (आशुम्) बहुव्यापनशीलोऽस्ति अथ च (हरिम्) शत्रुघातकोऽस्ति (यातवे) यात्रां कर्तुं (हिनोत) यूयं प्रेरयत ॥१८॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोतारः) हे अमात्यादि अभिषेक्ता लोगों ! (धनस्पृतम्) जो कि धनों का संचय करनेवाला है तथा (आशुम्) बहुव्यापी है (हरिम्) और शत्रुओं का विघातक (वाजिनम्) सुन्दर बलवाला है, उसको (वाजाय) शक्ति बढ़ाने को (यातवे) यात्रा करने के लिये (हिनोत) प्रेरणा करो ॥१८॥

    भावार्थ

    हे प्रजाजनों ! तुम लोग जो उक्तगुणसम्पन्न पुरुष है, उसको अपने अभ्युदय के लिये सेनाधीशादि पदों पर नियुक्त करो ॥१८॥

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    विषय

    वाजाय यातवे

    पदार्थ

    [१] हे (सोतारः) = सोम का शरीर में उत्पादन करनेवाले पुरुषो! (तम्) = उस (हरिम्) = सब दुःखों का हरण करनेवाले सोम को हिनोत शरीर में ही प्रेरित करो। इसलिए इसे शरीर में प्रेरित करो कि (वाजाय) = यह शरीर में रोगकृमियों से होनेवाले संग्राम को करनेवाला हो तथा (यातवे) = हमें प्रभु की ओर ले चलनेवाला हो । [२] उस सोम का तुम शरीर में प्रेरित करो जो कि (धनस्पृतम्) = सब अन्नमय आदि कोशों के धनों का देनेवाला [grant] व रक्षण करनेवाला है [protect]। (आशुम्) = हमें शीघ्रता से कार्यों को करानेवाला है, और (वाजिनम्) = हमें शक्तिशाली बनानेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम के द्वारा हम सब कोशों के धनों को प्राप्त करके, नीरोग व शक्तिशाली बनकर, वासना-संग्राम में विजयी बनें और प्रभु की ओर जानेवाले हों ।

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    विषय

    युद्ध और दुष्ट दमन के लिये बलवान् और ज्ञानी पुरुष का स्थापन।

    भावार्थ

    हे (सोतारः) अभिषेक करने वाले जनो ! आप लोग (वाजिनं) बलवान्, ज्ञानवान्, (धन-स्पृतम्) धन से पूर्ण, (आशुं) वेगवान्, कर्मकुशल, (हरिं) पुरुष को (आशुं हरिं वाजिनं) वेगवान्, रथ ढोने में समर्थ, बलवान् अश्व के समान (वाजाय यातवे) संग्राम में जाने के लिये वा संग्राम या बलैश्वर्य की वृद्धि के लिये और (यातवे) प्रजापीड़क को दण्डित करने के लिये (हिनोत) बढ़ाओ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    That leader and dashing pioneer, instant in response and action, winner of life’s battles for wealth, honour and excellence, destroyer of want and suffering, O performers of the nation’s Soma yajna, exalt and exhort for onward progress and fulfilment of humanity’s joint and common mission on earth.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे प्रजाजनानो! जो वरील गुणाने (धनसंचय करणारा, शत्रूंचा विघातक, बलवान) संपन्न पुरुष असेल त्याला आपल्या अभ्युदयासाठी सेनाधीश इत्यादी पदावर नियुक्त करा. ॥१८॥

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