ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 13
ए॒ष स्य परि॑ षिच्यते मर्मृ॒ज्यमा॑न आ॒युभि॑: । उ॒रु॒गा॒यः क॒विक्र॑तुः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । स्यः । परि॑ । सि॒च्य॒ते॒ । म॒र्मृ॒ज्यमा॑नः । आ॒युऽभिः॑ । उ॒रु॒ऽगा॒यः । क॒विऽक्र॑तुः ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष स्य परि षिच्यते मर्मृज्यमान आयुभि: । उरुगायः कविक्रतुः ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । स्यः । परि । सिच्यते । मर्मृज्यमानः । आयुऽभिः । उरुऽगायः । कविऽक्रतुः ॥ ९.६२.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 13
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एषः स्यः) सोऽसौ (कविक्रतुः) यो हि विद्वत्सु श्रेष्ठः तथा (उरुगायः) सर्वजनैः प्रशंसितः एवं भूतः सेनापतिः (आयुभिः) समस्तप्रजाभिः (मर्मृज्यमानः) शुद्धाचरणेन सिद्धः (परिषिच्यते) नेतृत्वपदे अभिषिच्यते ॥१३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एषः स्यः) वह यह (कविक्रतुः) जो कि विद्वानों में श्रेष्ठ और (उरुगायः) सब लोगों से प्रशंसित है, ऐसा सेनापति (आयुभिः) सब प्रजाओं द्वारा (मर्मृज्यमानः) शुद्धाचरणरूप से सिद्ध किया गया (परिषिच्यते) नेतृत्व पद पर अभिषिक्त किया जाता है ॥१३॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करता है कि जो उक्तगुणसम्पन्न पुरुष है, वही सेनापति के पद पर नियुक्त करना चाहिये ॥१३॥
विषय
उरुगायः कविक्रतुः
पदार्थ
[१] (एषः) = यह (स्यः) = यह सोम उल्लिखित मन्त्र के अनुसार रयि को देनेवाला सोम (आयुभिः) = गतिशील पुरुषों से [एति इति] (मर्मृज्यमानः) = शुद्ध किया जाता हुआ (परिषिच्यते) = शरीर में चारों ओर अंग-प्रत्यंग में सिक्त होता है। क्रियाशीलता के होने पर हम वासनाओं द्वारा सताये जाने से बचे रहते हैं। वासनाओं के अभाव में सोम शुद्ध बना रहता है। शुद्ध सोम शरीर में ही व्यापनवाला होता है। [२] यह सोम (उरुगाय:) = खूब ही शंसनीय होता है, अथवा हमें शंसनीय जीवनवाला बनाता है और (कविक्रतुः) = यह क्रान्तप्रज्ञ होता है। सुरक्षित सोम हमारी बुद्धि को सूक्ष्म बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ - गतिशीलता के द्वारा शुद्ध बना हुआ सोम शरीर में सिक्त होता है। यह हमें प्रशस्त जीवनवाला व क्रान्तप्रज्ञ बनाता है ।
विषय
राजा के ईश्वरवत् कर्त्तव्य।
भावार्थ
(उरुगायः) विशाल वाणी वाले, स्तुत्य, (कवि-क्रतुः) सर्वाधिक प्रज्ञा और कर्म करने में कुशल, (एषः स्यः) वह यह (आयुभिः) मनुष्यों द्वारा (मर्मृज्यमानः) सुभूषित होकर (परि षिच्यते) अभिषिक्त हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Such is Soma, spirit of life’s beauty and glory, that flows pure, purifying and sanctifying on top, exalted and glorified by celebrant humanity, universally admired as poetic visionary, creator and harbinger of holiest glory.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की जो उक्त गुणसंपन्न पुरुष आहे त्यालाच सेनापती पदावर नियुक्त करावे. ॥१३॥
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