ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 29
इन्द्रा॒येन्दुं॑ पुनीतनो॒ग्रं दक्षा॑य॒ साध॑नम् । ई॒शा॒नं वी॒तिरा॑धसम् ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रा॑य । इन्दु॑म् । पु॒नी॒त॒न॒ । उ॒ग्रम् । दक्षा॑य । साध॑नम् । ई॒शा॒नम् । वी॒तिऽरा॑धसम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रायेन्दुं पुनीतनोग्रं दक्षाय साधनम् । ईशानं वीतिराधसम् ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्राय । इन्दुम् । पुनीतन । उग्रम् । दक्षाय । साधनम् । ईशानम् । वीतिऽराधसम् ॥ ९.६२.२९
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 29
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 29; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे प्रजावर्ग ! यो हि (उग्रम्) अत्यन्ततेजस्वी अस्ति अथ च (दक्षाय साधनम्) येन भवन्तः समस्तकृत्येषु कौशलत्वं प्राप्तुं शक्नुवन्ति, अथ च यः (ईशानम्) स्वयमेवैश्वर्यप्रापणे प्रभुरस्ति, तथा (वीतिराधसम्) यश्च सर्वविधैश्वर्यदातास्ति एवं भूतम् (इन्दुम्) ऐश्वर्यशालिनं स्वकीयं सेनाधिपतिं (इन्द्राय) सर्वैश्वर्यसम्पन्नतायै (पुनीतन) सङ्घीभूय यथाशक्त्युपसेवनं कुर्वन्तु ॥२९॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे प्रजालोगो ! जो कि (उग्रम्) महातेजस्वी है और (दक्षाय साधनम्) जिसके द्वारा तुम लोग दक्ष अर्थात् सर्व कार्यों में कुशल हो सकते हो और जो (ईशानम्) स्वयं परमैश्वर्य को प्राप्त करने में समर्थ है और (वीतिराधसम्) जो सब प्रकार के ऐश्वर्यों का दाता है, ऐसे (इन्दुम्) अपने ऐश्वर्यशाली सेनाधीश को (इन्द्राय) ऐश्वर्यसम्पन्न होने के लिये (पुनीतन) सब सम्मिलित होकर यथाशक्ति उपसेवन करो ॥२९॥
भावार्थ
इस मन्त्र में सेनापति की आज्ञापालन करना कथन किया गया है। जो लोग ऐश्वर्यशाली होना चाहें, वे अपने सेनाधीश की आज्ञा का पालन करें ॥२९॥
विषय
ईशानं वीतिराधसम्
पदार्थ
[१] (इन्द्राय) = उस परमैश्वर्यशाली प्रभु की प्राप्ति के लिये (इन्दुम्) = इस सोम को (पुनीतन) = पवित्र करो । यह पवित्र सोम ही ज्ञानदीप्ति का साधन बनकर प्रभु-दर्शन कराता है । उस सोम को पवित्र करो, जो कि (उग्रम्) = अत्यन्त तेजस्वी है, रोगकृमियों के लिये भयंकर है । (दक्षाय) = [ growth] उन्नति व विकास के लिये (साधनम्) = साधनभूत है। [२] उस सोम को पवित्र करो, जो कि (ईशानम्) = सब ऐश्वर्यों का स्वामी है, सब अन्नमय आदि कोशों को ऐश्वर्य से परिपूर्ण करनेवाला है। (वीतिराधसम्) = [वी कान्तौ] दीप्त धनोंवाला है ।
भावार्थ
भावार्थ- हम सोम को पवित्र करें जो कि हमें 'उग्र [तेजस्वी ] उन्नत व ऐश्वर्यशाली' बनाता है ।
विषय
वृष्टियों के समान अधीनों के प्रति राजा की आज्ञा-वाणियों का प्राप्त होना।
भावार्थ
हे विद्वान् जनो ! आप लोग (इन्दुम्) ऐश्वर्ययुक्त (उग्रं) बलवान्, प्रचण्ड, वेगवान् (वीति-राधसम्) कान्ति, तेज एवं रक्षण सामर्थ्य, शक्ति के धनी, शक्ति से कार्य सिद्ध करने में समर्थ (साधनम्) शत्रु के वशकारी, (इन्दुं) ऐश्वर्यवान् पुरुष को (इन्द्राय) ऐश्वर्ययुक्त ‘इन्द्र’ पद के लिये (पुनीतन) अभिषिक्त करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O people of the earth, performers of soma yajna, create, purify and energise the bright soma of passion, peace and vision of life in honour of Indra, ruler, versatile achiever and provider of the means and modes of life for all round happiness and well being.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात सेनापतीच्या आज्ञेचे पालन करण्याबाबत विश्लेषण आहे. जे लोक ऐश्वर्यवान होऊ इच्छितात. त्यांनी आपल्या सेनाधीशाच्या आज्ञेचे पालन करावे. ॥२९॥
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