ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 2
वि॒घ्नन्तो॑ दुरि॒ता पु॒रु सु॒गा तो॒काय॑ वा॒जिन॑: । तना॑ कृ॒ण्वन्तो॒ अर्व॑ते ॥
स्वर सहित पद पाठवि॒ऽघ्नन्तः॑ । दुः॒ऽइ॒ता । पु॒रु । सु॒ऽगा । तो॒काय॑ । वा॒जिनः॑ । तना॑ । कृ॒ण्वन्तः॑ । अर्व॑ते ॥
स्वर रहित मन्त्र
विघ्नन्तो दुरिता पुरु सुगा तोकाय वाजिन: । तना कृण्वन्तो अर्वते ॥
स्वर रहित पद पाठविऽघ्नन्तः । दुःऽइता । पुरु । सुऽगा । तोकाय । वाजिनः । तना । कृण्वन्तः । अर्वते ॥ ९.६२.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(वाजिनः) परिपूर्णबलवान् अयं सेनापतिः (पुरु दुरिता विघ्नन्तः) गुर्वापत्तीरपघ्नन् (तोकाय) अस्मत्सन्तानानां (अर्वते) व्यापकीभवनाय (सुगा) सर्वविधसुखानि तथा (तना) धनानि (कृण्वन्तः) सञ्चयं कुर्वन् भोग्यपदार्थानुत्पादयति ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(वाजिनः) पर्याप्त बलवाले सेनापति (पुरु दुरिता विघ्नन्तः) बड़ी-बड़ी आपत्तियों को हनन करते हुए (तोकाय) हमारी सन्तानों को (अर्वते) व्यापक होने के लिये (सुगा) सब प्रकार के सुखों तथा (तना) धनों का (कृण्वन्तः) संचय करते हुए भोग्य पदार्थों को उत्पन्न करते हैं ॥२॥
भावार्थ
जो सेनापति प्रजा की सन्तानों को व्यापक होने के लिये सब रास्तों को निष्कण्टक बनाता है, उक्तगुणोंवाला सेनापति राज का अङ्ग होकर राज्य की रक्षा करता है ॥२॥
विषय
दुरितों का दूरीकरण
पदार्थ
[१] ये सोम (दुरिता) = सब दुरितों को, अशुभग मनों को (पुरु) = खूब ही (विघ्नन्तः) = नष्ट करते हुए (सुगा) = शुभगमनोंवाले होते हैं। सोमरक्षण से हम दुरितों से बचकर शुभों की ओर चलनेवाले होते हैं । [२] ये सोम (तोकाय) = हमारे सन्तानों के लिये भी (वाजिनः) - शक्तिवाले होते हैं । सोमरक्षण से हमारे सन्तान भी सशक्त होते हैं। [३] ये सोम अर्वते इन्द्रियरूप अश्वों के लिये (तना) शक्तियों के विस्तार को (कृण्वन्तः) = करते हुए होते हैं। सोमरक्षण से सब इन्द्रियाँ शक्तिशाली बनती हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमें अशुभ मनों से शुभ मनों की ओर प्रवृत्त करता है ।
विषय
उनके कर्त्तव्य।
भावार्थ
वे (दुरिता विघ्नन्तः) दुष्टाचरणों का नाश करते हुए (वाजिनः) ज्ञान और बल से सम्पन्न, (अर्वते) अश्व के सदृश बलवान् नायक और (तोकाय) शत्रु हिंसक पुरुष के लिये (पुरु) बहुत से (सुगा) सुखजनक (तना) धनों को (कृण्वन्तः) उपार्जन करते हुए—
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Overcoming and eliminating the many evils and undesirables of life, creating peace and comfort, wealth and honour for vibrant humanity and their progress through future generations, they go on as warriors and pioneers of the human nation.
मराठी (1)
भावार्थ
जो सेनापती प्रजेच्या संतानांना व्यापक होण्यासाठी सर्व मार्ग निष्कंटक करतो. वरील गुणांचा सेनापती राज्याचे अंग बनून राज्याचे रक्षण करतो. ॥२॥
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