ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 5
शु॒भ्रमन्धो॑ दे॒ववा॑तम॒प्सु धू॒तो नृभि॑: सु॒तः । स्वद॑न्ति॒ गाव॒: पयो॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठशु॒भ्रम् । अन्धः॑ । दे॒वऽवा॑तम् । अ॒प्ऽसु । धू॒तः । नृऽभिः॑ । सु॒तः । स्वद॑न्ति । गावः॑ । पयः॑ऽभिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
शुभ्रमन्धो देववातमप्सु धूतो नृभि: सुतः । स्वदन्ति गाव: पयोभिः ॥
स्वर रहित पद पाठशुभ्रम् । अन्धः । देवऽवातम् । अप्ऽसु । धूतः । नृऽभिः । सुतः । स्वदन्ति । गावः । पयःऽभिः ॥ ९.६२.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(देववातम्) दिव्यगुणसम्पन्नस्य रक्षयोत्पन्नं तथा (नृभिः सुतः) प्रजाभिरुत्पादितं (अप्सु धूतः) जलैः शुद्धं च (शुभ्रम् अन्धः) वीर्यबुद्धिवर्धनेन उज्ज्वलम् अन्नं (गावः पयोभिः) गोदुग्धसंस्कृतं (स्वदन्ति) प्रजा उपभुञ्जते ॥५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(देववातम्) उस दिव्यगुणसम्पन्न सेनाधिप की रक्षा से सुरक्षित तथा (नृभिः सुतः) प्रजाओं द्वारा पैदा किये गये जो अन्न (अप्सु धूतः) और जो जल से शुद्ध किया गया है (शुभ्रम् अन्धः) वीर्य और बुद्धि के वर्धक उस उज्ज्वल अन्न को (गावः पयोभिः) भली-भाँति जो कि गऊ के दुग्ध से संस्कृत है, ऐसे अन्न को (स्वदन्ति) प्रजागण उपभोग करते हैं ॥५॥
भावार्थ
जिस देश में प्रजा की रक्षा करनेवाले सेनाधीश होते हैं, उस देश की प्रजा नाना प्रकार के अन्नों को दुग्ध से मिश्रित करके उपभोग करती है। तात्पर्य यह है कि राजधर्म से सुरक्षित ही ऐश्वर्य को भोग सकते हैं, अन्य नहीं, इसलिये परमात्मा ने इस मन्त्र में राजधर्म का उपदेश किया है ॥५॥
विषय
सात्त्विक अन्न व सोमरक्षण
पदार्थ
[१] जब (गाव:) = हमारी इन्द्रियाँ (देववातम्) = देवताओं से प्रार्थित [देवताओं से जाये गये] (शुभ्रं अन्धः) = शुद्ध- सात्त्विक अन्न को (पयोभिः) = दूध के साथ (स्वदन्ति) = खाती हैं, तो (नृभिः) = उन्नतिपथ पर चलनेवालों से (सुतः) = शरीर में उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (अप्सु धूतः) = कर्मों में शुद्ध किया जाता है [ शोधितः सा० ] । [२] सात्त्विक अन्न व दुग्ध के सेवन से उत्पन्न सोम शरीर में सुरक्षित रहता है। यह सोम कर्मों में शोधित होता है। अर्थात् जब हम कर्मों में लगे रहते हैं, तो वासनाओं के उत्पन्न न होने से सोम शुद्ध बना रहता है ।
भावार्थ
भावार्थ - सात्त्विक अन्न व दुग्ध का सेवन सोमरक्षण के लिये अनुकूल होता है ।
विषय
अभिषिक्त का वर्णन।
भावार्थ
(शुभ्रम् अन्धः) शुद्ध अन्न (देववातम्) सूर्य की किरणों से स्वच्छ होता है, जिस प्रकार (गावः) गौएं (पयोभिः) अपने दुग्धों से (शुभ्रम्) शुभ्र, श्वेत हुए (देववातम्) विद्वानों से प्राप्त अन्न को (स्वदन्ति) अधिक स्वादयुक्त कर देती हैं उसी प्रकार (अप्सु धूतः) जलों में परिष्कृत और (नृभिः सुतः) नायक पुरुषों से अभिषिक्त पुरुष भी सब को रुचिकर हो (गावः) ये भूमियां और वाणियें अपने (पयोभिः) अभिषेक जलों से उसे अधिक रुचिकर बनावें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The radiant food of ambition created by people, energised by noble leaders, sanctified in action, the people enjoy seasoned with delicacies of cow’s milk.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या देशात प्रजेचे नाना प्रकारे रक्षण करणारे सेनाधीश असतात, त्या देशाची प्रजा अनेक प्रकारचे अन्न व दूधासह उपभोग करते.
टिप्पणी
तात्पर्य हे की राजधर्माद्वारे सुरक्षित लोकच ऐश्वर्य भोगू शकतात इतर नाही. त्यासाठी परमेश्वराने या मंत्रात राजधर्माचा उपदेश केलेला आहे. ॥५॥
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