ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 22
ए॒ते सोमा॑ असृक्षत गृणा॒नाः श्रव॑से म॒हे । म॒दिन्त॑मस्य॒ धार॑या ॥
स्वर सहित पद पाठए॒ते । सोमाः॑ । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ । गृ॒णा॒नाः । श्रव॑से । म॒हे । म॒दिन्ऽत॑मस्य । धार॑या ॥
स्वर रहित मन्त्र
एते सोमा असृक्षत गृणानाः श्रवसे महे । मदिन्तमस्य धारया ॥
स्वर रहित पद पाठएते । सोमाः । असृक्षत । गृणानाः । श्रवसे । महे । मदिन्ऽतमस्य । धारया ॥ ९.६२.२२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 22
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एते सोमाः) इमे सेनाधीशाः (महे श्रवसे गृणानाः) महायशसे संस्तुताः (मदिन्तमस्य धारया) आनन्ददायकशौर्य्यादिशक्तिधारासहिताः (असृक्षत) उत्पाद्यन्ते ॥२२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एते सोमाः) ये सेनापति (महे श्रवसे गृणानाः) महा यश के लिये स्तुति किये गये (मदिन्तमस्य धारया) आह्लादक शौर्य-वीर्यादि शक्तियों की धारा के सहित (असृक्षत) पैदा किये जाते हैं ॥२२॥
भावार्थ
उक्त गुणोंवाले सेनापति संसार में यश और बल बढ़ाने के लिये उत्पन्न किये जाते हैं ॥२२॥
विषय
श्रवसे महे
पदार्थ
[१] (एते) = ये (सोमाः) = सोमकण [रेतःकण] (असृक्षत) = उत्पन्न किये जाते हैं । (गृणानाः) = स्तुति किये जाते हुए ये (महे श्रवसे) = महान् ज्ञान के लिये होते हैं । इनके रक्षण से ज्ञानाग्नि दीप्त होती है, बुद्धि सूक्ष्म बनती है । यह सूक्ष्म बुद्धि उत्कृष्ट ज्ञान की प्राप्ति का साधन बनती है । [२] ये सोम (मदिन्तमस्य) = [मादयितृतमस्य] अत्यन्त उल्लास को पैदा करनेवाले अपने रस की (धारया) = धारणशक्ति से उत्कृष्ट ज्ञान का साधन बनते हैं शरीर में सुरक्षित सोम अपनी धारणशक्ति के द्वारा जहाँ शरीर को स्वस्थ बनाता है, वहाँ मस्तिष्क को खूब दीप्त बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम महान् ज्ञान की प्राप्ति का साधन बनता है ।
विषय
मुख्य शासक के नीचे अनेक गौण शासक हों।
भावार्थ
(मदिन्तमस्य धारया) अति अधिक स्तुत्य, सर्वोपरि शासक राजा की (धारया) वाणी या आज्ञा से (महे श्रवसे) बड़े भारी यश प्राप्त करने के लिये (एते गृणानाः) ये स्तुति किये जाने योग्य प्रस्तुत, (सोमाः) अन्य गौण शासक भी (असृक्षत) बनाये जावें। प्रधान पद के अधीन मुख्य कर्मचारियों का भी चुनाव प्रधान की आज्ञानुसार हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
These somas of human beauty, culture and graces celebrated in song are created for the great sustenance of fame, honour and excellence of life by the stream of the most exciting annals of human history.
मराठी (1)
भावार्थ
वरील गुणांचे सेनापती जगात यश व बल वाढविण्यासाठी उत्पन्न केले जातात. ॥२२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal