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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 21
    ऋषिः - जमदग्निः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ न॒: सोमं॑ प॒वित्र॒ आ सृ॒जता॒ मधु॑मत्तमम् । दे॒वेभ्यो॑ देव॒श्रुत्त॑मम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नः॒ । सोम॑म् । प॒वित्रे॑ । आ । सृ॒जत॑ । मधु॑मत्ऽतमम् । दे॒वेभ्यः॑ । दे॒व॒श्रुत्ऽत॑मम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ न: सोमं पवित्र आ सृजता मधुमत्तमम् । देवेभ्यो देवश्रुत्तमम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नः । सोमम् । पवित्रे । आ । सृजत । मधुमत्ऽतमम् । देवेभ्यः । देवश्रुत्ऽतमम् ॥ ९.६२.२१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 21
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे पण्डिताः ! यूयं (नः) अस्माकं (सोमम्) सौम्यस्वभाववन्तं स्वामिनं (आ सृजत) इत्थं साधयत यथा (मधुमत्तमम्) मधुरप्रकृतिषूत्तमो भवतु। अथ च (देवेभ्यः देवश्रुत्तमम्) विद्वज्जनप्रार्थनां शृणोतु ॥२१॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे विद्वानों ! तुम (नः) हम लोगों के (सोमम्) सौम्य स्वभाववाले स्वामी को (आ सृजत) इस प्रकार सिद्ध करो, जिससे (मधुमत्तमम्) मधुर स्वभाववालों में उत्तम हो और (देवेभ्यः देवश्रुत्तमम्) सब देवों अर्थात् विद्वानों की प्रार्थना सुननेवाला हो ॥२१॥

    भावार्थ

    हे प्रजाजनों ! तुम ऐसे सेनापति वरण करो, जो मधुर स्वभाववाला हो और सबकी प्रार्थनाओं पर ध्यान देनेवाला हो ॥२१॥

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    विषय

    मधुमत्तम- देवश्रुत्तम

    पदार्थ

    [१] प्रभु कहते हैं कि हे जीवो! तुम (नः) = हमारे (सोमम्) = इस सोम को (पवित्रे) = पवित्र हृदय में (आसृजत) = सर्वथा उत्पन्न करो । हृदय की पवित्रता के होने पर ही यह शरीर में सुरक्षित रहता है। [२] उस सोम को तुम अपने में पैदा करो, जो कि (मधुमत्तमम्) = जीवन को अत्यन्त मधुर बनानेवाला है तथा (देवेभ्यः) = देववृत्तिवाले पुरुषों के लिये (देवश्रुतमम्) = उस महान् देव की वाणी को, इस ज्ञान की वाणी को अधिक से अधिक सुननेवाला है। अर्थात् इस सोम से प्रथम तो जीवन मधुर बनता है, दूसरे इसका रक्षक पुरुष ज्ञान की रुचि के उत्पन्न होने से प्रभु की वाणी को सुननेवाला होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हृदय को पवित्र बनाकर सोम के रक्षण से हमारा जीवन मधुर व ज्ञान प्रवण [ज्ञान की ओर झुकाववाला] बने ।

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    विषय

    बहुश्रुत पुरुष का अभिषेक करो।

    भावार्थ

    हे विद्वान् लोगो ! (देवेभ्यः) देव, ज्ञानदाता, तत्व ज्ञान के प्रकाशक विद्वानों से जिसने (देवश्रुत्-तमम्) देव, प्रभु की वेदवाणी का खूब श्रवण किया हुआ हो, और (मधुमत्-तमम्) जो अति मधुर वचन वाला हो ऐसे को (सोमं) उत्तम शासक रूप से (पवित्रे आ सृजत) निष्कण्टक राज्य के पवित्र पद पर नियुक्त करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O performers and partners of humanity’s yajnic social order, create, preserve and extend our soma of the nation’s joy, beauty and grace, sweetest honeyed soma ever heard of by the divinities, on the sacred earth in honour of the holiest of holies.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे प्रजाजनांनो! तुम्ही अशा सेनापतीला निवडा. जो मधुर स्वभावाचा असेल व सर्वांची प्रार्थना ऐकणारा असेल. ॥२१॥

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