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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 26
    ऋषिः - जमदग्निः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वं स॑मु॒द्रिया॑ अ॒पो॑ऽग्रि॒यो वाच॑ ई॒रय॑न् । पव॑स्व विश्वमेजय ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वम् । स॒मु॒द्रियाः॑ । अ॒पः । अ॒ग्रि॒यः । वाचः॑ । ई॒रय॑न् । पव॑स्व । वि॒श्व॒म्ऽए॒ज॒य॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वं समुद्रिया अपोऽग्रियो वाच ईरयन् । पवस्व विश्वमेजय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वम् । समुद्रियाः । अपः । अग्रियः । वाचः । ईरयन् । पवस्व । विश्वम्ऽएजय ॥ ९.६२.२६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 26
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 29; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (विश्वमेजय) भयङ्करतयाखिलजगद्वशकर्त्तः ! हे परमात्मन् ! भवान् (अग्रियः) मुख्योऽस्ति (वाचः ईरयन्) स्वानुशासनेन (समुद्रियाः अपः) सागरसम्बन्धिजलानि (पवस्व) बाधारहितानि करोतु ॥२६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (विश्वमेजय) हे सब संसार को भय से अपने वश में रखनेवाले ! आप (अग्रियः) प्रधान हैं (वाचः ईरयन्) अपने अनुशासन द्वारा (समुद्रियाः अपः) समुद्रसम्बन्धी जलों को (पवस्व) निर्बाध करिये ॥२६॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा की कृपा से ही सब पदार्थ निर्विघ्र रह सकते हैं, अन्यथा नहीं, इसी का वर्णन किया गया है ॥२६॥

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    विषय

    'विश्वमेजय'

    पदार्थ

    [१] हे (विश्वमेजय) = सब रोगकृमियों व वासनाओं को कम्पित करके दूर करनेवाले सोम ! (त्वम्) = तू (पवस्व) = हमें प्राप्त हो। तेरे द्वारा सब रोगकृमियों का विनाश होकर हमें स्वस्थ व सबल शरीर प्राप्त हो तथा वासनाओं का विनाश होकर पवित्र हृदय मिले। [२] तू (अग्रियः) = हमारी उन्नति का साधक है । (वाचः) = ज्ञान की वाणियों को उन पवित्र हृदयों में (ईरयन्) = प्रेरित करता हुआ तू (समुद्रियाः अपः) = ज्ञानैश्वर्य के समुद्र भूत इन वेदों के [रायः समुद्राँश्चतुरः] ज्ञान जलों को हमें प्राप्त करा ।

    भावार्थ

    भावार्थ - रोगकृमियों व वासनाओं को कम्पित करके दूर करता हुआ यह सोम हमें ज्ञान- समुद्रभूत वेदों के ज्ञान जलों को प्राप्त कराये।

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    विषय

    बलशाली बनने के लिये, योग्य नाना कलाविदों से ज्ञान प्राप्त करे।

    भावार्थ

    हे (विश्वम्-एजय) समस्त संसार को कंपाने या सन्मार्ग में चलाने वाले प्रभो ! राजन् ! मेघ वा सूर्य जिस प्रकार (समुद्रियाः अपः) अन्तरिक्ष वा समुद्र के जलों को वायु द्वारा आकाश में उठाता और लोकों के प्रति बरसाता है उसी प्रकार मेघस्थ जलधाराओं के तुल्य तू (वाचः ईरयन्) लोकहितार्थ वाणियों को देता हुआ (पवस्व) प्रजा पर सुखों की वर्षा कर, राज्य को पवित्र कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O mover, shaker and inspirer of the world, you are the first and foremost leading light, flow forth purifying, sanctifying and energising the oceanic vapours and waters of space, and inspiring and preserving the eternal Word and the speech, manners and cultures of the world of humanity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमेश्वराच्या कृपेनेच सर्व पदार्थ निर्विघ्न राहू शकतात, अन्यथा नाही. ॥२६॥

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