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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 8
    ऋषिः - जमदग्निः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    सो अ॒र्षेन्द्रा॑य पी॒तये॑ ति॒रो रोमा॑ण्य॒व्यया॑ । सीद॒न्योना॒ वने॒ष्वा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । अ॒र्ष॒ । इन्द्रा॑य । पी॒तये॑ । ति॒रः । रोमा॑णि । अ॒व्यया॑ । सीद॑न् । योना॑ । वने॑षु । आ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सो अर्षेन्द्राय पीतये तिरो रोमाण्यव्यया । सीदन्योना वनेष्वा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । अर्ष । इन्द्राय । पीतये । तिरः । रोमाणि । अव्यया । सीदन् । योना । वनेषु । आ ॥ ९.६२.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 8
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे प्रभो ! (सः) पूर्वोक्तस्त्वं (योना आसीदन्) स्वपदे तिष्ठन् (वनेषु) स्वराष्ट्रे (इन्द्राय पीतये) विज्ञानिनां तृप्तये (अर्ष) व्यापको भव (तिरः रोमाणि अव्यया) अथ चान्तर्हितजीवात्मानां समस्तरोमाणि रक्षय ॥८॥

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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    हे स्वामिन् ! (सः) पूर्वोक्त आप (योना आसीदन्) अपने पद पर स्थित होते हुए (वनेषु) अपने राष्ट्र में (इन्द्राय पीतये) विज्ञानी की तृप्ति के लिये (अर्ष) व्याप्तिशील होवें (तिरः रोमाणि अव्यया) और अन्तर्हित जीवों को भी रोम-रोम प्रति अव्यय अर्थात् दृढ़ रक्षित करिये ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में यह प्रतिपादन किया गया है कि राजधर्म की रक्षा द्वारा देश में ज्ञान और विज्ञानी की वृद्धि होती है ॥८॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, spirit of holy action and life’s sanctity, settle in your seat of yajnic action in the nation’s heart for the honour and excellence of human values and flow free down the permanent annals of human history and tradition.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात हे प्रतिपादन केलेले आहे की राजधर्माच्या रक्षणाद्वारे देशात ज्ञानविज्ञानाची वृद्धी होते. ॥८॥

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