ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 12
आ प॑वस्व सह॒स्रिणं॑ र॒यिं गोम॑न्तम॒श्विन॑म् । पु॒रु॒श्च॒न्द्रं पु॑रु॒स्पृह॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । प॒व॒स्व॒ । स॒ह॒स्रिण॑म् । र॒यिम् । गोऽम॑न्तम् । अ॒श्विन॑म् । पु॒रु॒ऽच॒न्द्रम् । पु॒रु॒ऽस्पृहम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ पवस्व सहस्रिणं रयिं गोमन्तमश्विनम् । पुरुश्चन्द्रं पुरुस्पृहम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । पवस्व । सहस्रिणम् । रयिम् । गोऽमन्तम् । अश्विनम् । पुरुऽचन्द्रम् । पुरुऽस्पृहम् ॥ ९.६२.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 12
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे सेनाधिपते ! (सहस्रिणम्) भवान् अनेकविधैः (गोमन्तम् अश्विनम्) गवाश्वादिभिः सह (चन्द्रम्) आनन्दजनकं (पुरुस्पृहम्) सर्वजनप्रार्थनीयम् (पुरु रयिम्) अधिकं धनं (आ पवस्व) सर्वथा सञ्चिनोतु ॥१२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे सेनाधीश ! (सहस्रिणम्) आप प्रत्येक प्रकार के (गोमन्तम् अश्विनम्) गो-अश्वादि के सहित (चन्द्रम्) हर्षोत्पादक (पुरुस्पृहम्) अनके लोगों से प्रार्थनीय (पुरु रयिम्) बहुत से धन को (आ पवस्व) सर्वथा सञ्चित करिये ॥१२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा ने सेनाधीश के गुणों का वर्णन किया है कि सेनाधीश सहस्र प्रकार के ऐश्वर्यों को प्रजाजनों के लिये उत्पन्न करे ॥१२॥
विषय
पुरुश्चन्द्रं पुरुस्पृहं [ रयिम् ]
पदार्थ
[१] हे सोम ! तू (रयिम्) = ऐश्वर्य को (आपवस्व) = हमारे लिये सर्वथा प्राप्त करा । उस रयि को, जो कि (सहस्रिणम्) = [सहस्] आनन्द का कारणभूत है। (गोमन्तम्) = प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाला है। तथा (अश्विनम्) = प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाला है । सोमरक्षण से ज्ञानेन्द्रियाँ व कर्मेन्द्रियाँ उत्तम बनती हैं, जीवन आनन्दमय होता है । [२] उस रयि को, हे सोम ! तू प्राप्त करा, जो कि (पुरुश्चन्द्रम्) = पालक व पूरक होता हुआ आह्लाद को देनेवाला है तथा (पुरुस्पृहम्) = पालक व पूरक होने के कारण स्पृहणीय है । सोम से प्राप्त कराया गया यह रयि ही 'तेज, वीर्य, बल व ओज, ज्ञान व आनन्द' के रूप में प्रकट होता है और जीवन को स्पृहणीय बना देता है।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम शरीर के लिये अद्भुत रयि को देनेवाला होता है। इस रयि के परिणामस्वरूप जीवन उत्तम ज्ञानेन्द्रियोंवाला, उत्तम कर्मेन्द्रियोंवाला व आनन्दमय बनता है ।
विषय
राष्ट्रैश्वर्य की वृद्धि करे।
भावार्थ
हे उत्तम शासक ! तू (सहस्रिणं) अपरिमित, (गोमन्तं अश्विनम्) गौ, अश्वों से युक्त (पुरु-चन्द्रम् पुरु-स्पृहम्) बहुतों को आह्लाद देने वाले, बहुतों के चाहने योग्य (रयिम्) ऐश्वर्य को (आ पवस्व) प्रदान कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, come, flow and bring us piety and purity of a thousandfold wealth of lands, cows, literature and culture, horses, speed and progressive success all beautiful and universally cherished.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमेश्वराने सेनाधीशाच्या गुणांचे वर्णन केलेले आहे की सेनाधीशाने प्रजेसाठी सहस्रो प्रकारचे ऐश्वर्य उत्पन्न करावे. ॥१२॥
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