ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 14
स॒हस्रो॑तिः श॒ताम॑घो वि॒मानो॒ रज॑सः क॒विः । इन्द्रा॑य पवते॒ मद॑: ॥
स्वर सहित पद पाठस॒हस्र॑ऽऊतिः । श॒तऽम॑घः । वि॒ऽमानः॑ । रज॑सः । क॒विः । इन्द्रा॑य । प॒व॒ते॒ । मदः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सहस्रोतिः शतामघो विमानो रजसः कविः । इन्द्राय पवते मद: ॥
स्वर रहित पद पाठसहस्रऽऊतिः । शतऽमघः । विऽमानः । रजसः । कविः । इन्द्राय । पवते । मदः ॥ ९.६२.१४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 14
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्राय) स सेनापतिः महदैश्वर्यप्राप्तये (सहस्रोतिः) सहस्रशः शक्तीर्दधाति। तथा (शतामघः) अनेकप्रकारेण धनं सञ्चिनुते। तथा (विमानः रजसः) प्रजारक्षणाय रजोगुणप्रधानो भवति। अथ च (कविः) सर्वशास्त्रमर्मवित् तथा (इन्द्राय मदः) विज्ञानिनां सत्कारकर्ता तृप्तिकर्ता च (पवते) विशेषं गोपायति ॥१४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्राय) वह सेनापति इन्द्र अर्थात् सर्वोपरि ऐश्वर्यसम्पन्न होने के लिये (सहस्रोतिः) सहस्रों प्रकार की रक्षणशक्ति को धारण करता है और (शतामघः) सैकड़ों प्रकार के धनों का संचय करता है (विमानः रजसः) और प्रजारक्षणार्थ रजोगुणप्रधान होता है (कविः) सब शास्त्रों का प्राज्ञ तथा (इन्द्राय मदः) विज्ञानियों का सत्कर्ता और तृप्तिकर्ता तथा (पवते) उनकी विशेषरूप से रक्षा करता है ॥१४॥
भावार्थ
जो विद्वानों का रक्षक तथा सत्कार करनेवाला और विद्या के प्रचार में प्रेमी होता है, वही सेनापति प्रशंसित कहा जाता है ॥१४॥
विषय
'शतामघः' [सोम]
पदार्थ
[१] (इन्द्राय) = जितेन्द्रिय पुरुष के लिये (मदः) = यह उल्लास का जनक सोम (पवते) = प्राप्त होता है । जितेन्द्रियता सोमरक्षण का साधन है और रक्षित हुआ हुआ सोम आनन्द व उल्लास को जन्म देता है । [२] यह सोम (सहस्त्रोतिः) = हजारों प्रकार से हमारा रक्षण करनेवाला है। (शतामघ:) = सैंकड़ों ऐश्वर्योंवाला है, यह जीवन के अन्दर शतशः ऐश्वर्यों को जन्म देता है। वस्तुतः अन्नमय आदि सब कोशों को यही उस-उस ऐश्वर्य से परिपूर्ण करता है, यही (रजसः विमान:) = [ रजः कर्मणि भारत गी०] सब गति का विशेष मानपूर्वक बनानेवाला है । सोम ही हमें स्फूर्तिमय जीवनवाला बनाता है । (कविः) = यह हमें क्रान्तप्रज्ञ बनाता है। संक्षेप में यह सोम ही गति व ज्ञान को पैदा करता है ।
भावार्थ
भावार्थ- शरीर में सुरक्षित सोम शरीर का रक्षण करता है, इसे सब ऐश्वर्यों से परिपूर्ण करता है । यही हमें गति व ज्ञान से युक्त करता है।
विषय
राजा के ईश्वरवत् कर्त्तव्य।
भावार्थ
(सहस्रोतिः) सहस्रों रक्षा साधनों से युक्त, (शत-मघः) सैकड़ों ऐश्वर्यों वाला, (रजसः वि-मानः) लोकों का बनाने वा जानने वाला (कविः) क्रान्तदर्शी विद्वान् (मदः) आनन्दजनक प्रभु (इन्द्राय पवते) इस जीव के लिये समस्त आनन्द की धाराएं वर्षाता है। उसी प्रकार राजा भी प्रजा जन के लिये सदा सुखैश्वर्य प्रदान करे।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, divine spirit and power of a thousand ways of protection, a hundred modes of wealth and power, commanding controller of the energies of life, visionary creator of beauty and poetry, is dynamic, ever fluent, and it creates and releases joy and ecstasy for the honour of Indra, glory of the human social order.
मराठी (1)
भावार्थ
जो विद्वानांचे रक्षण करणारा व सत्कार करणारा तसेच विद्येचा प्रचार करण्याची आवड असणारा असेल, तोच प्रशंसित सेनापती समजला जातो. ॥१४॥
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