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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 62 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 25
    ऋषिः - जमदग्निः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    पव॑स्व वा॒चो अ॑ग्रि॒यः सोम॑ चि॒त्राभि॑रू॒तिभि॑: । अ॒भि विश्वा॑नि॒ काव्या॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑स्व । वा॒चः । अ॒ग्रि॒यः । सोम॑ । चि॒त्राभिः॑ । ऊ॒तिऽभिः॑ । अ॒भि । विश्वा॑नि । काव्या॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवस्व वाचो अग्रियः सोम चित्राभिरूतिभि: । अभि विश्वानि काव्या ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवस्व । वाचः । अग्रियः । सोम । चित्राभिः । ऊतिऽभिः । अभि । विश्वानि । काव्या ॥ ९.६२.२५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 25
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे सौम्यस्वभावशालिन् ! (अग्रियः) यतोऽस्मास्वग्रणीर्भवान् अतः (चित्राभिः ऊतिभिः) बहुविधविचित्ररक्षाभिः (वाचः) स्वाज्ञाविषयिणीं वाचम् तथा (विश्वानि काव्या) समस्तवेदादिकाव्यानि (अभिरक्ष) सुरक्षयतु ॥२५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे सौम्य ! (अग्रियः) आप जो कि हम लोगों में अग्रणी हैं, इससे (चित्राभिः ऊतिभिः) अनेक प्रकार की विचित्र रक्षाओं से (वाचः) अपनी आज्ञाविषयक वाणी को तथा (विश्वानि काव्या) सम्पूर्ण वेदादि काव्यों को (अभिरक्ष) सुरक्षित कीजिये ॥२५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमेश्वर से रक्षार्थ प्रार्थना की गई है ॥२५॥

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    विषय

    'अग्रिय' सोम

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! तू हमारे लिये (चित्राभिः ऊतिभिः) = अद्भुत रक्षणों के हेतु से (वाचः) = ज्ञान की वाणियों को (पवस्व) = प्राप्त करा। (अग्रियः) = तू हमारी अग्रगति का साधन है । सब उन्नतियों का तू मूल यह सोमरक्षण ही है। [२] तू (विश्वानि काव्या अभि) = सब प्रभु की वेदवाणियों की ओर हमें ले चल ‘देवस्य पश्य काव्यं न ममार न जीर्यति' । सोमरक्षण के द्वारा दीप्त बुद्धि बनकर हम ज्ञान की वाणियों को प्राप्त करें।

    भावार्थ

    भावार्थ- ज्ञान की वाणियों की ओर ले चलता हुआ यह सोम हमें उन्नतिपथ पर ले चलता है, यह 'अग्रिय' है ।

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    विषय

    बलशाली बनने के लिये, योग्य नाना कलाविदों से ज्ञान प्राप्त करे।

    भावार्थ

    हे (सोम) ऐश्वर्य के स्वामिन्! राजन् ! तू (अग्रियः) अग्रासन के योग्य होकर (चित्राभिः ऊतिभिः) आश्चर्यकारक ज्ञानों और विचारों से अपनी (वाचः पवस्व) वाणियों को स्वच्छ कर और (विश्वानि) समस्त प्रकार के विद्वानों के ज्ञानों और उनके उत्तम २ उपदेशों को (पवस्व) प्राप्त कर। इत्यष्टाविंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, you are the leading light. With various and wonderful modes of protection and preservation, purify and sanctify the speech of humanity and let it flow free and fine. Be the same preserver, sanctifier and promoter of all the art and literature of the world.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमेश्वराला रक्षण करण्यासाठी प्रार्थना केलेली आहे. ॥२५॥

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