ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 62/ मन्त्र 24
उ॒त नो॒ गोम॑ती॒रिषो॒ विश्वा॑ अर्ष परि॒ष्टुभ॑: । गृ॒णा॒नो ज॒मद॑ग्निना ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒त । नः॒ । गोऽम॑तीः । इषः॑ । विश्वाः॑ । अ॒र्ष॒ । प॒रि॒ऽस्तुभः॑ । गृ॒णा॒नः । ज॒मत्ऽअ॑ग्निना ॥
स्वर रहित मन्त्र
उत नो गोमतीरिषो विश्वा अर्ष परिष्टुभ: । गृणानो जमदग्निना ॥
स्वर रहित पद पाठउत । नः । गोऽमतीः । इषः । विश्वाः । अर्ष । परिऽस्तुभः । गृणानः । जमत्ऽअग्निना ॥ ९.६२.२४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 62; मन्त्र » 24
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 28; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(उत) तथा (जमदग्निना गृणानः) समधिज्वलितप्रतापतया सर्वैः स्तूयमानो भवान् (नः) अस्मभ्यं (परिष्टुभः) निश्चलाः (विश्वाः) बहुविधाः (गोमतीः इषः) गवादिपदार्थयुक्ताः शक्तीः (अर्ष) प्रापयतु ॥२४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(उत) और (जमदग्निना गृणानः) प्रज्वलित प्रताप होने से सब लोगों से स्तूयमान आप (नः) हमारे लिये (परिष्टुभः) जो कि किसी प्रकार नहीं चलनेवाली ऐसी (विश्वाः) सब प्रकार की (गोमतीः इषः) गवादि पदार्थ युक्त शक्ति को (अर्षः) प्राप्त कराइये ॥२४॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करता है कि हे प्रजाननो ! तुम लोग उक्तगुणसम्पन्न राजपुरुषों के सदैव अनुयायी बने रहो, ताकि वे तुम्हारे लिये पृथिव्यादिलोक-लोकान्तरों के ऐश्वर्यों से तुम्हें विभूषित करें ॥२४॥
विषय
'ज्ञानाग्नि व जाठराग्नि' का दीपन
पदार्थ
[१] हे सोम ! तू (उत) = निश्चय से (नः) = हमारे लिये (विश्वा:) = सब (गोमती:) = प्रशस्त ज्ञान की वाणियोंवाली (इषः) = प्रेरणाओं को (अर्ष) = प्राप्त करा । ये प्रेरणायें (परिष्टुभः) = सब ओर से आक्रमण करनेवाली [परि] वासनाओं को रोकनेवाली है [स्तुभ्] । [२] यह सोम (जमदग्निना) = जमदग्नि से (गृणान:) = स्तुति किया जाता है। 'जमद् अग्नि' वह व्यक्ति है जिसकी कि जाठराग्नि [वैश्वानर अग्नि] ठीक रहती हैं, जिसकी अग्नि में मन्दता नहीं आती। वस्तुतः सोमरक्षण के द्वारा ही जमदग्नि बनता है। सुरक्षित सोम ज्ञानाग्नि को भी दीप्त करता है, जाठराग्नि को भी ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हमें प्रभु-प्रेरणाओं के रूप में वह ज्ञान प्राप्त होता है जो कि वासनाओं के आक्रमण से हमें बचाता है। यह सोम जाठराग्नि को भी ठीक रखता है।
विषय
बलशाली बनने के लिये, योग्य नाना कलाविदों से ज्ञान प्राप्त करे।
भावार्थ
तू (जमदग्निना गृणानः) ‘जमदग्नि’ (जमत् = अग्नि) प्रज्वलित अग्नि रूप से स्तुति किया जाकर वा (जमद्-अग्निना) जो व्यक्ति अग्नियों को जलावे, अग्रणी नेताओं को प्रदीप्त करे उन्हें ज्ञान शौर्यादि गुणों से अलंकृत करे वा अग्नि को अधिक वेगवान् करने में समर्थ ऐसे शिल्पज्ञ, विद्वान्, नीतिमान्, तेजस्वी पुरुष से (गृणानः) उपदेश प्राप्त करके हे शासक राजन् ! तू (नः) हमारी (गोमतीः इषः) भूमियों वाली अन्न-सम्पदाएं अथवा (गोमतीः इषः) वाणियों से युक्त इच्छाएं, अथवा ‘गौ’ अश्वों से युक्त सेनाएं और (विश्वाः परिष्टुभः) समस्त स्तुतियों और समस्त शत्रुहिंसक शक्तियों को (अर्ष) प्राप्त कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
जमदग्निर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ६, ७, ९, १०, २३, २५, २८, २९ निचृद् गायत्री। २, ५, ११—१९, २१—२४, २७, ३० गायत्री। ३ ककुम्मती गायत्री। पिपीलिकामध्या गायत्री । ८, २०, २६ विराड् गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, lord of peace, joy and grace, glorified by the sage of vision and lighted fire, bring us all the world’s wealth of food, energy and knowledge abundant in lands and cows and graces of culture of permanent and adorable value.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की, हे प्रजाजनांनो! तुम्ही गुणसंपन्न राजपुरुषांचे सदैव अनुयायी बना. त्यामुळे त्यांनी पृथ्वी इत्यादी लोक-लोकांतराच्या ऐश्वर्याने तुम्हाला विभुषित करावे. ॥२४॥
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