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यजुर्वेद अध्याय - 21

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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 11
    ऋषिः - आत्रेय ऋषिः देवता - विद्वांसो देवता छन्दः - निचृत् त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः
    72

    वाजे॑वाजेऽवत वाजिनो नो॒ धने॑षु विप्राऽअमृताऽऋतज्ञाः।अ॒स्य मध्वः॑ पिबत मा॒दय॑ध्वं तृ॒प्ता या॑त प॒थिभि॑र्देव॒यानैः॑॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वाज॑वाज॒ऽइति॑ वाजे॑ऽवाजे। अ॒व॒त॒। वा॒जि॒नः॒। नः॒। धने॑षु। वि॒प्राः॒। अ॒मृ॒ताः॒। ऋ॒त॒ज्ञा॒ऽइत्यृ॒॑तज्ञाः। अ॒स्य। मध्वः॑। पि॒ब॒त॒। मा॒दय॑ध्वम्। तृ॒प्ताः। या॒त॒। प॒थिभि॒रिति॑ प॒थिऽभिः॑। दे॒व॒यानै॒रिति॑ देव॒ऽयानैः॑ ॥११ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वाजेवाजेवत वाजिनो नो धनेषु विप्राऽअमृताऽऋतज्ञाः । अस्य मध्वः पिबत मादयध्वन्तृप्ता यात पथिभिर्देवयानैः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वाजवाजऽइति वाजेऽवाजे। अवत। वाजिनः। नः। धनेषु। विप्राः। अमृताः। ऋतज्ञाऽइत्यृतज्ञाः। अस्य। मध्वः। पिबत। मादयध्वम्। तृप्ताः। यात। पथिभिरिति पथिऽभिः। देवयानैरिति देवऽयानैः॥११॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे अमृता ऋतज्ञा वाजिनो विप्राः! यूयं वाजेवाजे धनेषु नोऽवतास्य मध्वः पिबत, तेन मादयध्वमनेन तृप्ताः सन्तो देवयानैः पथिभिर्यात॥११॥

    पदार्थः

    (वाजेवाजे) युद्धे युद्धे (अवत) रक्षत (वाजिनः) विज्ञानवन्तः (नः) अस्मान् (धनेषु) (विप्राः) मेधाविनः (अमृताः) आत्मस्वरूपेण नित्याः (ऋतज्ञाः) य ऋतं सत्यं जानन्ति ते (अस्य) (मध्वः) मधुरस्य रसस्य। अत्र कर्मणि षष्ठी (पिबत) (मादयध्वम्) आनन्दयत (तृप्ताः) प्रीताः (यात) गच्छत (पथिभिः) (देवयानैः) देवा विद्वांसो यान्ति येषु तैः॥११॥

    भावार्थः

    यथा विद्वांसो विद्यादानोपदेशाभ्यां सर्वान् सुखयन्ति, तथैव राजपुरुषा रक्षाऽभयदानाभ्यां सर्वान् सुखयन्तु। धर्म्यमार्गेषु गच्छन्तोऽर्थकाममोक्षान् प्राप्नुवन्तु॥११॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे (अमृताः) आत्मस्वरूप से अविनाशी (ऋतज्ञाः) सत्य के जानने हारे (वाजिनः) विज्ञान वाले (विप्राः) बुद्धिमान् लोगो! तुम (वाजेवाजे) युद्ध-युद्ध में और (धनेषु) धनों में (नः) हमारी (अवत) रक्षा करो और (अस्य) इस (मध्वः) मधुर रस का (पिबत) पान करो और उस से (मादयध्वम्) विशेष आनन्द को प्राप्त होओ और इस से (तृष्ताः) तृप्त हाके (देवयानैः) विद्वानों के जाने योग्य (पथिभिः) मार्गों से (यात) जाओ॥११॥

    भावार्थ

    जैसे विद्वान् लोग विद्यादान से और उपदेश से सब को सुखी करते हैं, वैसे ही राजपुरुष रक्षा और अभयदान से सब को सुखी करें तथा धर्मयुक्त मार्गों में चलते हुए अर्थ, काम और मोक्ष इन तीन पुरुषार्थ के फलों को प्राप्त होवें॥११॥

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    विषय

    अश्वों, अश्वारोहियों और ज्ञानवान् पुरुषों के लक्षण ।

    भावार्थ

    व्याख्या देखो भ० ९ । १६, १८ ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जसे विद्वान लोक विद्यादान व उपदेश यांनी सर्वांना सुखी करतात, तसेच राजपुरुषांनी सर्वांचे रक्षण करून निर्भय बनवून सुखी करावे. धर्मयुक्त मार्गाचे अनुसरण करून अर्थ, काम, मोक्ष या तीन पुरुषार्थांचे फळ प्राप्त करावे.

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    विषय

    पुढील मंत्रात तोच विषय वर्णित आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे (अमृताः) आत्म्याच्या दृष्टीने अविनाशी असलेल्या (ऋतज्ञाः) सत्य जाणणाऱ्या (वाजिनः) विज्ञानवान (विप्राः) बुद्धिमान जनहो, आपण (वाजेवाज) प्रत्येक युद्धाच्या प्रसंगी आणि (धनेषु) धनप्राप्तीच्या प्रसंगी (नः) आम्हा (गृहस्थजनांचे (अवत) रक्षण करा. (अस्य) (आपल्या स्वागतासाठी तयार केलेल्या) (अस्य) या (मध्वः) मधुर रसाचे (शरबत आदीचे) (पिबत) सेवन करा आणि त्याद्वारे (मादयध्वम्‌) विशेष आनंद प्राप्त करा. या (आमच्या स्वागत-सत्काराचा स्वीकार करून) तुम्ही (सैनिक वा नेता) (देवयानैः) विद्वानलोक (तुमच्या आधी) ज्या (पथिभिः) मार्गने गेले आहेत, त्या मार्गाने तुम्ही जा. (युद्धासाठी प्रयाण करीत असलेल्या सैनिक तुकडीचे स्वागत वाटेत येणाऱ्या ग्रामाच्या ग्रामस्थांनी केले आणि त्याना पुढील मर्गाक्रमणासाठी शुभेच्छा दिल्या, असा या मंत्राचा विनियोग करता येतो. तसा हा प्रसंग वाटतो) ॥11॥

    भावार्थ

    भावार्थ - ज्याप्रमाणे विद्वान लोक विद्यादानाद्वारे आणि सदुपदेशाद्वारे सर्वांना आनंदित करतात, तद्वत राजपुरूषांनी सर्व प्रजाजनांना रक्षण आणि अभयदान देऊन सुखी केले पाहिजे. तसेच राजपुरूषांनी आणि प्रजाजनांनी धर्ममय मार्गाने पुढे पुढे जात अर्थ, काम आणि मोक्ष तीन पुरूषार्थफळें प्राप्त केली पाहिजेत ॥11॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O immortal, truth-knowing, learned, and wise people, help us in each fray, and our efforts to earn wealth. Drink deep the essence of knowledge, be joyful, be satisfied : then follow the paths which the sages are wont to tread.

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    Meaning

    Brilliant geniuses of the yajna of science and technology, self-realized souls, visionaries of the truths and laws of nature, defend and advance us in battle after battle of our life and in all our economic projects. Drinking deep of the honey-sweets of this programme, rejoice, content yourselves and, having completed your purpose of life, retire by the paths of the divines.

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    Translation

    O horses (of the sun), wise, immortal and skilled in eternal law, protect us in each and every battle for riches. Drink of this sweet mead. Be delighted; being satisfied, go on the paths along which the enlightened ones travel. (1)

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে (অমৃতাঃ) আত্মস্বরূপে অবিনাশী (ঋতজ্ঞাঃ) সত্যের জ্ঞাতা (বাজিনঃ) বিজ্ঞানবন্ত (বিপ্রাঃ) বুদ্ধিমান ব্যক্তিগণ ! তোমরা (বাজেবাজে) যুদ্ধে যুদ্ধে এবং (ধনেষু) ধনে (নঃ) আমাদের (অবত) রক্ষা কর এবং (অস্য) এই (মধ্বঃ) মধুর রসের (পিবত) পান কর এবং তাহা দ্বারা (মাদয়ধ্বম্) বিশেষ আনন্দ লাভ কর এবং ইহা দ্বারা (তৃপ্তাঃ) তৃপ্ত হইয়া (দেবয়ানৈঃ) বিদ্বান্দিগের গমন যোগ্য (পথিভিঃ) মার্গ দ্বারা গমন কর ॥ ১১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যেমন বিদ্বান্গণ বিদ্যাদান দ্বারা এবং উপদেশ দ্বারা সকলকে সুখী করে সেইরূপই রাজপুরুষ রক্ষা ও অভয়দান দ্বারা সকলকে সুখী করিবে তথা ধর্মযুক্ত মার্গে গমন করিয়া অর্থ, কাম ও মোক্ষ এই তিন পুরুষার্থের ফল লাভ কর ॥ ১১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    বাজে॑বাজেऽবত বাজিনো নো॒ ধনে॑ষু বিপ্রাऽঅমৃতাऽঋতজ্ঞাঃ ।
    অ॒স্য মধ্বঃ॑ পিবত মা॒দয়॑ধ্বং তৃ॒প্তা য়া॑ত প॒থিভি॑র্দেব॒য়ানৈঃ॑ ॥ ১১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বাজেবাজ ইত্যস্য আত্রেয় ঋষিঃ । বিদ্বাংসো দেবতাঃ । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    ধৈবতঃ স্বরঃ ॥

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