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यजुर्वेद अध्याय - 21

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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 26
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - विश्वेदेवा देवताः छन्दः - विराड् बृहती स्वरः - मध्यमः
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    शा॒र॒देन॑ऽऋ॒तुना॑ दे॒वाऽए॑कवि॒ꣳशऽऋ॒भव॑ स्तु॒ताः।वै॒रा॒जेन॑ श्रि॒या श्रिय॑ꣳ ह॒विरिन्द्रे॒ वयो॑ दधुः॥२६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शा॒र॒देन॑। ऋ॒तुना॑। दे॒वाः। ए॒क॒वि॒ꣳश इत्ये॑कऽवि॒ꣳशे। ऋ॒भवः॑। स्तु॒ताः। वै॒रा॒जेन॑। श्रि॒या। श्रिय॑म्। ह॒विः। इन्द्रे॑। वयः॑। द॒धुः॒ ॥२६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शारदेनऽऋतुना देवा एकविँ शऋभव स्तुताः । वैराजेन श्रिया श्रियँ हविरिन्द्रे वयो दधुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    शारदेन। ऋतुना। देवाः। एकविꣳश इत्येकऽविꣳशे। ऋभवः। स्तुताः। वैराजेन। श्रिया। श्रियम्। हविः। इन्द्रे। वयः। दधुः॥२६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 26
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! य एकविंशे स्तुता ऋभवो देवाः शारदेनर्तुना वैराजेन श्रिया सह वर्त्तमाना इन्द्रे श्रियं हविर्वयश्च दधुस्तान् यूयं सेवध्वम्॥२६॥

    पदार्थः

    (शारदेन) शरदि भवेन (ऋतुना) (देवाः) (एकविंशे) एतत्संख्याके (ऋभवः) मेधाविनः (स्तुताः) (वैराजेन) विराजि भवेनार्थेन (श्रिया) शोभया लक्ष्म्या वा (श्रियम्) लक्ष्मीम् (हविः) दातव्यमादातव्यम् (इन्द्रे) जीवे (वयः) कमनीयं सुखम् (दधुः) दध्युः॥२६॥

    भावार्थः

    ये सुपथ्यकारिणो जनाः शरद्यरोगा भवन्ति, ते श्रियमाप्नुवन्ति॥२६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जो (एकविंशे) इक्कीसवें व्यवहार में (स्तुताः) स्तुति किये हुए (ऋभवः) बुद्धिमान् (देवाः) दिव्यगुणयुक्त (शारदेन) शरद् (ऋतुना) ऋतु वा (वैराजेन) विराट् छन्द में प्रकाशमान अर्थ के साथ (श्रिया) शोभा और लक्ष्मी के साथ वर्त्ताव वर्त्तने हारे जन (इन्द्रे) जीवात्मा में (श्रियम्) लक्ष्मी और (हविः) देने-लेने योग्य (वयः) वाञ्छित सुख को (दधुः) धारण करें, उन का तुम लोग सेवन करो॥२६॥

    भावार्थ

    जो लोग अच्छे पथ्य करने हारे शरद् ऋतु में रोगरहित होते हैं, वे लक्ष्मी को प्राप्त होते हैं॥२६॥

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    विषय

    संवत्सर के ६ ऋतु भेद से यज्ञ प्रजापति और प्रजापालक राजा के ६ स्वरूपों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( शारदेन ऋतुना) शरद् ऋतु से, (ऋभवः देवाः) 'ऋभु, तेजस्वी विद्वान् (एकविंशे) एकविंशस्तोम के आधार पर (वैराजेन) वैराज साम से और ( श्रियम् ) लक्ष्मी से (इन्द्रे) इन्द्र, राजा और राष्ट्र में ( श्रियम् ) शोभा, लक्ष्मी, ऐश्वर्यं (हविः) अन्न और (वयः) दीर्घ जीवन (दधुः) धारण कराते और करते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    स्वराडनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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    विषय

    ऋभवः

    पदार्थ

    १. (इन्द्रे) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले जितेन्द्रिय पुरुष में (श्रियम्) = श्री को, (हविः) = त्यागपूर्वक अदन की वृत्ति को तथा (वयः) = उत्कृष्ट जीवन को (दधुः) = धारण करते हैं। कौन ? २. (ऋभवः देवा:) = वे देव जो ऋभु नामवाले हैं [मेधाविनाम - नि० ३।१५, उरु भान्ति, ऋतेन भान्ति, ऋतेन भवन्तीति वा नि० ११।१६] मेधावी हैं, ज्ञान- ज्योति से खूब चमकते हैं, ऋत से देदीप्यमान होते हैं अथवा सदा ऋत के साथ रहते हैं। ये देव ३. (शारदेन ऋतुना स्तुताः) = शरद् ऋतु से स्तुत होते हैं। जैसे शरद् ऋतु में ठीक प्रकार से अन्नों का परिपाक होता है, उसी प्रकार इन देवों में भी ज्ञान का परिपाक होता है। जैसे शरद् ऋतु में जल निर्मल हो जाता है, इसी प्रकार इनका मन भी निर्मल होता है। जैसे इस ऋतु में पत्ते शीर्ण हो जाते हैं, उसी प्रकार ये भी वासनाओं व रोगों को शीर्ण करनेवाले होते हैं। ४. ये देव (एकविंशे स्तुताः) = ' वे त्रिषप्ताः' मन्त्र के अनुसार शरीर को धारण करनेवाले इन इक्कीस बलों से युक्त होते हैं। इन इक्कीस शक्तियों के कारण इनकी सर्वत्र स्तुति होती है और ५. (वैराजेन श्रिया श्रियम्) = ये विशेषरूप से चमकनेवाली श्री से युक्त होते हैं। इनकी आकृति ही विशेषरूप से प्रभाव डालनेवाली होती है।

    भावार्थ

    भावार्थ - ऋभुदेव वे हैं जोकि शरद् ऋतु के समान ज्ञानरूप अन्न के परिपाकवाले होते हैं, शरीर की इक्कीस की इक्कीस शक्तियों का विकास कर पाते हैं और विशिष्ट दीप्तिवाली श्री से युक्त होते हैं। ये इन्द्र में 'श्री हवि व वयस्, उत्कृष्ट जीवन' का धारण करें।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे लोक शरद ऋतूमध्ये पथ्य करून रोगरहित होतात त्यांना लक्ष्मी प्राप्त होते.

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    विषय

    पुन्हा त्याच विषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यानो, (एकविशे) एकविसाव्या कार्यासाठी (अनेक वा विवधि कार्यासाठी) (स्तुताः) स्तुती करून आमंत्रित केलेले (ऋभवः) बुद्धिमान (देवाः) दिव्यगुणधारी विद्वान (शारदेन) या शरद (ऋतुना) ऋतूमधे (वांछित सुख प्राप्त करतात, तसे तुम्हीही करा) तसेच (वैराजेन) विराट् छंदातील (वेदमत्रात व्यक्त अर्थाप्रमाणे आचरण करणारे लोक (श्रया) सौंदर्य आणि लक्ष्मी प्राप्त करून (इन्द्रे) आपल्या आत्म्यात (श्रियम्‌) लक्ष्मी (धनप्राप्तीची इच्छा) आणि (हविः) आदान-प्रदान करण्याच्या व्यवहारामुळे (वयः) इच्छित सुख (दधुः) धारण करतात, त्या लोकांच्याजवळ राहून तुम्हीदेखील सुख प्राप्त करा. ॥26॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जे लोक पथ्याचे पालन करून शरद ऋतूमधे रोगनिवारण करतात, ते अवश्य लक्ष्मी (धनसंपदेची) प्रपात करतात. ॥26॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O people serve those wise and divine persons, who praised with a hymn of twenty-one verses, in the Autumn season, give to the soul grace, life and sacrifice, with riches and the significance conveyed in virat verses.

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    Meaning

    The Ribhus, brilliant and generous artists celebrated in the twenty-one fold stoma with the Viraja verses, in unison with the autumn season, create for man the means of health and age, comfort and beauty, and vest it in the soul with all the grace and majesty.

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    Translation

    In the Autumn season, may the divine Rbhus, praised with the Ekvimsa Stomas and with the Vairaj Samans, bestow splendour, supplies and long life on the aspirant. (1)

    Notes

    Śriya, with splendour.

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    बंगाली (1)

    विषय

    পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
    পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! যাহা (একবিংশে) একবিংশ ব্যবহারে (স্তুতাঃ) স্তুতি কৃত (ঋভবঃ) বুদ্ধিমান (দেবাঃ) দিব্য গুণযুক্ত (শারদেন) শরদ্ (ঋতুনা) ঋতু বা (বৈরাজেন) বিরাট্ ছন্দে প্রকাশমান অর্থ সহ (শ্রিয়া) শোভা ও লক্ষ্মী সহ ব্যবহারকারী ব্যক্তি (ইন্দ্রে) জীবাত্মায় (শ্রিয়ম্) লক্ষ্মী ও (হবিঃ) দেওয়ার যোগ্য (বয়) বাঞ্ছিত সুখকে (দধুঃ) ধারণ করিবে, তাহাদের তোমরা সেবন কর ॥ ২৬ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যাহারা সুপথ্যকারী শরদ্ ঋতুতে রোগরহিত হয়, তাহারা লক্ষ্মীকে প্রাপ্ত হইয়া থাকে ॥ ২৬ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    শা॒র॒দেন॑ऽঋ॒তুনা॑ দে॒বাऽএ॑কবি॒ꣳশऽঋ॒ভব॑ স্তু॒তাঃ ।
    বৈ॒রা॒জেন॑ শ্রি॒য়া শ্রিয়॑ꣳ হ॒বিরিন্দ্রে॒ বয়ো॑ দধুঃ ॥ ২৬ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    শারদেনেত্যস্য স্বস্ত্যাত্রেয় ঋষিঃ । বিশ্বেদেবা দেবতাঃ । বিরাড্ বৃহতী ছন্দঃ ।
    মধ্যমঃ স্বরঃ ॥

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