यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 2
ऋषिः - शुनःशेप ऋषिः
देवता - वरुणो देवता
छन्दः - निचृत् त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
174
तत्त्वा॑ यामि॒ ब्रह्म॑णा॒ वन्द॑मान॒स्तदाशा॑स्ते॒ यज॑मानो ह॒विर्भिः॑। अहे॑डमानो वरुणे॒ह बो॒ध्युरु॑शꣳस॒ मा न॒ऽआयुः॒ प्र मो॑षीः॥२॥
स्वर सहित पद पाठतत्। त्वा॒। या॒मि॒। ब्रह्म॑णा। वन्द॑मानः। तत्। आ। शा॒स्ते॒। यज॑मानः। ह॒विर्भि॒रिति॑ ह॒विःऽभिः॑। अहे॑डमानः। व॒रु॒ण॒। इ॒ह। बो॒धि॒। उरु॑शꣳसेत्युरु॑ऽशꣳस। मा। नः॒। आयुः॑। प्र। मो॒षीः॒ ॥२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविर्भिः । अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशँस मा न आयुः प्रमोषीः ॥
स्वर रहित पद पाठ
तत्। त्वा। यामि। ब्रह्मणा। वन्दमानः। तत्। आ। शास्ते। यजमानः। हविर्भिरिति हविःऽभिः। अहेडमानः। वरुण। इह। बोधि। उरुशꣳसेत्युरुऽशꣳस। मा। नः। आयुः। प्र। मोषीः॥२॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह॥
अन्वयः
हे वरुण विद्वज्जन! यथा यजमानो हविर्भिस्तदाशास्ते तथा ब्रह्मणा वन्दमानोऽहं तत्त्वा यामि। हे उरुशंस! मयाऽहेडमानस्त्वमिह न आयुर्मा प्रमोषीः शास्त्रं बोधि॥२॥
पदार्थः
(तत्) तम् (त्वा) त्वाम् (यामि) प्राप्नोमि (ब्रह्मणा) वेदविज्ञानेन (वन्दमानः) स्तुवन् (तत्) (आ) (शास्ते) इच्छति (यजमानः) (हविर्भिः) होतुं दातुमर्हैः पदार्थैः (अहेडमानः) सत्क्रियमाणः (वरुण) अत्युत्तम (इह) अस्मिन् संसारे (बोधि) बोधय (उरुशंस) बहुभिः प्रशंसित (मा) (नः) अस्माकम् (आयुः) जीवनं विज्ञानं वा (प्र) (मोषीः) चोरयेः॥२॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो यस्माद्विद्यामाप्नुयात् स तं पूर्वमभिवादयेत्। यो यस्याध्यापकः स्यात् स तस्मै विद्यादानाय कपटं न कुर्यात्, कदाचित् केनचिदाचार्य्यो नाऽवमन्तव्यः॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥
पदार्थ
हे (वरुण) अति उत्तम विद्वान् पुरुष! जैसे (यजमानः) यजमान (हविर्भिः) देने योग्य पदार्थों से (तत्) उस की (आ, शास्ते) इच्छा करता है वैसे (ब्रह्मणा) वेद के विज्ञान से (वन्दमानः) स्तुति करता हुआ मैं (तत्) उस (त्वा) तुझ को (यासि) प्राप्त होता है। हे (उरुशंस) बहुत लोगों से प्रशंसा किये हुए जन! मुझ से (अहेडमानः) सत्कार को प्राप्त होता हुआ तू (इह) इस संसार में (नः) हमारे (आयुः) जीवन वा विज्ञान को (मा) मत (प्र, मोषीः) चुरा लेवे और शास्त्र का (बोधि) बोध कराया कर॥२॥
भावार्थ
इस में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य जिससे विद्या को प्राप्त हो, वह उसको प्रथम नमस्कार करे। जो जिस का पढ़ाने वाला हो, वह उसको विद्या देने के लिए कपट न करे, कदापि किसी को आचार्य का अपमान न करना चाहिए॥२॥
विषय
प्रजा की शरणयाचना, राजा का अभयदान ।
भावार्थ
व्याख्या देखो अ० १९ । मं० ४९ ॥
विषय
ज्ञान+यज्ञ
पदार्थ
१. (ब्रह्मणा) = स्तोत्रों से व वेदज्ञान से (वन्दमानः) = आपका स्तवन करता हुआ (त्वा) = आपसे (तत्) = वही बात (यामि) = [याचामि] चाहता हूँ, (यजमानः) = यज्ञशील पुरुष (हविर्भिः) = हवियों के द्वारा, अर्थात् दानपूर्वक अदन के द्वारा (तत्) = वही (आशास्ते) = इच्छा करता है कि हे (वरुण) = द्वेष का निवारण करके हमें श्रेष्ठ बनानेवाले प्रभो! (इह) = इस मानव-जीवन में (अहेडमान:) = हमपर क्रोध न करते हुए आप हमें (बोधि) = बोधयुक्त कीजिए। हे (उरुशंस) = बहुतों से स्तुति किये गये प्रभो! आप (नः) = हमारे (आयु:) = जीवन को (मा प्रमोषी:) = मत चुरने दीजिए। हमारी आयु को आप व्यर्थ न जाने दीजिए। २. ज्ञान-प्राप्ति व जीवन को सार्थक करने के दो ही उपाय हैं- [क] हम वेदज्ञान से प्रभु का स्तवन करें तथा [ख] यज्ञशील बनकर हविर्भुक् बनें, दान देकर बचे हुए को खानेवाले हों, केवलादी न बन जाएँ।
भावार्थ
भावार्थ- ज्ञान व यज्ञ ही जीवन को सार्थक बनानेवाले हैं।
मराठी (2)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो माणूस ज्याच्याकडून विद्या प्राप्त करतो त्याला प्रथम त्याने नमस्कार करावा व जो विद्या शिकवितो त्यानेही विद्या देताना कपट करू नये, कधीही कुणा आचार्याचा अपमान करू नये.
विषय
पुन्हा पुढील मंत्रात तोच विषय -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (वरूण) अत्युत्तम विद्वान, जसा (यजमानः) (हविर्भिः) आहवनीय वा होम करण्यास योग्य पदार्थाद्वारे (यज्ञ करून) (तत्) त्याच्या लाभाची (आ, शास्ते) इच्छा करतो, त्याप्रमाणे (ब्रह्मणा) वेदाच्या विज्ञानाद्वारे (वन्दमानः) आपली स्तुती करीत मी (एक ज्ञानार्थी) (त्वा) आपणाकडे (यामि) आलो आहे. हे (अरूशंस) अनेक जनांद्वारे प्रशंसित) आपण माझ्याकडून (अहेडमानः) केल्या जाणाऱ्या सत्काराचा (व स्तुतीचा) (स्वीकार करा) आणि (इह) या संसारात (नः) आमच्या (आयुः) जीवन अथवा ज्ञान, यांना (मा) (प्र, मोषी) चोरून घेऊ नका (आम्हाला जे ज्ञान द्यायचे आहे, ते पूर्णपणे द्या. आमच्यापासून काही ज्ञान वा विद्या लपवून ठेवू नका) आणि अशा रीतीने आमचे (ज्ञानार्थीचे) (बोधि) प्रबोधन करा ॥2॥
भावार्थ
भावार्थ - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमा अलंकार आहे. जो मनुष्य ज्या व्यक्तीकडून विद्या ग्रहण करीत असेल, त्याने त्या (शिक्षक) व्यक्तीस प्रथम नमस्कार केला पाहिजे. तसेच जो अध्यापक आहे, त्याने कधीही अध्यापनात कपट करू नये (सर्व ज्ञान, पूर्ण विद्या शिकवावी) तसेच कोणीही विद्यार्थ्याने आपल्या आचार्याचा कधीही अपमान करू नये. ॥2॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O Worshipful God, with my prayer, I attain unto Thee through vedic knowledge. A worshipper longs to realise Thee with his oblations. O praiseworthy God, worthy of respect, give us Thy knowledge in this world, steal not our life from us.
Meaning
Varuna, lord supreme, as the yajamana honours you with holy offerings in worship, so do I come to you singing songs of praise. Universally sung and celebrated, pleased and gracious, enlighten us here. Let not our life slip away through the fingers.
Translation
Praising you with devotional prayers, I implore you to enlighten me with that sacred knowledge, which the worshippers seek through offerings and reciting sacred hymns. O venerable Lord, do not look at us with disdain and do not deprive us of our life-span. (1)
Notes
Repeated from XVIII. 49.
बंगाली (1)
विषय
পুনস্তমেব বিষয়মাহ ॥
পুনঃ সেই বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥
पदार्थ
পদার্থঃ- হে (বরুণ) অতি উত্তম বিদ্বান্ পুরুষ ! যেমন (য়জমানঃ) যজমান (হবির্ভিঃ) দেওয়ার যোগ্য পদার্থগুলি দ্বারা (তৎ) তাহার (আ, শাস্তে) কামনা করে সেইরূপ (ব্রহ্মণা) বেদের বিজ্ঞান দ্বারা (বন্দমানঃ) স্তুতি করতঃ আমি (তৎ) সেই (ত্বা) তোমাকে (য়ামি) প্রাপ্ত হই । হে (উরুশংস) বহু ব্যক্তিদিগের দ্বারা প্রশংসিত, আমা হইতে (অহেডমানঃ) সৎকারকে প্রাপ্ত হইয়া তুমি (ইহ) এই সংসারে (নঃ) আমাদের (আয়ুঃ) জীবন বা বিজ্ঞানকে (মা) না (প্র, মোষীঃ) হরণ কর এবং শাস্ত্রের (বোধি) বোধ করাও ॥ ২ ॥
भावार्थ
ভাবার্থঃ- এই মন্ত্রে বাচকলুপ্তোপমালঙ্কার আছে । যে মনুষ্য যাহার দ্বারা বিদ্যা প্রাপ্ত হয়, যে তাহাকে প্রথম নমস্কার করিবে, যে যাহার অধ্যাপক, সে তাহাকে বিদ্যা দেওয়ার জন্য কপটতা না করে । কদাপি কেহই আচার্য্যের অপমান করিবে না ॥ ২ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
তত্ত্বা॑ য়ামি॒ ব্রহ্ম॑ণা॒ বন্দ॑মান॒স্তদা শা॑স্তে॒ য়জ॑মানো হ॒বির্ভিঃ॑ ।
অহে॑ডমানো বরুণে॒হ বো॒ধ্যুর॑ুশꣳস॒ মা ন॒ऽআয়ুঃ॒ প্র মো॑ষীঃ ॥ ২ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
তদিত্যস্য শুনঃশেপ ঋষিঃ । বরুণো দেবতা । নিচৃৎ ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
ধৈবতঃ স্বরঃ ॥
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