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यजुर्वेद अध्याय - 21

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  • यजुर्वेद - अध्याय 21/ मन्त्र 25
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः देवता - इन्द्रो देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
    73

    व॒र्षाभि॑र्ऋ॒तुना॑दि॒त्या स्तोमे॑ सप्तद॒शे स्तु॒ताः।वै॒रू॒पेण॑ वि॒शौज॑सा ह॒विरिन्द्रे॒ वयो॑ दधुः॥२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व॒र्षाभिः॑। ऋ॒तुना॑। आ॒दि॒त्याः। स्तोमे॑। स॒प्त॒द॒श इति॑ सप्तऽद॒शे। स्तु॒ताः। वै॒रू॒पेण॑। वि॒शा। ओज॑सा। ह॒विः। इन्द्रे॑। वयः॑। द॒धुः॒ ॥२५ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वर्षाभिरृतुनादित्या स्तोमे सप्तदशे स्तुताः । वैरूपेण विशौजसा हविरिन्द्रे वयो दधुः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वर्षाभिः। ऋतुना। आदित्याः। स्तोमे। सप्तदश इति सप्तऽदशे। स्तुताः। वैरूपेण। विशा। ओजसा। हविः। इन्द्रे। वयः। दधुः॥२५॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 21; मन्त्र » 25
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथोत्तमब्रह्मचर्यविषयमाह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! ये वर्षाभिर्ऋतुना वैरूपेणौजसा विशा सह वर्त्तमाना आदित्याः सप्तदशे स्तोमे स्तुता इन्द्रे हविर्वयो दधुस्तान् यूयं विज्ञायोपकुरुत॥२५॥

    पदार्थः

    (वर्षाभिः) वर्षन्ति मेघा यासु ताभिः (ऋतुना) (आदित्याः) द्वादश मासा उत्तमा विद्वांसो वा (स्तोमे) स्तुतिव्यवहारे (सप्तदशे) एतत्संख्याके (स्तुताः) प्रशंसिताः (वैरूपेण) विविधानां रूपाणां भावेन (विशा) प्रजया (ओजसा) बलेन (हविः) दातव्यम् (इन्द्रे) जीवे (वयः) कालविज्ञानम् (दधुः) दध्युः॥२५॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या विद्वत्सङ्गेन कालस्य स्थूलसूक्ष्मगती विज्ञायैकक्षणमपि व्यर्थे न नयन्ति, ते विचित्रमैश्वर्यमाप्नुवन्ति॥२५॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    अब उत्तम ब्रह्मचर्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! जो (वर्षाभिः) जिसमें मेघ वृष्टि करते हैं, उस वर्षा (ऋतुना) प्राप्त होने योग्य ऋतु (वैरूपेण) अनेक रूपों के होने से (ओजसा) जो बल और उस (विशा) प्रजा के साथ रहने वाले (आदित्याः) बारह महीने वा उत्तम कल्प के विद्वान् (सप्तदशे) सत्रहवें (स्तोमे) स्तुति के व्यवहार में (स्तुताः) प्रशंसा किये हुए (इन्द्रे) जीवात्मा में (हविः) देने योग्य (वयः) काल के ज्ञान को (दधुः) धारण करते हैं, उन को तुम लोग जानकार उपकार करो॥२५॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य लोग विद्वानों के संग से काल की स्थूल-सूक्ष्म गति को जान के एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गमाते हैं, वे नानाविध ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं॥२५॥

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    विषय

    संवत्सर के ६ ऋतु भेद से यज्ञ प्रजापति और प्रजापालक राजा के ६ स्वरूपों का वर्णन ।

    भावार्थ

    ( आदित्याः) 'आदित्य' विद्वान् (वर्षाभिः ऋतुना) वर्षाऋतु से (सप्तदशे स्तोमे) सप्तदशस्तोम के आधार पर (वैरूपेण) वैरूप साम से (विशौजसा ) प्रजा और पराक्रम से (इन्द्रे हविः वयः दधुः) इन्द्र, राजा और राष्ट्र में अन्न, बल और दीर्घ जीवन धारण कराते, करते हैं ।

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे विद्वानांच्या संगतीने काळाची स्थूल व सूक्ष्म गती जाणून एक क्षणही व्यर्थ घालवित नाहीत ती नाना प्रकारचे ऐश्वर्य प्राप्त करतात.

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    विषय

    आता उत्तम ब्रह्मचर्याविषयी -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो, (वर्षाभिः) ज्या ऋतूत मेघ वृष्टी करतात त्या (ऋतुन्ना) सर्वांना हवासा वाटणारा ऋतू (वैरूपेण) अनेक रूपाचा असून या ऋतूत (ओजसा) जे बळ (जी शक्ती शहाणे लोक संपादित करतात, ते (विशा) अन्य प्रजाजनांसह (आदित्याः) बारही महिने (आनंदित राहतात) तसेच उत्तम कोटीचे विद्वान (सप्तदशे) सतराव्या (भरपूर) (स्तोमे) स्तुतीच्या कार्याने (स्तुताः) प्रशंसित होऊन (इन्द्रे) जीवात्म्यात (हविः) ज्ञात करण्यास योग्य अशा (वयः) कालज्ञान वा कालनिर्णय (दधुः) धारण करतात (पावसाळ्यामुळे बारा महिन्यातील कृषी, वातावरण आदी बाबत ज्ञान मिळवतात) हे मनुष्यानो, तुम्ही त्यांच्या विषयी जाणून घ्या आणि आपले भले करून घ्या ॥25॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जी शहाणी माणसें विद्वानांच्या संगतीत राहून काळाचे (वेळेचे) स्थूल-सूक्ष्म ज्ञान ओळखून आपला एक क्षण देखील वाया घालवीत नाहीत, ते नानाप्रकारच्या ऐश्वर्याचे स्वामी होतात. ॥25॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    O people know ye the Aditya Brahmcharis, who endowed with many qualities, living in the midst of people, in the rainy season, praised with the recitation of Saptdasha stoma of seventeen verses, give life to the soul with strength and sacrifice.

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    Meaning

    The Adityas, worshipped with seventeen fold stoma in virupa verses, alongwith the rainy season, create life and life-energies alongwith lustre and noble people for enrichment of the soul for Indra.

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    Translation

    In the Rainy season, may the Adityas, praised with the Saptadasa Stomas and with Vairupa Samans, bestow subject people, vigour, supplies and long life on the aspirant. (1)

    Notes

    Visaujas, प्रजया ओजसा च with the people and power. Also, with people's power.

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    बंगाली (1)

    विषय

    অথোত্তমব্রহ্মচর্য়বিষয়মাহ ॥
    এখন উত্তম ব্রহ্মচর্য্য বিষয়কে পরবর্ত্তী মন্ত্রে বলা হইয়াছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ- হে মনুষ্যগণ ! (বর্ষাভিঃ) যাহাতে মেঘ বৃষ্টি করে সেই বর্ষা (ঋতুনা) প্রাপ্ত হওয়ার যোগ্য ঋতু (বৈরূপেণ) অনেক রূপে হওয়ার ফলে (ওজসা) যাহা বল এবং সেই (বিশা) প্রজা সহ নিবাসকারী (আদিত্যাঃ) দ্বাদশ মাস বা উত্তম কল্পের বিদ্বান্ (সপ্তদশে) সপ্তদশ (স্তোমে) স্তুতির ব্যবহারে (স্তুতাঃ) প্রশংসা কৃত (ইন্দ্রে) জীবাত্মায় (হবিঃ) দেওয়ার যোগ্য (বয়ঃ) কালের জ্ঞানকে (দধুঃ) ধারণ করে তাহাদেরকে তোমরা জানিয়া উপকার কর ॥ ২৫ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে সব মনুষ্যগণ বিদ্বান্দিগের সঙ্গ দ্বারা কালের স্থূল সূক্ষ্ম গতিকে জানিয়া এক মুহূর্তও ব্যর্থ ব্যয় করে না, তাহারা নানাবিধ ঐশ্বর্য্যকে প্রাপ্ত হয় ॥ ২৫ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    ব॒র্ষাভি॑র্ঋ॒তুনা॑দি॒ত্যা স্তোমে॑ সপ্তদ॒শে স্তু॒তাঃ ।
    বৈ॒রূ॒পেণ॑ বি॒শৌজ॑সা হ॒বিরিন্দ্রে॒ বয়ো॑ দধুঃ ॥ ২৫ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বর্ষাভিরিত্যস্য স্বস্ত্যাত্রেয় ঋষিঃ । ইন্দ্রো দেবতা । অনুষ্টুপ্ ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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